आवारा जानवरों ने खा लिए बिटिया के शरीर के कई हिस्से
09 जून 2018 छपरा/तरैया, बिहार।
वह बिटिया एक मकान की जमीन पर चित्त पड़ी थी। मकान निर्माणाधीन था। जो उसे देखता, उसके रौंगटे खड़े हो जाते। शरीर कितनी ही जगहों से नौंचा हुआ था। ये वीभत्स घटना छपरा के
तरैया बाजार स्थित देवरिया हाई स्कूल रोड में खदरा नदी के किनारे एक नवनिर्माणाधीन मकान के समीप शनिवार को घटी।
पत्रकार श्री धर्मेंद्र रस्तोगी ने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से पा-लो ना को बताया कि एक नवजात बच्ची को किसी ने रात में उस मकान में फेंक दिया था। आवारा जानवरों ने उससे अपनी भूख मिटाने की कोशिश की थी। उसके शरीर के कई हिस्सों को खा लिया गया था। उस नवजात बच्ची का शव उसके साथ हुए क्रूर व्यवहार की गवाही दे रहा था। ऐसा लगता था कि लगभग 10-12 घंटे तक वह शव वहां पड़ा रहा होगा।
अहले सुबह उस रास्ते से गुजर रहे किसी राहगीर की नजर बच्ची पर पड़ी तथा बात चारों तरफ फैल गयी। बच्ची के शव को देखकर लोगों के रोंगटे खड़े हो रहे थे। उनका मानना था कि शायद बच्ची होने के कारण उसे फेंक दिया गया होगा। बच्ची के शव को वहीं मौजूद कुछ महिलाओं ने मिलकर जमीन में दफना दिया। कुछ लोग इसे उस इलाके में मौजूद प्राइवेट नर्सिंग होम से जोड़कर भी देख रहे हैं। यहां तक कि कुछ चाईल्ड एक्टिविस्ट्स और पत्रकारों के मुताबिक भी इस घटना के लिए मेडिकल प्रेक्टिशनर्स दोषी हैं।
टीम पा-लो ना इस घटना के द्वारा एक बार फिर यही कहना चाहती है कि घटना और तस्वीरें निस्संदेह बच्ची के साथ हुए क्रूरतम व्यवहार की गवाही दे रही हैं, लेकिन शिशु हत्या में परिजन दोषी होते हैं, डॉक्टर्स नहीं। बच्चे को पैदा होने के बाद फेंकने का दोषी परिवार होता है, नर्सिंग होम नहीं।
टीम का प्रयास यही है कि इन घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। इसके लिए जहाँ चाइल्ड एक्टिविस्ट्स को जागरूकता कार्यक्रम ज्यादा से ज्यादा करने होंगे, वहीं मीडिया का बहुत अहम रोल हो जाता है कि वह केवल घटनाओं पर ही कलम न चलाए, बल्कि इस अपराध से जुड़े अन्य पक्षों की भी इस तरह रिपोर्टिंग करे, जिससे लोगों को विकल्पों की जानकारी मिले। ऐसा होने पर शायद हम इस वीभत्स घटनाओं को रोक सकें और बच्चों को इस वहशियाना व्यवहार से बचा सकें।
ये जीते जागते बच्चे हैं, रबर के गुड्डे-गुड़िया नहीं, जिन्हें कहीं भी उठाकर डाल दो –