अस्पताल के एक कोने में बोरे में बंद वह लगातार रोए जा रही थी, जब वहां से गुजर रही दो महिलाओं ने उसकी आवाज सुनी। उन्होंने तुरंत बोरे को खोल उस मासूम को बाहर निकाला और उसकी जान बचा ली। घटना जिला अस्पताल दुर्ग परिसर के बुकिंग हाल के पास घटी।
दवा वितरण काउंटर के सामने बुकिंग हाल का निर्माण कार्य चल रहा है। गुरुवार करीब ढाई बजे, जब मितानिन ऊषा अपनी दोस्त सविता के साथ उस रास्ते से गुजर रही थी तो उन्हें एक बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। आवाज की दिशा में बढ़ने पर उन्हें वह बोरा नजर आया, जिसमें नवजात बच्ची बंद थी। उन्होंने जल्दी से बोरे को खोलकर उसमें से बच्ची को निकाला और उसे लेकर सिविल सर्जन डॉ. के.के. जैन के पास पहुंची। डॉ. जैन ने बच्ची का चैकअप किया और उसे आईसीयू में भर्ती कर दिया। बच्ची ने नया स्वेटर और मोजे भी पहन रखे थे।
डॉक्टर के मुताबिक वह करीब चार दिन की है। बच्ची को जिस अंदाज में हॉस्पिटल परिसर में छोड़ा, वह संकेत देता है कि बच्ची को वहां छोड़ने वाले की मंशा बुरी नहीं रही होगी, मगर ये आश्चर्य वाली बात है कि बोरे को हॉस्पिटल में लाने और उसे वहां रखने वाले को किसी ने नहीं देखा।
पा-लो ना टीम बच्ची को बचाने के लिए ऊषा एवं सविता की कर्जदार है, और साथ ही अस्पताल में उसे छोड़ने वाले के प्रति भी नरम रवैया रखती है, जिसने बच्ची को मारने की बजाय उसे सुरक्षित स्थान पर छोड़ने का विकल्प चुना, लेकिन बच्ची को छोड़ने का तरीका भी सुरक्षित होना जरूरी है। बोरे में बंद होने से बच्ची की सांसे घुट सकती थी। लोगों को ये समझने की जरूरत है कि बच्चों को सुरक्षित हाथों से सौंपने का विकल्प उनके पास मौजूद है, इसलिए उन्हें डरने की जरूरत नहीं है। वे नन्हे मासूमों को फेंकने की बजाय उन्हें किसी जिम्मेदार अधिकारी को सौंपने का विकल्प चुनें।
01 फरवरी 2018 भिलाई, छत्तीसगढ़ (F)