बच्ची के पिता ने ही छोड़ दिया था उसे निर्जन झोंपड़ी में !
19 SEPTEMBER 2020
KODERMA, JHARKHAND
क्या हुआ –
एक निर्जन झोंपड़ी में से आ रही किसी बच्चे के रोने की आवाज ने शनिवार मुंह अंधेरे मॉर्निंग वॉक पर निकले लोगों का ध्यान खींचा। शोर होने पर उसे एक ग्रामीण महिला ने वहां से ये सोचकर उठा लिया, कि कहीं कोई सियार या कुत्ता उसे खा नहीं जाए। दोपहर होते-होते बच्ची को पुलिस, चाईल्डलाईन व सीडब्लूसी से होते हुए स्पेशल एडॉप्शन एजेंसी पहुंचा दिया गया।
इसी बीच, कुछ लोग थाने पहुंचे और बच्ची को अपना बताते हुए उसे देने की मांग करने लगे। इस घटना ने मां की ममता पर नहीं, वरन पिता के दुलार पर सवालिया निशान लगाया है। मामले में जांच जारी है।
पा-लो ना को घटना की सूचना सीडब्लूसी कोडरमा व पत्रकार श्री कुंतलेश पांडे और श्री राम पुरी से मिली। विस्तार से घटना को समझने के लिए पालोना ने सभी संबंधित पक्षों से बातचीत की, जिसमें पुलिस, चाईल्डलाईन, सीडब्लूसी, पत्रकार व बच्ची पर दावा करने वाले उसके चाचा राहुल कुमार भी शामिल हैं।
मिली जानकारी के अनुसार, यह घटना कोडरमा के सतगावां प्रखंड की कतैया पंचायत अंतर्गत खैरां कला गांव में घटी। जिस झोंपड़ी में बच्ची मिली, कुछ समय पहले तक उसका उपयोग ताड़ी बेचने वाले लोग कर रहे थे। फिलहाल यहां कोई नहीं रहता था। नजदीक ही मुसहर टोला था। इसी टोले की निस्संतान महिला रूपा देवी ने बच्ची को वहां से उठा लिया और उसे नहलाकर काला टीका लगाकर अपने से ऐसे चिपटा लिया, मानो ये उनका ही बच्चा हो। सूचना मिलने पर चाईल्डलाइन ने वहां पहुंचकर बच्ची को उनसे ले लिया और उसे सीडब्लूसी कोडरमा के सुपुर्द कर दिया। इस मामले में सनहा दर्ज कर ली गई है और बच्ची को एडॉप्शन होम भेज दिया गया है। मगर बच्ची के चाचा व अन्य परिजनों द्वारा दावा किए जाने के बाद घटना ने नया मोड़ ले लिया है।
सरकारी व अन्य पक्ष –
“हमें सूचना मिली थी कि सतगावां प्रखंड के खैरा कला गांव में बरगद पेड़ के पास एक बच्ची लावारिस हालत में मिली है। बच्ची के मेडिकल टेस्ट्स करवा लिए गए हैं। किसी भी तरह का कोई कॉम्प्लीकेशन नहीं है। वह पूरी तरह स्वस्थ है और डॉक्टर्स के मुताबिक, एक दिन की है। उसे स्पेशल एडॉप्शन एजेंसी भेज दिया गया है।” – श्री बबलू कुमार, कॉर्डिनेटर, चाईल्ड लाईन सब सेंटर, सतगावां, कोडरमा
“यह बच्ची एक ऐसी झोंपड़ी में मिली, जिसे ताड़ी बेचने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता था। बच्ची को सुबह मुंह अंधेरे ही रखा गया था और ज्यादा वक्त भी नहीं बीता था, वरना सियार या कुत्ते उसे उठाकर ले जाते। सनहा दर्ज कर ली गई है। इस मामले में एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया जारी है।” – सब इंस्पेक्टर संजय कुमार शर्मा, थाना इंचार्ज सतगावां, कोडरमा
“हम लोग निकटवर्ती नवादा जिले के रहने वाले हैं। मेरी भाभी शोभा कुमारी (पति नागेंद्र कुमार) ने नवादा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, गोविंदपुर प्रखंड में 17-18 सितंबर की मध्य रात्रि एक बच्ची को जन्म दिया था। उसकी अगली रात जब सब सो रहे थे, मेरा भाई अपनी बच्ची को ले कर भाग गया। उसकी मानसिक हालत कुछ ठीक नहीं है। जैसे ही आधी रात को भाभी बच्ची को दूध पिलाने के लिए उठी और उसे वहां नहीं पाया, तो उन्होंने शोर मचा दिया। तभी से बच्ची को ढूंढ रहे हैं। पूछते पूछते यहां तक पहुंचे हैं। पुलिस की मदद चाहिए ताकि अपनी बच्ची को वापिस ले सकें। बच्ची का पैर भी कुछ मुड़ा हुआ है, जिसे हमें डॉक्टर को दिखाना है।” – श्री राहुल कुमार, बच्ची का चाचा
पा-लो ना का पक्ष –
पालोना समय पर बच्ची को निर्जन झोंपड़ी से निकाल उसके जीवन को बचाने वाली रूपा देवी का धन्यवाद अदा करता है। ऐसा लगता है कि यह घटना बच्ची के माता-पिता के बीच हुए किसी झगड़े या मनमुटाव का परिणाम है। जिसमें पिता ने गुस्से में आकर बच्ची को सार्वजनिक स्थान पर लाकर छोड़ दिया।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन के नजरिए से भी इस घटना की जांच होनी चाहिए। फॉरेन स्टडीज ने ये साबित किया है कि पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण केवल मांओं में नहीं, बल्कि पिता में भी पाए जाते हैं।
इस घटना ने पा-लो ना के उस विचार को साबित किया है, जिसमें हम हमेशा कहते हैं कि केवल मां को दोष देना ठीक नहीं, क्योंकि हर घटना में मां शामिल नहीं होती हैं।
शिशु हत्या और उनके असुरक्षित परित्याग के साथ साथ पा-लो ना जेंडर डिस्क्रिमिनेशन के भी खिलाफ है।
यदि बच्ची के चाचा के दावों में जरा भी सच्चाई है तो इस जांच को जल्द से जल्द पूरा कर बच्ची को उन्हें सौंप दिया जाए। एक दुधमुंही बच्ची वापिस अपनी मां की गोद में खेले, इससे बेहतर उसके लिए भला क्या हो सकता है। क्योंकि उसका या उसकी मां का इस घटना में कोई दोष नजर नहीं आ रहा। बच्ची के पिता को उसके कृत्य के लिए सजा मिलना भी जरूरी है, ताकि यह बाकी लोगों के लिए भी एक सबक हो।