वह बच्ची एक सड़क किनारे औंधे मुंह लेटी थी। कंकड़, पत्थर, मिट्टी सब उसके अगल-बगल पड़े थे। ऐसा लगता था कि वह सो रही है, लेकिन ये अंतिम नींद थी, जिसके बाद वह कभी नहीं उठी। पुलिस बच्ची को उस हालत में छोड़ने वाले तक पहुंची भी, लेकिन फिर उसे छोड़ दिया गया। घटना धनबाद-बोकारो मुख्य मार्ग पर महुदा बाजार पेट्रोल पंप के समीप बुधवार सुबह घटी।
चाईल्ड एक्टिविस्ट श्री शंकर रवानी ने तीन अक्तूबर की सुबह पा-लो ना को बताया कि पेट्रोल पंप के समीप एक नवजात बच्ची का शव एक कपड़े में लिपटा मिला है, जिस पर चास, बोकारो के मुस्कान अस्पताल का नाम लिखा है। घटना की जानकारी महुदा पुलिस थाने को दे दी गई है और उन्होंने जांच भी आरंभ कर दी है।
तब पा-लो ना ने घटना की जांच करने वाले थाना प्रभारी श्री नंदकिशोर सिंह से भी बातचीत की। उनके मुताबिक, जांच पड़ताल में सामने आया कि उस बच्ची का जन्म 30 सितंबर से एक अक्तूबर के बीच रात्रि में हुआ था। जन्म से ही बच्ची बीमार थी और उसे बेहतर इलाज के लिए मुस्कान अस्पताल रेफर किया गया था। बच्ची की मां डॉली बेबी काफी गरीब परिवार से है और बच्ची को हृदय रोग था, जिसका इलाज बेहद महंगा था। इसलिए बच्ची की मां डॉली उसे डिस्चार्ज करवाकर घर ले जा रही थी कि रास्ते में ही बच्ची की मौत हो गई। डॉली को कुछ समझ नहीं आया तो वह बच्ची को रास्ते में ही रखकर घर चली गई।
श्री सिंह ने ये भी बताया कि उन्होंने डॉली को पुलिस थाने बुलाया था और उसकी खराब स्थिति को देखते हुए बच्ची का शव उन्हें सौंप दिया गया। उन्होंने मानवता का परिचय दिया और इस मामले में कोई केस दर्ज नहीं किया, लेकिन उनसे अनजाने में कानून का उल्लंघन हो गया। कायदे से इस मामले में बच्ची का शव मिलने के बाद आईपीसी की धारा 318 के तहत मामला दर्ज होना चाहिए था।
पा-लो ना ने बच्ची की मां डॉली बेबी से भी बात की। यह पहला अवसर था, जब एक ऐसी मां से बात हो रही थी, जिसने अपनी बच्ची को बीच राह में छोड़ दिया था। डॉली ने बताया कि वह बहुत ही गरीब परिवार से हैं। उनका पति गया में छोटी-मोटी दुकान करता है। धनबाद में उनका मायका है। उनकी पहले से भी एक बेटी है। घर में मां-बाप हैं। बड़ी बहन भी अभी आई हुई है। और भाई कहीं बाहर रहता है।
बच्ची के इलाज पर हर दिन बहुत खर्च आ रहा था। डॉक्टर ने कह दिया था कि जब तक वह मशीनों पर है, तब तक ही जिंदा रहेगी। इलाज की वजह से दो ही दिन में उनके ऊपर 25-30 हजार का कर्जा भी हो गया। जब वह दो तारीख की शाम बच्ची को डिस्चार्ज करवाकर ले जा रही थी तो पांच-दस मिनट में ही बच्ची की मौत हो गई। उन्हें कुछ समझ नहीं आया, इसलिए वह बच्ची को सड़क किनारे ही रखकर चली गई। लेकिन पुलिस का फोन आने पर वह थाने पहुंची और बच्ची को वापिस लाकर विधिवत दाह संस्कार किया।
पा-लो ना डॉली बेबी की मजबूरी समझती है, और उनसे सहानुभूति भी रखती है, लेकिन कुछ बातें इस मामले को संदिग्ध बना रही हैं, जैसे कि डॉली डिलीवरी और ट्रीटमेंट के लिए अकेले ही अस्पताल गईं, उनके साथ कोई नहीं था। यहां तक कि बच्ची की मौत के बाद भी वह अकेले ही उसका शव लेकर जा रही थीं, जबकि घर में कई लोग मौजूद थे। न आस-पड़ौस, और न ही परिवार से कोई सदस्य उनके साथ था। उनके मुताबिक वह बहुत ही गरीब परिवार से हैं, लेकिन वह हर जगह टैक्सी से ही यात्रा कर रहीं थीं। पति का मोबाईल नंबर बहुत मांगने पर भी उन्होंने उपलब्ध नहीं करवाया। जब वह अकेली घर पहुंची तब भी परिजनों ने बच्ची के संबंध में पूछताछ नहीं की।
पा-लो ना को महसूस हुआ कि दूसरी बार भी बेटी होने की वजह से इलाज में कोताही बरती जा सकती है। पा-लो ना को आशंका है कि डॉली के पति को शायद दूसरी बेटी के जन्म लेने की सूचना न हो।
दोबारा ऐसा न हो, इसलिए पा-लो ना की समन्वयक ने फोन पर ही डॉली की काउंसलिंग की। उन्हें बताया कि बच्ची को सरकारी इलाज मुहैया करवाया जा सकता था। यही नहीं, यदि कोई कन्या शिशु की वजह से या किसी भी और वजह से बच्चे को अपने पास नहीं रखना चाहता है, तो सरकार उसके संरक्षण के लिए तैयार है। इसके अलावा बच्चे को किसी भी वजह से सार्वजनिक स्थान पर छोड़ना या उसके शव को भी छोड़ना अपराध है, जिसके लिए सजा का प्रावधान है, यह भी डॉली को बताया गया।
पा-लो ना का मानना है कि इस तरह के मामलों में आरोपी परिवार को सबसे पहले काउंसलिंग और अवेयरनेस की जरूरत होती है, ताकि भविष्य में होने वाले बच्चे को किसी भी तरह के नुकसान से बचाया जा सके। इसके साथ ही जागरुक लोग अन्य लोगों को भी जागरुक करने का काम कर सकते हैं।
03 अक्टूबर 2018 धनबाद, झारखंड (F)