यह एक प्री-मेच्योर बेबी था, वजन मात्र 500 ग्राम यानी आधा किलो। उसके बचने की उम्मीद वैसे ही बहुत कम थी, लेकिन वो उम्मीद बिल्कुल ही खत्म हो जाए, इसका इंतजाम भी किया गया था। उसे खून से सना हुआ, गत्ते के डिब्बे में डालकर छोड़ दिया गया था और कीड़े-मकौड़े उसके शरीर पर रेंग रहे थे। जानबूझकर ऐसा किया गया था, या अनजाने में, यह जांच का विषय है। घटना लोहरदगा के श्मशानघाट के पास शनिवार दोपहर घटी।
बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष श्रीमती आरती कुजुर ने पा-लो ना को इसकी जानकारी दी। इसके मुताबिक, एक नवजात शिशु बेहद खराब हालत में लोहरदगा के श्मशान घाट के पास मिला, जिसके बेहतर इलाज के लिए आरती जी ने रांची स्थित रानी चिल्ड्रेन अस्पताल लाने के निर्देश दिए। लेकिन इससे पहले कि उसे यहां लाया जाता, बच्चे की मौत हो गई।
लोहरदगा बाल कल्याण समिति अध्यक्ष श्री राजकुमार वर्मा ने पा-लो ना को बताया कि श्मशान घाट के पास से कचहरी जाने वाले रास्ते की ढलान पर एक प्रीमेच्योर शिशु गत्ते के डिब्बे में पड़ा था। उन्हें इसकी सूचना शाम करीब चार बजे मिली। कोई व्यक्ति लघुशंका के लिए उस तरफ गया था, उसने ही बच्चे को सबसे पहले देखा और बाहर आकर एक दूसरे व्यक्ति को ये बात बताई। इस दूसरे व्यक्ति ने ही श्री वर्मा को सूचना दी। पांच से सात मिनट के अंदर श्री वर्मा घटनास्थल पर पहुंच गए। रास्ते में ही उन्होंने चाईल्ड लाईन, एंबुलेंस, पुलिस और स्पेशल एडॉप्शन एजेंसी की पुष्पा शर्मा को श्मशान घाट पहुंचने को कहा।
वहां बच्चे की स्थिति बहुत नाजुक थी। वह खून में सना था और उसके शरीर पर मोटे काले मकौड़े लिपटे थे। उसकी नब्ज चल रही थी। उन्होंने पेड़ की डाल और पत्तों से कीड़ों को हटाया और तुरंत अस्पताल लेकर आए। उसके पूरे शरीर पर जख्म थे और वह सूजा हुआ था। उसे मेडिकल केयर उपलब्ध करवाई गई और उसकी खराब हालत को देखते हुये रांची रेफर किया गया।
आयोग की अध्यक्ष श्रीमती आरती कुजुर ने बच्चे को सीधे रानी चिल्ड्रेन अस्पताल ले जाने के निर्देश दिए, ताकि उसे बेस्ट केयर उपलब्ध हो और उसे बचाने के प्रयासों में कोई कमी न रह जाए। जब बच्चे को रांची ले जाने के लिए उठाया गया. तो महसूस हुआ कि उसकी मौत हो चुकी है।
पा-लो ना मानती है कि बच्चे को बचाने का हर संभव प्रयास किया गया, लेकिन उसकी हालत इतनी खराब थी कि उसका बचना नामुमकिन ही था। इतने कम वजन का प्री-मेच्योर बेबी कैसे इस हालत में वहां तक पहुंचा, ये लापरवाही थी या जानबूझकर किया गया अपराध, इसका तकनीकी पक्ष जानने के लिए वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. सुमिता लाल से संपर्क किया गया। उनसे पूछा कि ये बच्चा डिलीवरी केस हो सकता है, या एबॉर्शन या फिर मिस-कैरिएज।
उन्होंने संभावना जताई कि ये स्पॉन्टेनियस डिलीवरी का केस हो सकता है। कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि पांचवे या छठे माह में डिलीवरी हो जाती है, उसे बचाने का पूरा प्रयत्न किया जाता है. हालांकि बचाना थोड़ा मुश्किल ही होता है। क्या ये मिस-कैरिएज या एबॉर्शन का केस भी हो सकता है, इस सवाल के जवाब में डॉ. लाल का कहना है कि आज के समय में कुछ भी कहना मुश्किल है। युवा लड़कियां इतनी स्मार्ट हो गईं हैं कि कोई भी दवाई अपनेआप लेकर खा लेती हैं।
लेकिन मिस-कैरिएज या एबॉर्शन में बच्चा जिंदा नहीं निकल सकता है, ऐसा उन्होंने स्पष्ट कहा। इस मामले में बच्चा अस्पताल में भी 2-3 घंटे जिंदा रहा था। डॉ. लाल ने एक संभावना और जताई कि स्पॉन्टेनियस डिलीवरी के बाद हो सकता है कि बच्चे की धड़कन, नब्ज आदि का परिवार को नहीं पता चला हो, और उन्होंने उसे मृत समझकर फेंक दिया हो।
अगर ऐसा मान भी लिया जाए, तब भी बच्चे को यूं डिस्पॉज ऑफ करना कानूनन जुर्म है। उसका विधिवत संस्कार न भी होता, तब भी उसे कम से कम सही तरीके से दफनाने का जतन जरूर किया जाना चाहिए था। हो सकता है कि इस दौरान ही उसके जीवित होने का अहसास उन्हें वक्त रहते हो जाता और उसे बचाना आसान होता। कीड़ों का जहर तो उसके शरीर में नहीं जाता।
इस मामले को दर्ज करवाने के लिए पा-लो ना टीम ने लोहरदगा एसपी श्री प्रियदर्शी आलोक से भी बात की। उन्होंने आश्वस्त किया कि इस मामले में उचित धाराओं के तहत केस दर्ज किया जाएगा। पा-लो ना का मानना है कि एक बार इन मामलों में भी केस दर्ज होने शुरू हो गए और कुछ दोषी पकड़े गए तो इन घटनाओं पर रोक लगाने और बच्चों को बचाने में काफी मदद मिलेगी।
22 सितंबर 2018 लोहरदगा, झारखंड (M)