वह मासूम झाड़ियों में पड़ा था। चादर और शाल तो लिपटा था बदन से, लेकिन ममता का वह आंचल नहीं था, जो उसे जिंदा रखता। इसलिए उस नन्हे शरीर में प्राण नहीं थे। उसके पास ही एक पीले रंग का झोला भी पड़ा था। घटना रामगढ़ में उपायुक्त आवास के पास गुरुवार दोपहर को घटी।
स्थानीय पत्रकार श्री विनीत ने पा-लो ना को बताया कि रामगढ़ कैंट क्षेत्र में बिजुलिया रेलवे ब्रिज के पास एक खटाल है। ये जमीन रेलवे की है। इस खटाल के बराबर में ही झाड़ियां हैं, जहां बच्चे का शव मिला है। इस जगह से करीब 100 मीटर की दूरी पर डीसी आवास, अनुमंडल कार्यालय है और करीब 200 मीटर पर कैंटोनमेंट का अस्पताल है। इलाका चहल-पहल वाला है।
इसी इलाके में एक व्यक्ति जब शौच के लिए गया तो उसकी नजर वहां पड़े नवजात पर गई। वह शॉल जैसे गर्म कपड़े और चादर में लिपटा था तथा उस पर चींटियां और कीड़े-मकौड़े लगे हुए थे। उस व्यक्ति ने जैसे ही बच्चे को देखा, शोर मचाकर अन्य लोगों को बुला लिया। कुछ ही देर में वहां लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई। पुलिस को भी सूचित किया गया। पुलिस आई और नवजात के शव को लेकर चली गई।
तस्वीरों से प्रतीत होता है कि बच्चा कुछ दिनों का है। यह स्टिलबर्थ यानी डिलीवरी के दौरान मृत्यु का मामला तो नहीं नजर आ रहा है। हालांकि मौत के कारणों की पुष्टि पोस्टमार्टम के बाद ही हो पाएगी। तस्वीरों को ध्यान से देखने पर ऐसा लगता है कि चादर को बिछाकर बच्चे को उस पर लिटाया गया है और फिर ऊपर से शॉल ओढ़ा दिया गया हो।
कहीं ऐसा तो नहीं कि बच्चे को उस झोले में डालकर वहां तक लाया गया हो, बच्चा जिंदा हो और फिर उसे निकालकर वहां रख दिया गया हो, ताकि किसी की नजर उस पर पड़ जाए और उसे बचाया जा सके। झाड़ियों की ओट उसे जानवरों से बचाने के लिए दी गई हो। अगर यही सच है तो इस बात का बहुत अफसोस है कि कानूनी रूप से वैध होने के बावजूद लोग अभी भी अज्ञानतावश बच्चों की हत्या कर रहे हैं। वे सरकारी अधिकारियों को बच्चे को सुरक्षित सौंपने की बजाय उन्हें असुरक्षित स्थानों पर छोड़ रहे हैं, जिससे बच्चों की मौत हो रही है। उन्हें समझना होगा कि केवल मंशा सही होने से ही बच्चों को बचाना संभव नहीं है, उसके लिए उन्हें तरीका भी सही अपनाना होगा।
शिशु परित्याग से जुड़े अधिकांश मामलों में यही देखने में आता है कि मां-बाप अनजाने में ही कानून के गुनहगार बन रहे हैं। वे या तो बच्चों की हत्या ही कर रहे हैं या फिर उनकी हत्या का प्रयास। वे खुद को और बच्चे को भी इस संकट से बचा सकते हैं, बच्चे को त्यागने की बजाय, सौंपने का विकल्प चुन कर।
03 मई 2018रामगढ़, झारखंड (M)