सात दिनों तक सांसों के लिए चलता रहा उस का संघर्ष
गुजरात के गंभोई गांव में जमीन में दबी मिली थी नवजात बच्ची
मोनिका आर्य
11 अगस्त 2022, गुरुवार, साबरकांठा, गुजरात। (UPDATE)
वो बिटिया जीना चाहती थी। इसलिए जमीन में जिंदा दफनाने के बाद भी वो एक-एक सांस के लिए लड़ती रही, संघर्ष करती रही। लेकिन अंततः ये बिटिया हार गई। गुरुवार, 11 अगस्त की सुबह पांच बजे बच्ची ने अस्पताल की स्पेशल केयर यूनिट में आखिरी सांस ली।
आपको याद होगा कि हमने आपको साबरकांठा, गुजरात की एक बहादुर बिटिया के बारे में बताया था। पालोना को इस घटना की सूचना रांची के पत्रकार श्री अरविंद प्रताप से मिली थी।
https://paalonaa.in/gujrat-crime-news-newborn-baby-girl-burried-alive-in-gambhoi-village-of-sabarkantha-navjat-beti-ko-unhone-zinda-dafna-diya-3609-2/
बच्ची को इसके अपने मम्मी पापा ने जन्म देने के तुरंत बाद घर के पीछे खेत की जमीन में जिंदा दफना दिया था। उसकी गर्भनाल भी नहीं काटी गई थी। ये घटना साबरकांठा जिले के हिम्मतनगर में गंभोई गांव में 04 अगस्त की सुबह घटी थी।
एहतियात से निकाला बच्ची को
ये खेत जिंतेंद्र सिंह धाबी जी का था। सुबह जब वह खेत पर पहुंचे, तो बिटिया का नन्हा हाथ जमीन से बाहर देख चौंक गए थे। आस-पास वालों की मदद से उन्होंने बिटिया को जमीन से बाहर निकाला था। इस काम को विशेष सतर्कता से अंजाम दिया गया था। जमीन खोदने के लिए औजारों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था, क्योंकि इससे बिटिया को चोट लग सकती थी। वो घायल हो सकती थी। उसकी जिंदगी संकट में पड़ सकती थी। इसलिए हाथों से ही मिट्टी को हटाया गया था. इस काम में निकटवर्ती गुजरात इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के कर्मचारियों ने भी उनकी मदद की थी। 108 एंबुलैंस में बच्ची को फर्स्ट एड देते हुए जिला अस्पताल पहुंचाया गया था।
प्रीमेच्योर थी बच्ची
डॉक्टर्स का कहना था कि वह करीब तीन घंटे तक मिट्टी के अंदर दबी रह गई थी। बच्ची प्रीमेच्योर थी। उसका वजन भी काफी कम (सिर्फ एक किलो) था। नाक और मुंह में मिट्टी जाने से उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। यही नहीं, उसके ब्रेन और ब्लड में इन्फेक्शन मिला था। उसकी स्थिति क्रिटिकल थी। उसे बचाए रखने के सभी संभव प्रयास किए गए। वडनगर से चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर को उसके इलाज के लिए विशेष तौर पर बुलाया गया था।
खुले आम हो रही है नवजातों की हत्या
इन तमाम प्रयासों के बावजूद बिटिया को बचाया नहीं जा सका। 11 अगस्त, गुरुवार की सुबह पांच बजे के करीब बच्ची की मौत हो गई।
ये विंडबना ही है कि जिस देश में बच्चियों को बचाने के लिए सरकारी स्तर पर तरह तरह के जतन किए जाते हों, वहां बच्चों की खुलेआम हत्याएं हो रही हैं। अक्सर ये मामले दबे-ढके रह जाते हैं।
गुजरात के इस मामले में एक ही बात अच्छी हुई है कि पुलिस ने इस मामले में तत्परता दिखाई। 24 घंटे के अंदर बच्ची के दोषी मां-पापा को पुलिस ने गिरफ्तार किया। उन पर बच्ची को असुरक्षित छोड़ने (आईपीसी 317) के अलावा अटैम्प्ट टू मर्डर (आईपीसी 307) के भी सेक्शन लगाए गए। अब ये आईपीसी 315 (नवजात शिशु की हत्या))और 302 का मामला हो गया है।
पालोना की अपील
हम एक बार फिर यही कहेंगे कि सरकार की सेफ सरेंडर पॉलिसी के बारे में अपने आस-पास के लोगों को बताइए।
पालोना से मिली जानकारियों को अपनों से साझा कीजिए। हो सकता है आपका एक प्रयास किसी मासूम नवजात की जिंदगी बचा ले।
सरकार, बच्चों के लिए सेफ बेबी पाइंट्स बनाए। मतलब कुछ ऐसे स्थान, जहां लोग बिना किसी डर और हिचकिचाहट के अपने उन बच्चों को सुरक्षित छोड़ या सौंप सकें, जिन्हें वे पालने के इच्छुक नहीं हैं।
ये बेबी पाइंट्स लोगों की पहुंच मेंं होने जरूरी हैं। इसके लिए उस एरिया के अस्पतालों, थानों, पुलिस चौकी, आंगनबाड़ी आदि को डेवलप किया जा सकता है।
मांग ये भी उठ रही है कि सरकार बच्चों के जन्म के बाद उनकी सुरक्षा को लेकर गंभीर हो। नवजात बच्चों के प्रति पेरेंट्स की जिम्मेदारी और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कुछ निश्चित दिशा निर्देश जारी किए जाएं। इनके उल्लंघन पर पैनल्टी और पनिशमेंट निर्धारित हो, ताकि पेरेंट्स सोच-समझ कर बच्चों को जन्म देने का निर्णय करें।
इनके साथ साथ सेक्स एजुकेशन और प्रेग्नेंसी को अवॉएड करने के लिए फैमिली प्लानिंग के उपायों का जोर-शोर से प्रचार करने की जरूरत है। अब तक यह केवल मां की हैल्थ और परिवार की सामाजिक, आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता रहा है, अब इसमें अनचाहे बच्चों को भी शामिल करना होगा। और उसी के हिसाब से अवेयरनैस प्रोग्राम डिजाइन करने होंगे।