बीते बुधवार को राजस्थान के बांसवाड़ा के डायलाब तालाब के नज़दीक बाल सम्प्रेषण गृह के बाहर बने ‘पालनाघर’ में परिजनों ने एक नवजात बच्ची को त्याग दिया. मासूम को फ़ौरन ही उचित इलाज के लिए एमजी
अस्पताल ले जाया गया, परन्तु उसकी क्रिटिकल स्थिति को देखते हुए डॉक्टरों ने उसे जयपुर रेफर कर दिया. जयपुर ले जाने के क्रम में बच्ची की मौत हो गई. अगर इस मासूम के परिजनों ने थोड़ा सावधानी और समझदारी
बरती होती तो शायद उसे बचाया जा सकता था, जिसमें बच्ची को घर की बजाय किसी हॉस्पिटल में जन्म देना शामिल है। डॉक्टरों के मुताबिक प्रसव घर पर ही हुआ था, क्योंकि नवजात के शरीर पर ड्रिप या पट्टी नहीं लगी
हुई थी. राजस्थान सरकार की ‘आश्रय’ योजना के अंतर्गत अगर प्रसव घर पर होता है तो इसे ‘मेडिकल नेग्लिजेंस ऑन बिहाफ ऑफ़ पेरेंट्स’ माना जाएगा. इसी आधार पर बाल कल्याण समिति के सदस्यों ने परिजनों के ख़िलाफ़
रिपोर्ट दर्ज कराई है. मालूम हो कि साल 2015 में राज्य सरकार ने ‘आश्रय’ नामक योजना शुरू की थी. विशेषकर कन्या शिशु हत्या की रोक-थाम के लिए यह शुरू की गई थी, जिसका सकारात्मक नतीजा भी देखने को मिल
रहा है. इस योजना के अंतर्गत सभी सरकारी अस्पतालों में पालना की व्यवस्था की गई है. इस व्यवस्था से न केवल शिशु हत्या दर में कमी आई है, बल्कि उन परिवारों को जो अपने नवजात बच्चों को पालने में असमर्थ हैं,
उनको भी बिना कानूनी प्रक्रिया में उलझे या कानून तोड़े अपने बच्चों को ‘पालनाघर’ में छोड़ने की सुविधा दी है. लेकिन यदि कोई परिवार बच्चे के जन्म के समय मेडिकल नेगलिजेंस का दोषी पाया जाता है, तो उस स्थिति में
उनके खिलाफ केस दर्ज होता है, जैसा इस मामले में हुआ है.
04 अक्टूबर 2017 बांसवाड़ा, राजस्थान (F)