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Nainital: नाबालिग मां के आरोप ने ले ली चचेरे भाई की जान
चार साल पुरानी घटना ने लगाया पॉक्सो (POCSO ACT) पर सवालिया निशान
बर्फीले नाले में मिली थी नवजात, नाबालिग के जीजा को 20 साल की सजा
मोनिका आर्य
नैनीताल में 6 फरवरी 2020 को घटित एक घटना ने न्यायिक व्यवस्था और समाज के सामने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस घटना में एक नवजात बच्ची बर्फीले नाले में मिली थी, जिससे एक दर्दनाक और जटिल मामले की परतें खुलीं। मामले की जांच के बाद पता चला कि नाबालिग मां के साथ उसके जीजा ने संबंध बनाए थे, जिनके परिणामस्वरूप बच्ची का जन्म हुआ था। लेकिन इसमें जान लड़की के चचेरे भाई की चली गई। इस घटना के बाद आरोपों और विरोधाभासों की एक लंबी कहानी सामने आई।
घटना के शुरुआती दौर में 15 वर्षीय मां ने अपने 17 वर्षीय चचेरे भाई पर आरोप लगाया, जिसके परिणामस्वरूप उसे गिरफ्तार किया गया और बाल सुधार गृह भेजा गया। कुछ दिनों बाद, जब वह बाहर आया तो उसने 17 अप्रैल 2020 को आत्महत्या कर ली। डीएनए जांच से यह साफ हुआ कि वह बच्ची का पिता नहीं था।
वीडियो देखें – झूठे आरोप ने ले ली चचेरे भाई की जान
बेटे को खोने के बाद लड़की के चाचा ने पुलिस को घर के अन्य पुरुषों की डीएनए जांच के लिए कहा। इस हस्तक्षेप के बाद जांच ने एक नया मोड़ लिया। किशोरी के जीजा का डीएनए नवजात से मेल खाने पर उसे दोषी ठहराया गया। अपर सत्र न्यायाधीश/स्पेशल जज पॉक्सो हल्द्वानी कोर्ट ने सोमवार 13 मई 2024 को उसे 20 साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई। उस पर 20 हजार का जुर्माना भी लगाया है।
इस घटना ने कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े किए हैं:
- कानूनी प्रक्रिया में देरी: चार साल की लंबी न्यायिक प्रक्रिया ने न केवल परिवारों को मानसिक तनाव दिया, बल्कि न्याय की देरी पर भी सवाल उठाए।
- झूठे आरोप और आत्महत्या: चचेरे भाई पर लगाए गए झूठे आरोप और उसकी आत्महत्या ने कानून के दुरुपयोग की आशंकाओं को उजागर किया।
- POCSO अधिनियम का दुरुपयोग: इस घटना ने यह भी सवाल उठाया कि POCSO अधिनियम के दुरुपयोग से निर्दोष लोगों को कैसे बचाया जाए।
- सबसे महत्वपूर्ण सवाल ये है कि नवजात बच्ची की जान को खतरे में डालने वाली मां को क्या सजा सुनाई गई है, यह स्पष्ट नहीं है। जहां से कानूनी कार्रवाई शुरू हुई थी, वह बच्ची को असुरक्षित त्यागने या कहें कि उसकी हत्या करने के प्रयास का मामला था। लेकिन मौजूदा फैसले की रिपोर्टिंग के वक्त कहीं भी उसका जिक्र नहीं किया गया है।
- यह घटना बताती है कि शिशु हत्या और असुरक्षित परित्याग की घटनाओं की रिपोर्टिंग के लिए मीडिया के साथियों को ट्रेंड करने की जरूरत है।
- इसके अभाव में एक जघन्य अपराध की अंडर रिपोर्टिंग हो रही है, जो सही नहीं है।
- यह भी जानना जरूरी है कि बच्ची को छोड़ने वाली नाबालिग मां को उसके दुष्कृत्य के लिए दोषी ठहराया गया है या नहीं।
- यदि नाबालिग होने और लड़की होने के नाम पर उसे कोई रियायत दी गई है तो ये कानून के साथ सबसे बड़ा मजाक होगा।
- मीडिया रिपोर्ट्स में स्पष्ट लिखा गया है कि नाबालिग लड़की ने अपनी मर्जी से जीजा के साथ संबंध बनाए थे। ऐसे में एक मासूम निर्दोष नवजात बच्ची की जान को खतरे में डालने वाली इस नाबालिग मां के साथ कोई सहानुभूति नहीं हो सकती।
नैनीताल की इस घटना ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि कैसे कानून का सही और न्यायपूर्ण इस्तेमाल हो, ताकि न्याय प्रणाली में सभी को विश्वास हो सके। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों और न्याय की प्रक्रिया तेज और निष्पक्ष हो। न्यायपालिका और समाज को मिलकर ऐसे मुद्दों पर विचार करना चाहिए ताकि कानून का दुरुपयोग न हो और असली अपराधियों को सजा मिल सके।
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CHATRA: पुटुस की झाड़ी में अटकी मिली नवजात
तमाशा देख रही भीड़ में था सिर्फ एक इंसान
पुलिस ने आईपीसी 318 में किया केस दर्ज
02 जनवरी 2024, मंगलवार, चतरा, झारखंड।
टीम पालोना
झारखंड के चतरा जिले में एक नवजात बच्ची का शव मिला है। पुटुस की झा़ड़ियों में मिली बच्ची के तन पर कपड़े का एक टुकड़ा भी नहीं था। उसकी गर्भनाल भी साथ लगी थी। ग्रामीणों की सूचना पर पुलिस ने शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है। साथ ही आईपीसी 318 में केस दर्ज कर लिया है।
कब, कहां, कैसे मिली नवजात
पालोना के झारखंड ग्रुप में चतरा के वरिष्ठ पत्रकार (नाम नहीं बताना चाहते) ने इस घटना की सूचना शेयर की। उन्होंने न्यूजस्केल लाइव का एक लिंक वहां शेयर किया। इसके मुताबिक, चतरा के असढीया गांव के मांडर टांड के समीप झाड़ी से एक नवजात बच्ची का शव पुलिस ने मंगलवार को बरामद किया। पुलिस ने सीडब्लूसी चतरा के अध्यक्ष श्री धनंजय तिवारी को इसकी सूचना दी।
इसके बाद सीडब्लूसी अध्यक्ष श्री तिवारी, सब इंस्पेक्टर श्री मनोज पाल और पुलिस को सूचना देने वाले श्री सिकंदर ठाकुर से भी पालोना ने बात की।
डर से पुलिस को फोन नहीं कर रहे थे लोग
ये INDIRECT PARENTAL INFANTICIDE लगता है – PaaLoNaa
बच्ची के शव को देखने से ऐसा लगता है, मानो ये INDIRECT PARENTAL INFANTICIDE का मामला हो। बच्ची के शरीर पर कोई कपड़ा नहीं होना, खून व गर्भनाल लगा होना इसकी गवाही देते हैं। मालूम होता है कि जन्म लेने के तत्काल बाद उसे लाकर यहां डाला गया है। इसके अलावा, कुछ दूरी से उसे उछाला गया प्रतीत होता है। जैसे कोई हड़बड़ी में आकर वहां बच्ची को डाल गया हो। उसका मुंह नीचे की ओर है।
हम धन्यवाद करते हैं सिकंदर ठाकुर और सब इंस्पेक्टर मनोज पाल का भी, जिन्होंने सही समय पर सही फैसले लिए। साथ ही सीडब्लूसी अध्यक्ष धनंजय तिवारी जी का भी, जिन्होंने पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए।
श्री तिवारी पिछले कई सालों से पालोना के व्हॉट्सग्रुप से जुड़े हुए हैं। जब भी कोई नवजात शिशु कहीं मिलता है तो वह उस के लिए पहल करते हैं। इन घटनाओं में पहली बार 2019 में झारखंड के चतरा में ही उपयुक्त सेक्शन में एफआईआर दर्ज की गई थी। इसके लिए श्री तिवारी ने विशेष प्रयास किए थे। वह मीडिया से भी जुड़े रहे हैं।
शिशु हत्या को रोकने के लिए किए जा रहे उनके प्रयासों के लिए साल 2022 में उन्हें पालोना के संवेदना आभार समारोह में स्पंदन अवॉर्ड से अलंकृत भी किया गया था।
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देखें- Jaunpur: झाड़ियों में नवजात | Jhadiyon me navjat mili|
Madhya Pradesh: खतरे में छोड़ गए थे दुधमुहों को, फिर लौटे उन्हें लेने को।
अनजाने में किया गया यह व्यवहार शिशु के जीवन के लिए खतरा पैदा कर सकता है….
अगर आपके घर में कोई गर्भवती स्त्री है या फिर ऐसी महिला, जिसकी अभी डिलीवरी हुई है, तो ये खबर जरूर पढ़िए। कहीं अनजाने में आपके यहां भी महिला के साथ ऐसा बर्ताव तो नहीं होता। अगर होता है तो इसे ठीक कीजिए, नहीं तो ये नवजात शिशु के लिए जानलेवा साबित हो सकता है।
हाल ही में दिल्ली और चार साल पहले जबलपुर में हुई बच्ची की हत्या के बाद मां के गिरफ्तार होने के बाद जो सच्चाई सामने आती है, वह आंखें खोलने वाली है। वह मां से ज्यादा परिवार और समाज पर सवाल खड़े करती है। एक मां, जो नौ माह तक हर कष्ट सहकर बच्चे के आने का बेकरारी से इंतजार करती है, उसके लिए सपने बुनती है, ख्यालों में उससे बात करती है, उसे समझाती है, दुलारती है, उसके अनिष्ट की आशंका से भी कांप जाती है, फिर उस शिशु के जन्म के बाद उसकी दुश्मन क्यों बन जाती है।
दिल्ली के पूर्वी विनोद नगर में रहने वाली नेहा और सौरभ के यहां जब स्टेविया का जन्म हुआ तो दोनों बहुत खुश थे, लेकिन उनकी खुशी ज्यादा देर ठहर नहीं सकी। बच्ची के पालन-पोषण को लेकर दिए जा रहे निर्देशों और उसके रोने पर सौरभ की मां के द्वारा की गई छींटाकशी ने नेहा को उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया, जहां वह अपनी ही बच्ची की हत्यारिन बन बैठी। ऐसे समय में सौरभ के तटस्थ या कहें कि उपेक्षित व्यवहार ने भी उसे तोड़ दिया। जब भी सास से झगड़ा होता, सौरभ भी उससे बात करना छोड़ देता।
उस दिन भी नेहा और सौरभ की मां में काफी झगड़ा हुआ था, वह काफी देर कमरा बंद कर रोती रही। फिर शाम को जब सौरभ और उनकी मां बच्ची के लिए कुछ सामान लेने बाहर गए, नेहा ने स्टेविया को उठाकर घर के नजदीक स्थित कूड़ाघर में फेंक दिया। फिर बच्ची के गायब होने का शोर मचा दिया। पुलिस आई, खोजबीन में बच्ची कूड़ाघर से मिल गई। उसके सिर में चोट लगी थी और उसे बचाया नहीं जा सका। पूछताछ में नेहा टूट गई और उसने सब सच-सच बता दिया कि वह सास के तानों से तंग आ चुकी थी।
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ये एक अकेला मामला नहीं है। चार साल पहले जबलपुर में आरोही की गुमशुदगी का मामला भी बहुत प्रचारित हुआ था, जहां मां ने अपनी बच्ची को पहले नाले में डाल कर उसकी हत्या कर दी और फिर उसकी किडनैपिंग का शोर मचा दिया। लेकिन अंततः पुलिस के दबाव में वह टूट गई और अपना गुनाह स्वीकार कर लिया।
एक प्रसूता महिला को उतने ही स्नेह, प्यार और देखभाल की जरूरत होती है, जितनी एक नवजात शिशु को। वह भी मौत को हराकर आई होती है। बहुत तरह के भावनात्मक और शारीरिक बदलावों से गुजर रही होती है। सिर्फ यही नहीं, मनोवैज्ञानिक शोधों से यह सिद्ध हुआ है कि महिला गर्भ और प्रसव के दौरान एक डिप्रेशन से गुजर रही होती है। इसका अंदाजा न उस महिला को होता है और न ही उसके परिजनों को। इसलिए इस समय में कही गई छोटी छोटी बातें भी महिला के मन पर गहरा असर डालती हैं।
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आप इन बातों को ये कहकर हल्के में नहीं ले सकते कि आपकी दादी-नानी-मां के साथ तो ऐसा नहीं हुआ। उस जमाने और आज के जमाने में बहुत अंतर आ चुका है। हालात काफी बदल चुके हैं।
पहले संयुक्त परिवारों का चलन था, जिसमें बच्चे कैसे पल जाते थे, माता-पिता को पता भी नहीं चलता था। आज स्थिति एकदम उलट है। एकल परिवारों में बहुत सारी तरह के स्ट्रैस से गुजर रही मां पर जब शिशु की भी जिम्मेदारी आ जाती है तो उसके लिए वह मानसिक रूप से कई बार तैयार नहीं होती।
ऐसे में यदि कोई उसका और उसके शिशु का ध्यान रखने की बजाय, उसकी जिम्मेदारी बांटने की बजाय उसे नसीहत देने लगे, ताने मारने लगे, अपने आप से तुलना करने लगे तो यह उस मां को बर्दाश्त नहीं होता। दुख, पीड़ा और क्रोध के मिले-जुले भावों के असर में कई बार वह ऐसा कदम उठा लेती है, जो न सिर्फ उसके शिशु के लिए जानलेवा होता है, बल्कि खुद उसके लिए भी घातक होता है।