CHATRA: पुटुस की झाड़ी में अटकी मिली नवजात

02 जनवरी 2024, मंगलवार, चतरा, झारखंड।

टीम पालोना

झारखंड के चतरा जिले में एक नवजात बच्ची का शव मिला है। पुटुस की झा़ड़ियों में मिली बच्ची के तन पर कपड़े का एक टुकड़ा भी नहीं था। उसकी गर्भनाल भी साथ लगी थी। ग्रामीणों की सूचना पर पुलिस ने शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है। साथ ही आईपीसी 318 में केस दर्ज कर लिया है।

कब, कहां, कैसे मिली नवजात

पालोना के झारखंड ग्रुप में चतरा के वरिष्ठ पत्रकार (नाम नहीं बताना चाहते) ने इस घटना की सूचना शेयर की। उन्होंने न्यूजस्केल लाइव का एक लिंक वहां शेयर किया। इसके मुताबिक, चतरा के असढीया गांव के मांडर टांड के समीप झाड़ी से एक नवजात बच्ची का शव पुलिस ने मंगलवार को बरामद किया। पुलिस ने सीडब्लूसी चतरा के अध्यक्ष श्री धनंजय तिवारी को इसकी सूचना दी। 

इसके बाद सीडब्लूसी अध्यक्ष श्री तिवारी, सब इंस्पेक्टर श्री मनोज पाल और पुलिस को सूचना देने वाले श्री सिकंदर ठाकुर से भी पालोना ने बात की।

डर से पुलिस को फोन नहीं कर रहे थे लोग

हम सीसीएल की गाड़ी चलाते हैं। सुबह 10 बजे के आसपास उस रास्ते से गुजरे तो देखा कुछ लोग खड़े हैं वहां। हमारे एक परिचित ने हमें घटना के बारे में बताया। हमने उन्हें पुलिस को सूचना देने को कहा तो कोई भी तैयार नहीं हुआ। वे डर रहे थे कि पुलिस उन्हें पकड़ लेगी। तब हमने 100 नंबर डायल किया। कुछ ही देर में पुलिस वहां आई और बच्ची के शव को ले गई।

श्री सिकंदर ठाकुर

हमें करीब 12 बजे के आसपास बच्ची की सूचना मिली थी। सिकंदर नामक शख्स ने डायल 100 पर सूचना दी थी। घटनास्थल पर पहुंचे तो वहां लोगों की भीड़ जमा थी। बच्ची का शव पुटुस की झाड़ी में अटका हुआ था। उसका मुंह नीचे की ओर था। शरीर पर गर्भनाल भी लगी हुई थी। ऐसा लगता है कि कहीं और से लाकर शव को वहां डाला गया है। हमने शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है। हॉस्पिटल से बताया गया कि यहां बच्चे के शव का पोस्टमॉर्टम नहीं होता है। इसलिए उसे यहां से हजारीबाग रेफर किया गया है। साथ ही इसमें आईपीसी 318 के तहत एफआईआर भी दर्ज कर ली है।


सब इंस्पेक्टर मनोज पाल

हमें सदर थाने के सब इंस्पेक्टर मनोज पाल ने फोन पर घटना की जानकारी दी थी। हमने उन्हें शव का पोस्टमॉर्टम करवाने और केस को आईपीसी 318 में दर्ज करने का निर्देश दिया है।

श्री धनंजय तिवारी, सीडब्लूसी अध्यक्ष, चतरा।

ये INDIRECT PARENTAL INFANTICIDE लगता है – PaaLoNaa

बच्ची के शव को देखने से ऐसा लगता है, मानो ये INDIRECT PARENTAL INFANTICIDE का मामला हो। बच्ची के शरीर पर कोई कपड़ा नहीं होना, खून व गर्भनाल लगा होना इसकी गवाही देते हैं। मालूम होता है कि जन्म लेने के तत्काल बाद उसे लाकर यहां डाला गया है। इसके अलावा, कुछ दूरी से उसे उछाला गया प्रतीत होता है। जैसे कोई हड़बड़ी में आकर वहां बच्ची को डाल गया हो। उसका मुंह नीचे की ओर है। 

हम धन्यवाद करते हैं सिकंदर ठाकुर और सब इंस्पेक्टर मनोज पाल का भी, जिन्होंने सही समय पर सही फैसले लिए। साथ ही सीडब्लूसी अध्यक्ष धनंजय तिवारी जी का भी, जिन्होंने पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए। 

श्री तिवारी पिछले कई सालों से पालोना के व्हॉट्सग्रुप से जुड़े हुए हैं। जब भी कोई नवजात शिशु कहीं मिलता है तो वह उस के लिए पहल करते हैं। इन घटनाओं में पहली बार 2019 में झारखंड के चतरा में ही उपयुक्त सेक्शन में  एफआईआर दर्ज की गई थी। इसके लिए श्री तिवारी ने विशेष प्रयास किए थे। वह मीडिया से भी जुड़े रहे हैं। 

शिशु हत्या को रोकने के लिए किए जा रहे उनके प्रयासों के लिए साल 2022 में उन्हें पालोना के संवेदना आभार समारोह में स्पंदन अवॉर्ड से अलंकृत भी किया गया था।

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अनजाने में किया गया यह व्यवहार शिशु के जीवन के लिए खतरा पैदा कर सकता है….

अगर आपके घर में कोई गर्भवती स्त्री है या फिर ऐसी महिला, जिसकी अभी डिलीवरी हुई है, तो ये खबर जरूर पढ़िए। कहीं अनजाने में आपके यहां भी महिला के साथ ऐसा बर्ताव तो नहीं होता। अगर होता है तो इसे ठीक कीजिए, नहीं तो ये नवजात शिशु के लिए जानलेवा साबित हो सकता है।

हाल ही में दिल्ली और चार साल पहले जबलपुर में हुई बच्ची की हत्या के बाद मां के गिरफ्तार होने के बाद जो सच्चाई सामने आती है, वह आंखें खोलने वाली है। वह मां से ज्यादा परिवार और समाज पर सवाल खड़े करती है। एक मां, जो नौ माह तक हर कष्ट सहकर बच्चे के आने का बेकरारी से इंतजार करती है, उसके लिए सपने बुनती है, ख्यालों में उससे बात करती है, उसे समझाती है, दुलारती है, उसके अनिष्ट की आशंका से भी कांप जाती है, फिर उस शिशु के जन्म के बाद उसकी दुश्मन क्यों बन जाती है।

दिल्ली के पूर्वी विनोद नगर में रहने वाली नेहा और सौरभ के यहां जब स्टेविया का जन्म हुआ तो दोनों बहुत खुश थे, लेकिन उनकी खुशी ज्यादा देर ठहर नहीं सकी। बच्ची के पालन-पोषण को लेकर दिए जा रहे निर्देशों और उसके रोने पर सौरभ की मां के द्वारा की गई छींटाकशी ने नेहा को उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया, जहां वह अपनी ही बच्ची की हत्यारिन बन बैठी। ऐसे समय में सौरभ के तटस्थ या कहें कि उपेक्षित व्यवहार ने भी उसे तोड़ दिया। जब भी सास से झगड़ा होता, सौरभ भी उससे बात करना छोड़ देता।

उस दिन भी नेहा और सौरभ की मां में काफी झगड़ा हुआ था, वह काफी देर कमरा बंद कर रोती रही। फिर शाम को जब सौरभ और उनकी मां बच्ची के लिए कुछ सामान लेने बाहर गए, नेहा ने स्टेविया को उठाकर घर के नजदीक स्थित कूड़ाघर में फेंक दिया। फिर बच्ची के गायब होने का शोर मचा दिया। पुलिस आई, खोजबीन में बच्ची कूड़ाघर से मिल गई। उसके सिर में चोट लगी थी और उसे बचाया नहीं जा सका। पूछताछ में नेहा टूट गई और उसने सब सच-सच बता दिया कि वह सास के तानों से तंग आ चुकी थी।

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ये एक अकेला मामला नहीं है। चार साल पहले जबलपुर में आरोही की गुमशुदगी  का मामला भी बहुत प्रचारित हुआ था, जहां मां ने अपनी बच्ची को पहले नाले में डाल कर उसकी हत्या कर दी और फिर उसकी किडनैपिंग का शोर मचा दिया। लेकिन अंततः पुलिस के दबाव में वह टूट गई और अपना गुनाह स्वीकार कर लिया।

एक प्रसूता महिला को उतने ही स्नेह, प्यार और देखभाल की जरूरत होती है, जितनी एक नवजात शिशु को। वह भी मौत को हराकर आई होती है। बहुत तरह के भावनात्मक और शारीरिक बदलावों से गुजर रही होती है। सिर्फ यही नहीं, मनोवैज्ञानिक शोधों से यह सिद्ध हुआ है कि महिला गर्भ और प्रसव के दौरान एक डिप्रेशन से गुजर रही होती है। इसका अंदाजा न उस महिला को होता है और न ही उसके परिजनों को। इसलिए इस समय में कही गई छोटी छोटी बातें भी महिला के मन पर गहरा असर डालती हैं।

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आप इन बातों को ये कहकर हल्के में नहीं ले सकते कि आपकी दादी-नानी-मां के साथ तो ऐसा नहीं हुआ। उस जमाने और आज के जमाने में बहुत अंतर आ चुका है। हालात काफी बदल चुके हैं।

पहले संयुक्त परिवारों का चलन था, जिसमें बच्चे कैसे पल जाते थे, माता-पिता को पता भी नहीं चलता था। आज स्थिति एकदम उलट है। एकल परिवारों में बहुत सारी तरह के स्ट्रैस से गुजर रही मां पर जब शिशु की भी जिम्मेदारी आ जाती है तो उसके लिए वह मानसिक रूप से कई बार तैयार नहीं होती।

ऐसे में यदि कोई उसका और उसके शिशु का ध्यान रखने की बजाय, उसकी जिम्मेदारी बांटने की बजाय उसे नसीहत देने लगे, ताने मारने लगे, अपने आप से तुलना करने लगे तो यह उस मां को बर्दाश्त नहीं होता। दुख, पीड़ा और क्रोध के मिले-जुले भावों के असर में कई बार वह ऐसा कदम उठा लेती है, जो न सिर्फ उसके शिशु के लिए जानलेवा होता है, बल्कि खुद उसके लिए भी घातक होता है।