उस बच्चे को जन्म के तुरंत बाद गोबर में छोड़ दिया गया था, निर्वस्त्र। गर्भनाल भी नहीं कटी थी। मात्र एक किलो वजन था उसका और डिलीवरी प्रीमेच्योर थी, यानि सात माह से भी कम वय का था। पानी से गीले हो गए गोबर पर पड़े उस नन्हे बच्चे की पुकार एक दूसरे बच्चे ने सुनी और दौड़कर अपने मां-पिता को बुला लाया, जिन्होंने उसे गोबर पर से उठा अस्पताल पहुंचाया। घटना रविवार को पलामू के सदर थाना क्षेत्र के जोड़ गांव में घटी।
पत्रकार श्री नीरज ने पा-लो ना को घटना की सूचना दी। इसके मुताबिक, एक नवजात लड़के को कोई तड़के ही जोड गांव में गोबर के ढेर पर छोड़ गया था। यह गोबर पानी लगने से गीला हो गया था। गांव को कोई बच्चा सुबह खेलने के लिए उस तरफ गया तो उसने बच्चे की पुकार सुनी और बच्चे को वहां देखकर अपने परिजनों को बुला लाया। यही लोग बच्चे को गोबर से उठा कर सदर अस्पताल ले गए और सदर थाना पुलिस को भी सूचित कर दिया। अस्पताल के डॉक्टर्स ने बच्चे की क्रिटिकल स्थिति देखते हुए उसे रिम्स रेफर कर दिया।
नीरज द्वारा बच्चे को रिम्स भेजे जाने की सूचना मिलने के बाद शिशु के इलाज में कोई देरी न हो और उसे तुरंत बेहतर इलाज मुहैया हो, इस मंशा से पा-लो ना ने रांची बाल कल्याण समिति को सूचित किया। साथ ही पलामू सीडब्लूसी में रहे श्री रमेश को भी व्यक्तिगत रूप से फोन करके बच्चे को एंबुलैंस में ही लाने और रांची सीडब्लूसी से कॉर्डिनेशन की दरख्वास्त की। उन्हें शहर के बेस्ट बेबी केयर अस्पताल की जानकारी भी दी गई।
इसके बावजूद पलामू सीडब्लूसी ने रांची सीडब्लूसी के साथ कोई कॉर्डनेशन नहीं करते हुए बच्चे को सीधे रिम्स में भर्ती करवा दिया था, जहां डॉक्टर्स ने उसकी खराब स्थिति को देखते हुए अपने हाथ ख़ड़े कर दिए और बच्चे को रानी चिल्ड्रेन अस्पताल ले जाने के लिए रेफर कर दिया। रात करीब आठ-साढ़े आठ बजे रांची सीडब्लूसी की श्रीमती तनु सरकार से पा-लो ना को ये जानकारी मिली। दरअसल यही वह अस्पताल था, जिसके बारे में पा-लो ना ने श्री रमेश को बताया था और उन्होंने आश्वस्त किया था कि वह उस जानकारी को पलामू सीडब्लूसी तक पहुंचा देंगे। पा-लो ना ने उनसे पलामू सीडब्लूसी का नंबर शेयर करने का भी आग्रह किया था, जिसे उन्होंने उपलब्ध नहीं करवाया।
रात करीब 9 बजे शिशु को रानी चिल्ड्रेन अस्पताल ले जाया गया। इस मौके पर करुणा एनएमओ के अलावा पा-लो ना टीम भी मौजूद थी। ड़ॉक्टर ने जैसे ही बच्चे को देखा, उन्होंने बता दिया कि बच्चे को बचाना काफी मुश्किल है। हालांकि उन्होंने अपना पूरा प्रयास किया, बावजूद इसके तीन सितंबर की सुबह बच्चे ने अंतिम सांस ली। इसकी जानकारी पा-लो ना ने करुणा एनएमओ की श्रीमती संगीता से ली, जिनकी सुपुर्दगी में शिशु को रखा गया था।
पा-लो ना ने घटना की रिपोर्ट करने वाले पत्रकार श्री नीरज और सदर थाने की पुलिस अधिकारी ममता कुमारी से भी बातचीत की और सारी घटना का विवरण पता किया। नीरज में पलामू सीडब्लूसी की कार्यप्रणाली को लेकर बहुत असंतोष था। उनके मुताबिक इस मामले को लेकर समिति जरा भी संवेदनशील नहीं थी। ममता कुमारी के मुताबिक केस आईपीसी की धारा 308 के तहत दर्ज कर लिया गया है।
पा-लो ना का मानना है कि बच्चे की स्थिति बहुत खराब थी और उसे बचाना मुश्किल ही था, लेकिन जब तक सांस, तब तक आस नहीं छोड़ी जा सकती। बार-बार ये अपील की जाती है कि ये बच्चे जिन हालातों में मिलते हैं, उनमें एक पल की देऱी भी इनके लिए जीवनदायी या जानलेवा साबित हो सकती है। इसलिए बिना किसी देरी के इन्हें बेहतर से बेहतर इलाज मुहैया होना चाहिए। जागरुकता कार्यक्रम आयोजित हों, जिनसे लोगों को पता चले कि बच्चे को कहीं भी नहीं छोड़ना है। पालने लगाए जाएं, ताकि बच्चों को छोड़ने की बजाय उन्हें सुरक्षित पालने में रखा जा सके। इसके अलावा इन घटनाओं के कानूनी पक्ष को मजबूत बनाना भी बहुत जरूरी है। जैसे इस मामले में धारा 308 की बजाय आईपीसी 304, 304 ए, 315 और जेजे एक्ट की धारा 75 लगनी चाहिए।
02 सितंबर 2018 पलामू, झारखंड (M)