ये कमजोर, बीमार सी लगने वाली बच्ची कैसा नसीब लिखवा कर लाई है कि जन्म के कुछ ही दिनों के भीतर चार-चार मांओं की गोद नसीब होने के बावजूद आज वह पांचवीं मां का इंतजार करने को विवश है। फिलहाल कमजोर हालत और कम वजन की वजह से वह शहर के सदर अस्पताल में इलाजरत है। लेकिन जिन हालातों से गुजरकर वह यहां तक पहुंची है, वे अविश्वसनीय से लगते हैं। यह घटना दरभंगा के लहेरियासराय, सैदनगर मुहल्ला के साथ-साथ एकमी पुल के नजदीक स्थित बस्ती के आस-पास सोमवार को घटी।
दरभंगा के चाईल्ड प्रोटेक्शन ऑफिसर श्री दिनेश कुमार ने पा-लो ना को बताया कि सोमवार की दोपहर एक महिला आईसीआईसीआई बैंक के सामने चाहरदीवारी के पास एक बच्ची को गोद में लेकर बैठी थी। वह गर्मी से बेहाल नजर आ रही थी। कुछ देर बाद छांव में सुस्ताने की मंशा से एक और महिला वहां आकर बैठ गई। दोनों बात करने लगीं। पहली महिला ने दूसरी महिला से चापाकल के बारे मे पूछताछ की और अपनी बच्ची को उस महिला को संभलवाकर पानी पीने चली गई।
जब बहुत देर तक वह महिला नहीं लौटी तो उक्त महिला ने शोर मचाना शुरू कर दिया। उसके शोर को सुन कर एक अधेड़ व्यक्ति उसके पास पहुंचे और परेशानी का कारण पूछने लगे। कुछ बताने से पहले उक्त महिला ने उनसे बच्ची को लेने का अनुरोध किया, जिसे उन्होने स्वीकार कर लिया। फिर वह महिला उन सज्जन व्यक्ति को बच्ची को पकड़ाकर पूरा किस्सा बताने लगी। कुछ ही देर में वहां लोगों की भीड़ लग गई, जिसका फायदा उठाकर वह महिला भी वहां से गायब हो गई। अब ये व्यक्ति परेशान हो गए। दोनों महिलाओं की खोजबीन होने लगी। किसी की सलाह पर वह महिला प्रकोष्ठ भी गए, लेकिन वहां से उन्हें कोई सहायता नहीं मिली। अंततः वह वापिस उसी जगह आ गए।
इतने में शोर-शराबा सुन कर सैदनगर मुहल्ले की लीला देवी, पत्नी संतोष सहनी वहां पहुंची और बच्चे को अपना लिया। वह बच्चे को लेकर अपने घर चली गई। फिर उन्हें किसी तरह इस बात का अंदेशा हुआ कि बच्ची को इस तरह रखना गैर कानूनी है। इसलिए उन्होंने बच्ची को रात में ले जाकर एकमी पुल के पास रख दिया, जिसे वहीं पास की झुग्गी बस्ती में रहने वाली ममता देवी, पत्नी शंभु पासवान ने उठा लिया।
अगले दिन इस संबंध में खबर छपने पर चाईल्ड प्रोटेक्शन ऑफिसर श्री दिनेश कुमार ने पहल करते हुए चाईल्ड लाईन, स्पेशल एडॉप्शन एजेंसी और बाल कल्याण समिति को बच्ची का पता करने का दायित्व सौंपा। उनकी एक संयुक्त टीम बच्ची की खोजबीन के लिए जब पहले लीला देवी के पास पहुंची तो उन्होंने किसी बच्चे के मिलने से इनकार कर दिया। फिर बाद में सैदनगर मुहल्ले से बच्ची की बरामदगी हुई। शुरू में इस घटना को लेकर कन्फ्यूजन की स्थिति रही। सभी को लग रहा था कि ये दो अलग बच्चों की कहानी है। लेकिन बाद में स्पष्ट हुआ कि ये एक ही बच्ची है, जो सैदनगर से होते हुए एकमी पुल पर पहुंच गई।
बच्ची बहुत कमजोर है, उसका वजन मात्र 1.4 किलोग्राम है। यही वजह है कि एक महीने की होते हुए भी वह उतनी बड़ी नहीं दिखाई देती। बच्ची को बेहतर इलाज के लिए सदर अस्पताल के एनआईसीयू वार्ड में रखा गया है। बच्ची को रिकवर करने में दिनेश जी के अलावा चाईल्डलाईन दरभंगा ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यदि बच्ची को वहां से नहीं रिकवर किया जाता तो उसे बेहतर इलाज नहीं मिल पाता।
इसलिए टीम पा-लो ना आम जनता से भी ये अपील करती है कि किसी बच्चे के कहीं भी मिलने की स्थिति में सबसे पहले उसे मेडिकल केयर उपलब्ध करवाएं, ताकि उसे बचाया जा सके। आम जन की जरा सी लापरवाही बच्चे के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। बच्चे को अपने पास रखने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी जा सकती है, लेकिन पहले उसका जिंदा रहना जरूरी है। इसके साथ साथ हम सरकार से भी ये अपील करते हैं कि एडॉप्शन पॉलिसी में उपयुक्त बदलाव की मांग पर ध्यान दें। जो लोग बच्चे को बचाते है, उनके बच्चे के साथ जुड़ाव को महसूस करते हुए उन्हें उनके अधिकार से वंचित न करे। सरकार का दायित्व है कि वह आम जन को आश्वस्त करे कि उनकी इच्छा के बिना बच्चे को उनसे नहीं छीना जाएगा। ऐसा करके वे बच्चों पर मंडराते एक खतरे को कम कर सकते हैं, जो उनके इलाज से जुड़ा है।
28 मई 2018 दरभंगा, बिहार (F)