उसे एक खंडहर के बाहर कूड़े के ढेर पर फेंका गया था। निर्जीव हालत में मिली थी वह। शरीर पर खरोंचों के निशान थे और उसका कुछ हिस्सा जानवरों ने खा भी लिया था। घटना चमोली जिले के नगर गोपेश्वर के बसंत बिहार इलाके में रविवार सुबह घटी।
उत्तराखंड भाजपा के साईबर सेल में कार्यरत श्री शेखर वर्मा ने पा-लो ना को घटना की सूचना दी और बताया कि एक नवजात बच्ची का शव चमोली के गोपेश्वर नगर में मिला है। उनकी सूचना पर टीम ने चमोली की बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की जिला संयोजिका चंद्रकला तिवारी जी से संपर्क किया, जिन्होंने घटना की विस्तृत जानकारी दी। इसके मुताबिक, बच्ची को पैदा होते ही बसंत विहार इलाके में स्थित खँडहर के बाहर मौजूद कूड़े के ढेर पर फेंक दिया गया था। उसके शरीर पर खरोंचों के काफी निशान मिले हैं, जिससे आशँका होती है कि जानवरों ने उसे नोंचा होगा।
चंद्रकला जी ने बताया कि उन्होंने मामले की सही तरीके से छानबीन के लिए चमोली एसपी तृप्ति भट्ट को एक ज्ञापन भी सौंपा है और उन्हें प्रशासन से पूरी उम्मीद है कि जल्द ही इस मामले के दोषियों को सबके सामने लाया जाएगा।
एसओ श्री कुंदन राम ने पा-लो ना को बताया कि पुलिस ने घटना की जांच-पड़ताल शुरू कर दी है। शव का पोस्टमार्टम करवा दिया गया है। इसके अलावा उसकी डीएनए सैंपलिंग भी की गई है। दो-तीन दिन में पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ जाएगी, उसी के आधार पर उपयुक्त धाराओं में केस दर्ज किया जाएगा। उन्होंने कहा कि मौत का कारण कुछ भी निकले, केस दर्ज जरूर होगा, वे केवल इतना जानने का इंतजार कर रहे हैं कि बच्ची की मौत जन्म के दौरान हुई या कूड़े में फेंकने के बाद। उन्होंने यह भी बताया कि उनके 7-8 साल की पोस्टिंग के दौरान वहां यह पहली घटना उनकी जानकारी में आई है।
बच्चों के साथ हो रहे इस अमानवीय व्यवहार ने पा-लो ना मुहिम को जन्म दिया है। टीम पा-लो ना का मानना है कि शिशु जीवित हो या मृत, उसे फेंका नहीं जाना चाहिए। सरेंडर करने की बजाय फेंके जाने से बच्चे जानवरों का शिकार हो जाते हैं, जो पूरी मानवता के लिए एक बदनुमा काला दाग है। इन घटनाओं को रोकने के लिए सरकार के साथ-साथ समाज को भी जागरुक करना होगा, जिसके लिए टीम पा-लो ना प्रयासरत है।
टीम को राहत है कि चमोली पुलिस इस मामले में संवेदनशील है। इसके साथ ही चंद्रकला जी की शुक्रगुजार है कि कैंडल मार्च के जरिए उन्होंने एक मृत नवजात शिशु के दर्द को सबके सामने लाने की कोशिश की। अगर हर जिले में ऐसा होने लगे तो जिले के आला अधिकारियों का ध्यान इस मुद्दे पर जाएगा, केस दर्ज होंगे, जांच-पड़ताल होंगी, लोगों में इस गुनाह को करने को लेकर डर बैठेगा और फिर शायद इन अपराधों में कमी आएगी। लेकिन इससे पहले लोगों को बच्चा सरेंडर करने का विकल्प भी उपलब्ध करवाना सरकार की जिम्मेदारी है।
15 जुलाई 2018 चमोली, उत्तराखंड (F)