जिन्हें बताया था रबर के गुड्डे, वे निकले अर्द्धविकसित बच्चे …

रांची के जगन्नाथपुर मेले में नवजात बच्चों के शवों की प्रदर्शनी

पहले भी बड़ी संख्या मे मिले हैं अर्द्धविकसित बच्चों के शव

10 जुलाई 2019, रांची, झारखंड।

मोनिका आर्य

रांची में हाल में एक ऐसी घटना घटी, जिसने शहर को स्तब्ध कर दिया और प्रशासन को रेस। दरअसल रांची के ऐतिहासिक जगन्नाथपुर मेले में अर्द्धविकसित और विशेष रूप से विकसित बच्चों के शवों का प्रदर्शन कर लोगों से पैसे वसूले जा रहे थे। इन बच्चों को टब में विशेष तरह के कैमिकल सॉल्यूशन में रखा गया था। आयोजक इन्हें ऐसे ट्रीट कर रहे थे, मानो ये बच्चे न होकर मेडिकल वेस्ट हों।

ये भी सुनने मे आया कि प्रदर्शन करने वाले लोग भूत के नाम का सहारा लेकर बच्चों को भय रस का आनंद दिलवा रहे थे। प्रदर्शन के दौरान वे ऐसा कुछ करते थे, जिससे टब में मौजूद अर्द्धविकसित बच्चों के शव हिलने लगते थे। इसके लिए उनसे 10-10 रुपये भी वसूले जा रहे थे। नजदीक ही पुलिस ओपी थी, लेकिन न उनका और न मेला आयोजन समिति का ही इस तरफ ध्यान गया। खुलेआम चल रहे इस प्रदर्शन को लेकर जब कुछ स्थानीय दर्शकों ने आपत्ति जताई और इसकी फोटो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी, तब प्रशासन और समिति ने इसका संज्ञान लिया।

रांची पुलिस नहीं कर पा रही थी असल और नकल में भेद

घटना सत्य थी, लेकिन पेचीदा सी। इतनी पेचीदा कि कुछ समय तक पुलिस यह तय तक नहीं कर पाई कि बच्चे असली हैं या रबर के गुड्डे। इसलिए शुरुआत में रांची पुलिस के हवाले से ये बयान आते रहे कि बच्चों की मेडिकल जांच के बाद ही बताया जा सकेगा कि ये अर्द्धविकसित बच्चे असली हैं या नकली। ये एक बहुत ही हास्यास्पद बयान था, लेकिन असल में ऐसा ही हुआ भी।

राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साईंस, रांची में जांच के बाद जब मैडिकल प्रेक्टिशनर्स ने बच्चों के असली होने पर मुहर लगा दी तो पुलिस को भी ये मानना पड़ा। हालांकि डीएसी पी. आर. बरवार इस बात से इनकार करते हैं कि बच्चों के असली-नकली होने को लेकर कोई कन्फ्यूजन था। उनके मुताबिक, आरोपियों ने कुछ ना-नुकुर के बाद ही स्वीकार कर लिया था कि वे असली बच्चे हैं। अगर उनकी बात पर यकीन करें तो तमाम अखबारों में पुलिस के हवाले से छपे बयानों को गलत मानना होगा, जिनमें पुलिस ने बच्चों के असली और नकली होने की जांच करवाने की बात कही थी।

ऐसे सामने आया नवजातों के शवों की नुमाईश का मामला

यह घटना अन-नोटिस्ड ही रह जाती, यदि चाईल्ड राईट्स एक्टिविस्ट श्री बैद्यनाथ के जरिए प्रभात और रोहित सिंह नाम के युवाओं ने इस मसले को नहीं उठाया होता। जैसे ही उन दोनों को इस प्रदर्शन के बारे में पता चला, उन्होंने इसकी तस्वीरें और वीडियो बनाकर बैद्यनाथ जी को भेज दिया और उनसे ये घटना पुलिस प्रशासन के साथ साथ मीडिया तक पहुंच गई। कुछ ही देर में इसकी तस्वीरें और विवरण भी वायरल हो गए।

देवघर में जार में मिले थे एक दर्जन से अधिक अर्द्धविकसित बच्चे

देवघर में भी मिले थे जार में बंद बच्चों के शव

ये तस्वीरें वैसी ही नजर आ रहीं थीं, जैसे अप्रैल 2017 में देवघर में मिले बच्चों की थी। रांची पुलिस प्रशासन के साथ साथ मीडिया भी देवघर की उस घटना को भूल चुका था, जिसमें एक दर्जन से ज्यादा नवजात अर्द्धविकसित बच्चों के शव केमिकल सॉल्यूशन में ग्लास जार मे बंद मिले थे। एक-एक जार में दो से तीन बच्चों को रखा गया था। और फिर बोरे में बंद कर इन्हें देवघर के मोहनपुर प्रखंड स्थित दुमका रोड के ठीक किनारे डुमरथर गांव में झाड़ियों में डाल दिया गया था।

देवघर में मिले थे अर्द्धविकसित बच्चे

उस वक्त काफी हो हल्ला होने के पश्चात मामला शांत हो गया था और ये किसी को पता नहीं चल पाया कि ये अर्द्धविकसित बच्चे कहां से इतनी बड़ी संख्या में वहां लाए गए थे और किसने इन्हें वहां डाला था।

उस वक्त आस-पास मेडिकल कॉलेज होने की बात भी कही गई थी, जहां इन बच्चों को स्टडी के लिए प्रिजर्व करके रखा गया हो और फिर काम निकल जाने के पश्चात डिस्पॉज ऑफ करने के उद्देश्य से चोरी छिपे वहां लाकर डाल दिया गया हो। लेकिन ऐसा कोई मेडिकल कॉलेज वहां आस पास के भी किसी जिले में नहीं है, यह सच कुछ ही समय में सामने आ गया था।

पहले कहा गया था ‘भ्रूण’, फिर निकले ‘अर्द्धविकसित बच्चे’

यही नहीं, शुरुआत में इन बच्चों को भी भ्रूण कहा जा रहा था, लेकिन बाद में जांच के बाद ये साबित हो गया था कि ये भ्रूण नहीं है, बल्कि अर्द्धविकसित बच्चे हैं। धीरे-धीरे ये घटना बिसरा दी गई और बाद में अपडेट की चाह रखने वाले पत्रकारों को यही पता चलता रहा कि जांच बेनतीजा रही है और फाईल बंद कर दी गई है।

कलकत्ता में मिले थे एक दर्जन से अधिक नवजातों के शव

देवघर से मिलती जुलती ही एक घटना पिछले साल (2018) सितंबर माह में कलकत्ता में भी घटी थी। यहां एक दर्जन से अधिक बच्चों के शव खाली प्लाट में मिले थे। मीडिया में ये खबर बहुत तेजी से फैली थी। घटना की सूचना जितनी तेजी से वायरल हुई थी, उससे कहीं ज्यादा तेजी से वह दब गई। जिस घटना की तस्दीक शहर के एक डीसीपी ने घटनास्थल पर जाकर की थी, जिस पर मेयर ने भी मुहर लगाई थी, जिसे कई बड़े क्राईम रिपोर्टर्स ने अपने नेशनल चैनल पर चलवा दिया था, वह खबर अचानक से गायब हो गई थी। जांच के बाद डॉक्टरों के हवाले से उसे मे़डिकल वेस्ट करार दिया गया।

सवाल अनुत्तरित रह गए कि क्या मेडिकल वेस्ट और बच्चों में अंतर करना इतना मुश्किल है कि सामने से देखने से भी पता न लग सके और इतने बड़े बड़े लोग भ्रम का शिकार हो जाएं कि उस वेस्ट को पोस्टमार्टम के लिए भेज दें।

बंगाल से लाए गए थे रांची के मेले में नवजातों के शव- डीएसपी बरवार

अब ये एक नया मामला 10 जुलाई को रांची में सामने आया है। इसकी जांच पूरी होगी या नहीं, सभी सवालों के जवाब मिलेंगे या नहीं, मिलेंगे तो कब, ये खुद में एक बड़ा सवाल है। फिलहाल रांची पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें वकील माईटी, पिंटू माईटी और प्रभात सिंह शामिल हैं। पुलिस का कहना है कि तीनों ने बंगाल से इन शवों को लाने की बात स्वीकारी है। डीएसपी बरवार आरोपियों के हवाले से बताते हैं कि वे भिन्न भिन्न इलाकों में लगने वाले मेलों में तीन साल से इस तरह की प्रदर्शनी लगाते रहे हैं। यही बात एफआईआर में भी लिखी है। इस बार वे रांची लेकर आए और पकड़े गए।

प्रभात रंजन यह भी बताते हैं कि आरोपी इन शवों को बंगाल के उन लोकल लोगों से खरीद लेते हैं, जिनके यहां अलग तरह से विकसित – अर्द्धविकसित बच्चे जन्म लेते हैं। इसके लिए उनके लोग स्थानीय लोगों के संपर्क में रहते हैं।

अगर ये सच है तो ये एक बहुत ही संगीन मसला है, जिसे रांची प्रशासन द्वारा बहुत हल्के में लिया जा रहा है। इसका मतलब है कि यह एक बड़ा गिरोह है और इनके और भी साथी हैं। ये कौन हैं, इनकी बैकग्राउंड क्या है, इनका मूल कार्य क्या है, इसके बारे में अभी पुलिस के पास भी कोई जवाब नहीं।

पहले बताया था रबर के गुड्डे

एक सवाल के जवाब में डीएसपी स्वीकार करते हैं कि आरोपी बहुत जल्दी जल्दी अपने बयान बदल रहे हैं। मालूम हो कि आरोपियों ने पहले इन बच्चों को रबर का गुड्डा बता पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की थी, फिर इन्हें मेडिकल लैब से लिया हुआ बताया था और लेटेस्ट बयान के अनुसार, वे इन्हें लोकल लोगों से खरीदा हुआ बता रहे हैं।

रांची की इस घटना का एक अन्य पहलू भी सामने आया है। कुछ लोगों का कहना ये भी है कि विशेष आकृति वाले बच्चों के प्रति जागरुकता के लिए ऐसा किया जाना किसी भी दृष्टि से गलत नहीं है। पैसे खर्च करके मैडिकल लैब में जाकर इस तरह के बच्चों को देखना सबके लिए संभव नहीं। खासकर मेडिकल स्टडीज में जिनका इंटरेस्ट रहा हो, वे जरूर इन बच्चों को देखना और इसके पीछे के कारणों को जानना पसंद करेंगे या भविष्य में इस तरह जन्मे शिशुओं के लिए काम करना चाहेंगे।

पहली बार सुनी शवों के प्रदर्शन की बात- फॉरेंसिक एक्सपर्ट

ऐसा पहले भी हाट बाजारों में होता रहा है, जब मनोरंजन का साधन ये मेले जागरुकता अभियानों का भी बड़ा केंद्र होते थे या विशेष तरह से विकसित-अर्द्धविकसित बच्चे आजीविका का साधन बन जाते थे, लेकिन वे जिंदा होते थे, जैसा जमशेदपुर के फॉरेंसिक एक्सपर्ट डॉ. विभाकर बताते हैं।

अपने बचपन की स्मृतियां ताजा करते हुए वह कहते हैं कि एक बार बचपन में मेले में जाने पर उन्हें ऐसा देखने को मिला था, जहां दो जुड़े हुए बच्चों को दिखाकर पैसा कमाया जा रहा था। लेकिन मृत बच्चों के प्रदर्शन की बात उन्होंने भी पहली बार ही सुनी और वह अचंभित भी  हुए। उनके मुताबिक, मृत बच्चों की प्रदर्शनी किसी भी तरह जायज नहीं है।

 एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अब मैडिकल स्टडीज के लिए कैमिकल सॉल्यूशंस में बॉडीज को नहीं रखा जाता है। जो भी इस तरह के मॉडल हैं (मैडिकल भाषा में इन्हें मॉडल कहा जाता है, जो मैडिकल स्टूडेंट्स को पढ़ाने के काम आते है), वे बहुत पुराने हैं। अब तो नियम इतने सख्त हो गए हैं कि बच्चों के साथ ऐसा करना संभव नहीं।

बॉडीज के डिस्पोजल की है कानूनी प्रक्रिया – डॉ. विभाकर

एक अन्य सवाल के जवाब में डॉ. विभाकर कहते हैं कि जरूरत पड़ने पर कैमिकल सॉल्यूशंस में रखी बॉडीज के डिस्पोजल की भी एक कानूनी प्रक्रिया होती है, जिसे पूरा किए बिना डिस्पोजल संभव नहीं है। इसके अलावा उन्होंने ये भी बताया कि संस्थान के अलावा किसी भी अन्य व्यक्ति को अनधिकृत रूप से ये मॉडल किसी जागरुकता या अन्य उद्देश्य के लिए नहीं दिए जाते।

मतलब ये स्पष्ट है कि देवघर या कलकत्ता या रांची में मिले बच्चे किसी मैडिकल लैब से नहीं निकले थे।

ऐसे में इस मामले की गहन जांच करना और भी जरूरी हो जाता है। मेला आयोजन समिति इससे पल्ला झाड़ती नजर आ रही है। उसका कहना है कि उसने इस प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी। उसका कहना है कि यह कार्य उनकी अनुमति के बिना हो रहा था ( ये कथन अपने आप में हास्यास्पद है  कि उनकी परमिशन के बिना कोई वहां मौजूद था और उन्हें इसकी खबर तक नहीं थी)।

उस मेडिकल कॉलेज या स्थानीय लोगों का पक्ष आना अभी बाकी है, जहां से ये अर्द्धविकसित बच्चे लाने का दावा आरोपियों ने किया है। और भी कई सवाल हैं, मसलन-

  1. उन्होंने किस व्यक्ति या संस्था को ये अर्द्धविकसित बच्चे दिए?
  2. किन शर्तों पर दिए?
  3. किस वजह से दिए?
  4. ऐसा पहले भी कितनी बार किया गया है?
  5. कितने बच्चों का प्रदर्शन अब तक किया गया है?
  6. किन किन लोगों के द्वारा किया गया है?
  7. प्रदर्शन के बाद इन बच्चों का क्या होता है?
  8. क्या ये वापिस कर दिए जाते हैं?
  9. या कहीं भी डिस्पॉज ऑफ कर दिए जाते हैं?

जब तक इन सभी सवालों के जवाब नहीं मिल जाते, जांच अधूरी रहेगी। ये जांच करते वक्त डॉ. विभाकर के कथन को ध्यान में रखना होगा।

क्या पश्चिम बंगाल है केंद्र

इसके अलावा ये भी पड़ताल करनी होगी कि-

  1. ये अकेले हैं ऐसा प्रदर्शन करने वाले या ऐसे कई संगठन या लोग हैं, जो अलग अलग जगह जाकर इस कार्य को अंजाम दे रहे हैं?
  2. क्या देवघर में मिले एक दर्जन से अधिक बच्चे भी बंगाल से ही लाकर वहां बोरे में बंद कर छोड़े गए थे?
  3. बंगाल इन बच्चों का मूल केंद्र है क्या?
  4. क्या वहां इस तरह के विशेष आकृति वाले या अर्द्धविकसित बच्चे बहुतायत में मिल रहे हैं?
  5. यदि ऐसा है तो इसके पीछे क्या भौगोलिक या जैविक कारण है?
  6. इन सभी सवालों को जांच के दायरे में रखना होगा।

कहीं ह्यूमैन ट्रैफिकिंग से तो नहीं जुड़े तार

इसके अलावा एक पक्ष और है, जो यदा कदा ह्यूमैन ट्रैफिकिंग पर काम करने वालों से बातचीत के दौरान सामने आता रहा है। छोटे बच्चों का इस्तेमाल मानव तस्कर अंग निकालने के लिए भी करते है। विदेशों में उनकी स्किन की डिमांड भी बहुत होती है, बताते हैं कुछ एक्टिविस्ट। मेडिकल लैब्स अब इस तरह के बच्चों को प्रिजर्व करके नहीं रखते हैं। ऐसे में एक सवाल यकायक दिमाग में कौंधता है। कहीं ये अर्द्धविकसित बच्चे वही तो नहीं, जिनका जिक्र ह्यूमैन ट्रैफिकिंग (प्रीवेंशन) एक्टिविस्ट्स की बातचीत में होता है।

हो सकता है कि इस घटना के तार देवघर और कलकत्ता से जुड़े राज भी खोल दे। हमें इंतजार तो करना चाहिए। हालांकि घटनाओं को भूलना नहीं चाहिए, जैसे हम देवघर और कलकत्ता को भूल गए।

रांची के जगन्नाथपुर मेले में दिखे अर्द्धविकसित बच्चे

फिलहाल रांची पुलिस ने इस मामले को आईपीसी सेक्शन 270/290/420/315/34 के तहत दर्ज कर लिया है। हालांकि जांच एक बडी चुनौती है, क्योंकि उनके सामने भी ऐसा मामला पहली बार आया है। बच्चों के मृत शरीरों के इस तरह के प्रदर्शन पर इंडियन पीनल कोड या बच्चों के संरक्षण पर आज की तारीख में सबसे प्रभावी कानून जेजे एक्ट भी स्पष्ट कुछ नही कहता। बताते हैं बाल सखा के झारखंड समन्वयक श्री पीजूष सेन। उनके मुताबिक, अगर ये साबित हो जाए कि बच्चे जिंदा थे, तो क्रुएलिटी अगेंस्ट चिल्ड्रेन के तहत सेक्शन 75 का केस बनता है। लेकिन यदि ऐसा नही हो तो मृत शरीरों के प्रदर्शन पर जेजे एक्ट भी स्पष्ट कुछ नही कहता और इंडियन पीनल कोड भी।

संभवतः इस बात से वे लोग भी वाकिफ हैं, जो उनके प्रदर्शन के जरिए पैसा कमाते हैं। या वो भी, जो उनके शवों को कहीं भी छोड़ देते हैं। या वे, जो बच्चों के अंगों की तस्करी में शामिल हैं और अंग निकालने के बाद बचे अवशेषों को कहीं भी फेंक देते हैं।