पुकार रजक और उनकी पत्नी मीना देवी की शादी को करीब आठ साल हो गए, लेकिन कोई संतान नहीं थी। उस दिन तड़के वह खेत की तरफ गए पानी पटाने के लिए, जब खेत की आरी के किनारे हरे रंग के कपड़े में लिपटी एक बच्ची पर उनकी निगाह पड़ी। वह दो-तीन दिन की नजर आ रही थी। उन्होंने उसे उठाया और अपने घर ले गए। घटना इटाढ़ी थाना क्षेत्र के जयपुर गांव में नहर के समीप सोमवार को घटी।
बाल संरक्षण इकाई (सीडब्लूसी) की प्रतिमा जी ने पा-लो ना को बताया कि पुकार रजक और मीना देवी निस्संतान हैं। बच्ची हरे रंग के कपड़े में लिपटी मिली थी, जैसा कि आमतौर पर अस्पतालों में प्रयोग किया जाता है। बच्ची को शायद दो-तीन दिन अपने पास रखकर ही छोड़ा गया था, क्योंकि उसके शरीर पर खून नहीं लगा था और मालिश भी हुई थी। उसकी नाभि भी ठीक से बैठ गई थी।
रजक परिवार ने गांव के मुखिया को बच्ची की जानकारी दी, लेकिन थाने या किसी बाल संस्था को इसके बारे में सूचित नहीं किया। उन्हें कोई बच्चा नहीं होने की वजह से मुखिया ने बच्ची को रखने की जिम्मेदारी उन्हें ही दे दी। दो-तीन दिन बच्ची उन्हीं के पास रही। इसी बीच, गांव के ही एक व्यक्ति ने चाईल्डलाईन को 1098 पर फोन करके बच्ची की जानकारी दी। जिसके बाद सब तुरंत हरकत में आ गए। चाईल्डलाईन और पुलिस को बच्ची को लेने के लिए भेजा गया तो उन्हें कुछ विरोध का भी सामना करना पड़ा। लेकिन अंततः 15 मार्च को वे बच्ची को सीडब्लूसी के सामने लाने में कामयाब रहे।
वहीं, पत्रकार श्री संजय उपाध्याय के मुताबिक, गांव के एक व्यक्ति ने पुकार रजक और मीना देवी को समझाया कि बच्ची को अपने पास रखना उचित नहीं होगा। जिसके बाद उन्होंने बच्ची को इटाढ़ी थाना पहुंचाया, जहां थानाध्यक्ष विवेक राज ने चाइल्डलाइन को मामले की सूचना देने का प्रयास किया, लेकिन चाइल्डलाइन के द्वारा फोन नहीं उठाए जाने की स्थिति में वह स्वयं रजक दंपत्ति एवं बच्ची के साथ बक्सर बाल कल्याण समिति पहुंच गए और बच्ची को उनके सुपुर्द कर दिया।
तरीका कुछ भी हो, हकीकत यही थी कि बच्ची को सीडब्लूसी को सौंप दिया गया। पुकार और उनकी पत्नी मीना सीडब्लूसी से बच्ची को उन्हें देने की विनती करने लगे। लेकिन मौजूदा कानून की वजह से बच्ची को बचाने के बावजूद वह उन्हें नहीं दी गई।
पा-लो ना के माध्यम से हम सरकार से लगातार ये अपील कर रहे हैं कि जो लोग बच्चे को बचाते हैं, और वे उस बच्चे को पालने की इच्छा रखते हैं, उनके मामले पर सहानुभूतिपूर्ण विचार किया जाना चाहिए। ये सोचना चाहिए कि यदि उन्होंने बच्चे को नहीं बचाया होता तो क्या होता। ऐसे लोगों को सबके सामने लाकर उन्हें सम्मानित किया जाना चाहिए। हमारा मौजूदा एडॉप्शन संबंधी कानून संशोधन की मांग करता है।
फिलहाल बच्ची पटना स्थित स्पेशल एडॉप्शन एजेंसी में है।
12 मार्च 2018 बक्सर, बिहार (F)