अनजाने में किया गया यह व्यवहार शिशु के जीवन के लिए खतरा पैदा कर सकता है….

अगर आपके घर में कोई गर्भवती स्त्री है या फिर ऐसी महिला, जिसकी अभी डिलीवरी हुई है, तो ये खबर जरूर पढ़िए। कहीं अनजाने में आपके यहां भी महिला के साथ ऐसा बर्ताव तो नहीं होता। अगर होता है तो इसे ठीक कीजिए, नहीं तो ये नवजात शिशु के लिए जानलेवा साबित हो सकता है।

हाल ही में दिल्ली और चार साल पहले जबलपुर में हुई बच्ची की हत्या के बाद मां के गिरफ्तार होने के बाद जो सच्चाई सामने आती है, वह आंखें खोलने वाली है। वह मां से ज्यादा परिवार और समाज पर सवाल खड़े करती है। एक मां, जो नौ माह तक हर कष्ट सहकर बच्चे के आने का बेकरारी से इंतजार करती है, उसके लिए सपने बुनती है, ख्यालों में उससे बात करती है, उसे समझाती है, दुलारती है, उसके अनिष्ट की आशंका से भी कांप जाती है, फिर उस शिशु के जन्म के बाद उसकी दुश्मन क्यों बन जाती है।

दिल्ली के पूर्वी विनोद नगर में रहने वाली नेहा और सौरभ के यहां जब स्टेविया का जन्म हुआ तो दोनों बहुत खुश थे, लेकिन उनकी खुशी ज्यादा देर ठहर नहीं सकी। बच्ची के पालन-पोषण को लेकर दिए जा रहे निर्देशों और उसके रोने पर सौरभ की मां के द्वारा की गई छींटाकशी ने नेहा को उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया, जहां वह अपनी ही बच्ची की हत्यारिन बन बैठी। ऐसे समय में सौरभ के तटस्थ या कहें कि उपेक्षित व्यवहार ने भी उसे तोड़ दिया। जब भी सास से झगड़ा होता, सौरभ भी उससे बात करना छोड़ देता।

उस दिन भी नेहा और सौरभ की मां में काफी झगड़ा हुआ था, वह काफी देर कमरा बंद कर रोती रही। फिर शाम को जब सौरभ और उनकी मां बच्ची के लिए कुछ सामान लेने बाहर गए, नेहा ने स्टेविया को उठाकर घर के नजदीक स्थित कूड़ाघर में फेंक दिया। फिर बच्ची के गायब होने का शोर मचा दिया। पुलिस आई, खोजबीन में बच्ची कूड़ाघर से मिल गई। उसके सिर में चोट लगी थी और उसे बचाया नहीं जा सका। पूछताछ में नेहा टूट गई और उसने सब सच-सच बता दिया कि वह सास के तानों से तंग आ चुकी थी।

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ये एक अकेला मामला नहीं है। चार साल पहले जबलपुर में आरोही की गुमशुदगी  का मामला भी बहुत प्रचारित हुआ था, जहां मां ने अपनी बच्ची को पहले नाले में डाल कर उसकी हत्या कर दी और फिर उसकी किडनैपिंग का शोर मचा दिया। लेकिन अंततः पुलिस के दबाव में वह टूट गई और अपना गुनाह स्वीकार कर लिया।

एक प्रसूता महिला को उतने ही स्नेह, प्यार और देखभाल की जरूरत होती है, जितनी एक नवजात शिशु को। वह भी मौत को हराकर आई होती है। बहुत तरह के भावनात्मक और शारीरिक बदलावों से गुजर रही होती है। सिर्फ यही नहीं, मनोवैज्ञानिक शोधों से यह सिद्ध हुआ है कि महिला गर्भ और प्रसव के दौरान एक डिप्रेशन से गुजर रही होती है। इसका अंदाजा न उस महिला को होता है और न ही उसके परिजनों को। इसलिए इस समय में कही गई छोटी छोटी बातें भी महिला के मन पर गहरा असर डालती हैं।

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आप इन बातों को ये कहकर हल्के में नहीं ले सकते कि आपकी दादी-नानी-मां के साथ तो ऐसा नहीं हुआ। उस जमाने और आज के जमाने में बहुत अंतर आ चुका है। हालात काफी बदल चुके हैं।

पहले संयुक्त परिवारों का चलन था, जिसमें बच्चे कैसे पल जाते थे, माता-पिता को पता भी नहीं चलता था। आज स्थिति एकदम उलट है। एकल परिवारों में बहुत सारी तरह के स्ट्रैस से गुजर रही मां पर जब शिशु की भी जिम्मेदारी आ जाती है तो उसके लिए वह मानसिक रूप से कई बार तैयार नहीं होती।

ऐसे में यदि कोई उसका और उसके शिशु का ध्यान रखने की बजाय, उसकी जिम्मेदारी बांटने की बजाय उसे नसीहत देने लगे, ताने मारने लगे, अपने आप से तुलना करने लगे तो यह उस मां को बर्दाश्त नहीं होता। दुख, पीड़ा और क्रोध के मिले-जुले भावों के असर में कई बार वह ऐसा कदम उठा लेती है, जो न सिर्फ उसके शिशु के लिए जानलेवा होता है, बल्कि खुद उसके लिए भी घातक होता है।