यह एक स्पेशल दिन था, 15 अगस्त। इस शुभ दिन की सुबह एक नन्हे से शिशु की सांसों को रोकने की साजिश रची गई। उसके गले में गर्भनाल लपेट कर उसे मारने की नीयत से नाले में फेंक दिया गया। लेकिन ऊपरवाले और उसकी किस्मत ने उसके लिए कुछ और ही सोच रखा था। इसलिए जीवन के प्रथम कुछ घंटों में मौत को हराकर वह वापिस लौटा। घटना तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के वलसरवक्कम इलाके में घटी।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के एक सीनियर जर्नलिस्ट के मुताबिक इस इलाके की निवासी गीता को सुबह के वक्त अपने घर से पास मौजूद नाले से रोने की महीन आवाज सुनाई दी। उन्हें कुछ पल लगे आवाज की दिशा को समझने में। उन्हें आशंका थी कि उसमें शायद कुत्ते का कोई छोटा पिल्ला फंस गया है। नाला ढका हुआ होने के कारण ऊपर से देखना नामुमकिन था। इसलिए उन्होंने हाथ नाले के अंदर डाल किसी तरह उसे बाहर खींच लिया। तब तक कई लोग वहां आ चुके थे।
जैसे ही उसे बाहर निकाला, सब देखकर सन्न रह गए, क्योंकि गीता ने जिसे बाहर निकाला, वह कोई कुत्ते का पिल्ला नहीं, वरन एक नवजात लड़का था। गर्भनाल उसके गले में चारों तरफ लपेट कर उसे वहां फेंका गया था। ये उसे मारने की सोची-समझी साजिश थी।
गीता ने बच्चे को नहला कर चेन्नई के एगमोर अस्पताल में भर्ती कराया। डॉक्टरों के हवाले से बताया गया है कि शुरुआत में बच्चे को सांस लेने में तकलीफ थी, लेकिन इलाज के बाद उसकी सेहत ठीक है और उसे जल्दी ही छुट्टी दे दी जाएगी। डॉक्टरों का कहना है कि अगर बच्चे को अस्पताल लाने में देर होती तो बचाना मुश्किल था।
शिशु को बचाने वाली गीता ने बच्चे का नाम सुतंतिरम रखने की बात कही है, जिसका अर्थ होता है आजादी। गीता का कहना है कि क्योंकि बच्चा उन्हें स्वतंत्रता दिवस पर मिला और उसे नई जिंदगी भी मिली, इसलिए उसका नाम इससे बेहतर नहीं हो सकता।
पा-लो ना नवजात शिशुओं के साथ हो रही इस हैवानियत के खिलाफ है। इसे रोकने के लिए ही पा-लो ना का जन्म हुआ है। इसलिए हम हमेशा इन मामलों का पुलिस केस दर्ज करने और उनकी विधिवत जांच करने की अपील करते हैं। मजबूरी किसी बच्चे को छोड़ने के लिए तो बाध्य कर सकती है, लेकिन उसकी हत्या करने के लिए नहीं। इसलिए साजिशन बच्चों को त्यागने वालों के साथ पा-लो ना की कोई सहानुभूति भी नहीं है। कड़ी से कड़ी सजा ही इनका इलाज है।
15 अगस्त 2018 चेन्नई, तमिलनाडू (M)