क्या हुआ –
रोने की आवाज कानों में पड़ी तो जलावन के लिए लकड़ी लेने जंगल में गई आलोका देवी व कांतो लोहरा चौंक पड़ीं। ये बच्चे के रोने की आवाज थी। आवाज की दिशा में बढ़ती गईं तो देखा, झाड़ियों में एक नवजात शिशु बिना कपड़ों के
जमीन पर ही लेटा है। जन्म देने के बाद उसके शरीर को साफ तक नहीं किया गया था। गर्भनाल भी लगी थी। उन्होंने गांव के ही महेंद्र लोहरा को सूचना दी। वे जल्दी से एक कपड़ा लेकर घटनास्थल पहुंचे। बच्चे को उस कपड़े में लपेटा गया।
गांव लाकर दाई से नाभि कटवाई, साफ सफाई करवाई और फिर उस शिशु को देखभाल के लिए महेंद्र ने अपनी पत्नी हीरा देवी को सौंप दिया।
रोने की आवाज कानों में पड़ी तो जलावन के लिए लकड़ी लेने जंगल में गई आलोका देवी व कांतो लोहरा चौंक पड़ीं। ये बच्चे के रोने की आवाज थी। आवाज की दिशा में बढ़ती गईं तो देखा, झाड़ियों में एक नवजात शिशु बिना कपड़ों के
जमीन पर ही लेटा है। जन्म देने के बाद उसके शरीर को साफ तक नहीं किया गया था। गर्भनाल भी लगी थी। उन्होंने गांव के ही महेंद्र लोहरा को सूचना दी। वे जल्दी से एक कपड़ा लेकर घटनास्थल पहुंचे। बच्चे को उस कपड़े में लपेटा गया।
गांव लाकर दाई से नाभि कटवाई, साफ सफाई करवाई और फिर उस शिशु को देखभाल के लिए महेंद्र ने अपनी पत्नी हीरा देवी को सौंप दिया।
पालोना को घटना की जानकारी चाईल्ड एक्टिविस्ट श्री बैदनाथ ने दी। पालोना की मदद से इस मामले में आईपीसी सेक्शन 317 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।
सरकारी व अन्य पक्ष –
“बुंडू से करीब सात किलोमीटर की दूरी पर हेठकांची गांव है। वहीं झाड़ियों में बच्चा मिला था। हमें उसकी जानकारी शुक्रवार शाम में ही मिल गई थी। थाने में लाकर उसे रखना उचित नहीं था। इसलिए अगले
दिन शनिवार को रांची से आई टीम के साथ जाकर बच्चे को ले आए और रांची भेज दिया। इससे पहले अनुमंडल अस्पताल में बच्चे को दिखाया गया। उसकी कंडीशन ठीक थी। ऐसा लगता है कि बच्चे को छोड़ने वाले उससे सिर्फ छुटकारा पाना चाहते थे।
अगर वे बच्चे को नुकसान पहुंचाना चाहते तो बगल में नदी है, उसमें डाल सकते थे।” –
इंस्पेक्टर रमेश, थाना इंचार्ज बुंडू
“शुक्रवार को दिन में एक डेढ़ बजे के करीब कांतो लोहरा को बच्चा मिला था। वह झाड़ियों में बिना कपड़ों के पड़ा था। बच्चा तुरंत जन्मा था। उसके शरीर पर नाभि और खून लगा हुआ था। उसे गांव लाकर साफ
किया। गांव में से ही दाई को बुलवाकर नाभि कटवाई। मुखिया को फोन किया। मुखिया ने पुलिस को इसके बारे में बताया। अगले दिन पुलिस आकर बच्चे को ले गई। बच्चे को थोड़ा बहुत चींटी ने काटा था और एक आध जगह पर खरोंच भी लगी है झाड़ियों
से।” –
अनिल व विष्णु लोहरा, बच्चे को रखने वाला परिवार
पा-लो ना का पक्ष –
पा-लो ना उन सभी लोगों के प्रति कृतज्ञ है, जिनकी इस शिशु को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यदि वे डर या भ्रम से उस बच्चे को जंगल में ही छोड़ देते, तो वह शिशु जीवित नहीं बच पाता। इंस्पेक्टर रमेश की बात विचारणीय
है कि बच्चे को त्यागने वाले बच्चे को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते थे, लेकिन वे अनजाने में ही इसके हत्यारे बन सकते थे। यदि इंसानों से पहले कोई जानवर बच्चे तक पहुंच जाता तो उसे बचाना मुश्किल था।
पा-लो ना ने बुंडू पुलिस से बच्चे को शीघ्रातिशीघ्र मेडिकल केयर दिलवाने का आग्रह किया और इंस्पेक्टर रमेश के बताए विवरण के आधार पर केस को आईपीसी सेक्शन 317 में दर्ज करने का सुझाव भी दिया। इस मौके पर कैजुएलिटी होने
की दशा में लगने वाली कानूनी धाराओं पर भी चर्चा की गई। इस घटना ने एक बार फिर यह एहसास करवाया है कि –
सरकार की सेफ सरेंडर पॉलिसी के बारे में ज्यादा से ज्यादा प्रचार प्रसार होना जरूरी है।
यदि उस क्षेत्र में पालने लगाए जाते और उनका व्यापक प्रचार होता, तब शायद बच्चा जंगल की झाड़ियों में नहीं, बल्कि पालने में मिलता।
आम लोगों के साथ साथ सरकारी सिस्टम के लोगों को ये बताना जरूरी है कि इस कंडीशन में मिले बच्चे का जीवन बचाने के लिए उसे तुरंत मेडिकल केयर दिलवाएँ। दिलवाएँ।
चाईल्डलाइन के साथ-साथ सभी स्थानीय बाल संरक्षण पदाधिकारियों की जानकारी उनके कॉंटेक्ट नंबर्स के साथ सभी अस्पतालों, जच्चा बच्चा केंद्र, आंगनबाड़ी केंद्रों में डिस्प्ले होनी चाहिए।
01 May 2020
Ranchi, Jharkhand (M, A)