क्या हुआ –
गोड्डा के महागामा में गुरुवार सुबह एक नवजात बच्ची का शव मिलने से आस-पास के इलाके में हंगामा मच गया। बच्ची को एक चादर के टुकड़े में बांध कर काले रंग के पॉलीथिन में पैक कर एक झोले में डाला गया था।
ऊर्जानगर स्थित ईसीएल अस्पताल के पीछे की बाऊंड्री के पास उगी घास में मिले इस शव को पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए भेज आईपीसी 318 के तहत मामला दर्ज कर लिया है। यह गौरतलब है कि गोड्डा में नवजात शिशु का शव मिलने पर पहली
बार केस दर्ज किया गया है।
पा-लो ना को घटना की सूचना स्थानीय पत्रकार प्रवीण तिवारी से मिली, जबकि पत्रकार अमित कुमार ने घटना की विस्तार से जानकारी दी।
सरकारी व अन्य पक्ष –
“महागामा के ऊर्जानगर स्थित ईसीएल अस्पताल के पीछे पड़े एक झोले पर स्थानीय लोगों की निगाह पड़ी। कौतुहलवश जब उन्होंने इसे खोला तो इसमें एक नवजात बच्ची को देखकर लोग चौंक गए। सबको अफसोस इस बात
का था कि वह जिंदा नहीं थी। लोग इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि यदि बच्ची जीवित होती तो वे उसका पालन पोषण कर लेते।
पुलिस भी घटनास्थल पर पहुंची और शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया। ये पहली बार हुआ है कि लावारिस अवस्था में मिले किसी बच्चे के शव का पोस्टमार्टम करवाकर एफआईआर दर्ज की गई हो।
डॉक्टर का कहना था कि बच्ची की पीठ पर चोट लगी है। लेकिन उसकी मौत पेट में ही हो गई है। शायद बच्ची की मां को किसी ने पेट पर हिट किया होगा, जिससे उसको भी चोट आई और इसी वजह से उसकी मौत हो गई।” –
श्री अमित कुमार, स्थानीय पत्रकार, गोड्डा, झारखंड
“बच्ची न्यूबोर्न थी। शायद जन्म के तुरंत बाद ही उसे त्याग दिया गया था, क्योंकि वह एक लड़की थी। उसकी नाभि भी साथ लगी थी, जिससे लगता है कि उसका जन्म किसी अस्पताल में नहीं हुआ था, बल्कि घर में
ही हुआ होगा।
बच्ची के शव का पोस्टमार्टम करवाया गया है, जिसकी रिपोर्ट अभी मिली नहीं है। इस केस में आईपीसी 318 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है।” –
श्री वी के चौधरी, एसडीपीओ गोड्डा, झारखंड
“आमतौर पर गर्भ में बच्चे को चोट लगने की आशंका बहुत कम होती है, क्योंकि बच्चे के चारों तरफ कई सुरक्षा परतें होती हैं, जो किसी भी धक्के या चोट से उसकी रक्षा करती हैं। बहुत ज्यादा जोर से डाईरेक्ट
हिट करने पर रेयर केस में बच्चे को इतनी चोट लग सकती है कि उसकी मौत हो जाए।
तस्वीर में बच्ची का शरीर गुलाबी नजर आ रहा है। इससे लगता है कि उस का जन्म सम्भवतः जीवित अवस्था में हुआ होगा। यदि वह मृत पैदा होती तो स्किन का कलर कुछ पीला सा होता। उसे छोड़े हुए भी ज्यादा देर नही हुई थी, क्योंकि बॉडी
का डि-कलरशन नहीं हुआ था। काफी देर होने पर शरीर का रंग हल्का नीला हो जाता। अनुमान है कि देर रात या अल सुबह ही किसी समय जन्म के बाद उसे जीवित अवस्था में छोड़ा गया होगा और जब उसे दूर से उछाला गया होगा, तो पीठ के बल गिरने
से उसे पीठ पर चोट लगी होगी।” –
डॉ. वैशाली निगम, इंचार्ज एनआईसीयू, देवास, मध्य प्रदेश
पा-लो ना का पक्ष –
पा-लो ना डॉक्टर वैशाली की बात से सहमत है। हमारा मानना है कि –
बच्ची का जन्म किसी अस्पताल में न होकर घर या किसी अन्य स्थान पर नार्मल डिलीवरी के दौरान हुआ होगा।
बच्ची को जब डिस्पॉज ऑफ करने के ख्याल से दीवार की तरफ उछाला गया होगा, उसी समय उसकी पीठ पर चोट लगी होगी। क्योंकि बच्ची का शव पीठ के बल मिला है।
पा-लो ना गोड्डा पुलिस के प्रति शुक्रगुजार है, जिन्होंने देर से ही सही, पर नवजात बच्चों के खिलाफ हो रहे इस जघन्य अपराध को दर्ज करने की शुरुआत तो की।
हम उम्मीद करते हैं कि पुलिस गंभीरता और तत्परता से इस केस की सघन जांच कर दोषियों को जल्द सामने लेकर आएगी।
हम झारखंड पुलिस से अपील करते हैं कि लावारिस स्थिति में मिले सभी नवजात शवों का पोस्टमार्टम एक एक्सपर्ट पैनल से करवाकर उनकी मृत्यु के कारणों पर रिसर्च करवाई जाए।
मृत्यु के कारणों तक पहुंचने के लिए ये रिसर्च आवश्यक है, ताकि ये मालूम हो सके कि इतनी बड़ी संख्या में मिल रहे नवजात शवों में से कितने शिशुओं की मृत्यु नॉर्मल है और कितने बच्चों की
हत्या की गई है।
यह ध्यान देना होगा कि इन मामलों में सख्त कार्रवाई नहीं होने का फायदा ही इन बच्चों के हत्यारे उठाते हैं और बिना किसी डर के बच्चों की हत्या को अंजाम देते हैं।
पा-लो ना झारखंड के सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट से भी ये अपील करता है कि सेफ सरेंडर पॉलिसी व कानूनी प्रावधानों पर प्रदेश में जागरुकता अभियान शुरू किया जाए।
जागरुकता अभियान के तहत सभी जच्चा बच्चा केंद्रों, आंगनबाड़ी केंद्रों, अस्पतालों, भीड़ वाले सार्वजनिक स्थानों पर पोस्टर लगाए जाएँ, पैम्फलेट बांटे जाएं और सभी बाल संरक्षण पदाधिकारियों व स्थानीय
अधिकारियों के नंबर प्रमुखता से डिस्प्ले किए जाएं।
15 OCTOBER 2020
GODDA, JHARKHAND (F, D)