क्या हुआ –
एक बच्ची को जन्म के कुछ ही घंटों के अंदर करीब पांच फिट गहरे गड्ढे में बिना कपड़ों के छोड़ दिया गया। उसकी नाल को इस तरह से काटा गया था कि रक्त बहता रहे और अत्यधिक रक्त स्त्राव से उसकी मौत हो जाए। औंधे मुंह मिट्टी पर लेटी उस बच्ची की तस्वीर बता रही थी कि उसे त्यागने वाले उसे जीवित ही नहीं देखना चाहते थे। ये पूरी घटना गुरुवार, 11 अप्रैल की रात लगभग आठ से दस बजे के बीच राजस्थान की राजधानी जयपुर के चाकसू तहसील के कोटखावदा थाना क्षेत्र स्थित हरिनारायणपुरा गांव में घटी।
बच्ची के रोने की आवाज ने ग्रामीणों का ध्यान खींचा। जैसे ही उन्होंने मिट्टी से लथपथ एक नवजात बच्ची को देखा, तुरंत 104 नवंबर पर फोन करके एंबुलेंस को बुलवा लिया। उसी से वे बच्ची को लेकर कोटखावदा पीएचसी पहुंचे, जहां अस्पताल कर्मियों ने बच्ची को साफ किया। बच्ची का प्राथमिक इलाज करने वाली डॉ. शबनम कौसर ने पा-लो ना को बताया कि बच्ची का जन्म कुछ ही घंटों पहले हुआ था। उसकी गर्भनाल को इस तरह काटा गया था कि उसमें से खून बहता रहे। उसमें कोई क्लिप भी नहीं लगाया गया था। गड्ढे की मिट्टी उसकी नाल में घुस गई, जिससे खून का बहना बंद हो गया और बच्ची की जान बच गई। बच्ची पूरी तरह स्वस्थ है और उसका वजन भी करीब 3 किलो है।
सरकारी पक्ष –
जयपुर बाल कल्याण समिति सदस्य श्रीमती निशा पारीख ने पा-लो ना को बताया कि बच्ची को जेकेलोन अस्पताल में भर्ती करा दिया गया है। कुछ दिन वहीं रखकर उसकी देखभाल की जाएगी। उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि इतनी जागरुकता फैलाने के बावजूद लोग इस बात को समझ क्यों नहीं रहे हैं कि बच्चों को यूं इधर-उधर न छोड़ें। आखिर ऐसा क्या करें कि ये घटनाएं रुक जाएं। उन्होंने भगवान का शुक्र मनाया कि बच्ची को कोई नुकसान नहीं पहुंचा।
वहीं थाना प्रभारी कोटखावदा श्री हरि सिंह ने पा-लो ना को बताया कि इस मामले मे आईपीसी के सेक्शन 317 के तहत एफआईआर दर्ज कर ली गई है।
पा-लो ना का पक्ष –
पा-लो ना को इस घटना की सूचना बारा के पत्रकार श्री ब्रजेश कुमार से मिली, जिसे पुष्ट किया पत्रकार श्री अंकुर जाखड़ और श्री विनय पंत। उन्होंने घटना का पूरा विवरण उपलब्ध करवाया। पा-लो ना को लगता है कि इस बच्ची को केवल लड़की होने की सजा मिली है। इसीलिए रात के अंधेरे में बच्ची की जान लेने की नीयत से ही उसे गड्ढे में डाल दिया गया। शायद वे उसके ऊपर मिट्टी डालकर उसे जिंदा दफनाने की मंशा रखते थे। उन्होंने सोचा होगा कि मिट्टी के नीचे दबी बच्ची लगातार खून के बहते रहने से कुछ ही देर में दम तोड़ देगी, और किसी को पता भी नहीं चलेगा। लेकिन कोई आहट होने या किसी के वहां आ जाने से वे लोग अपने मंतव्य में सफल नहीं हो सके और वहां से भाग गए, जिससे बच्ची की जान बच गई।
इसलिए पुलिस को इसमें आईपीसी के सेक्शन 317 (एबेंडनमेंट एंड एक्सपोजर) के साथ साथ आईपीसी की धारा 307 (हत्या का प्रयास) और जेजे एक्ट का सेक्शन 75 (बच्चे के साथ क्रूरता) भी लगाना चाहिए। इसके साथ ही बच्ची के डीएनए सैंपलिंग के जरिए उसके परिवार तक पहुंचने का गंभीर प्रयास करना चाहिए।
जागरुकता के साथ साथ कानून का कड़ा डर ही वह उपाय है, जो इन घटनाओं पर विराम लगा सकता है और अबोध शिशुओं की जान बचा सकता है।
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11 April 2019 Jaipur, Rajasthan (F)