नन्ही सी जान, उस पर बुखार, न कोई छत, न कोई मकान और ऐसे ही आसमान के नीचे उसे छोड़ दिया गया था। लेकिन उसे जीना था, इसलिए उसके कुनमुनाने, रोने की आवाज पुलिस की गश्ती टीम को मिली और उसे बचा लिया गया। घटना गढ़मुक्तेश्वर के बृजघाट के सामने सोमवार तड़के देखने को मिली।
पत्रकार श्री शेषमणि शुक्ल की सूचना पर जब पा-लो ना ने स्थानीय पत्रकार श्री ललित कुमार से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि रात करीब ढ़ाई-तीन बजे का वक्त रहा होगा, जब पुलिस की गश्ती टीम को एक बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। उन्होंने तलाशा तो उन्हें गंगा किनारे मेला लगने वाली जगह के पास एक तख्त पर नवजात बच्ची मिली। वह करीब 20-25 दिन की होगी। उस वक्त उसे बुखार था। पुलिस ने सबसे पहले बच्ची को स्थानीय अस्पताल पहुंचाया। बच्ची के स्वस्थ होने के बाद उसे बाल कल्याण समिति को सौंप दिया गया।
टीम पा-लो ना बच्चों को इस तरह कहीं भी छोड़ देने के खिलाफ है। ये बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। बेहतर हो कि बच्चों को सुरक्षित हाथों में सौंप दिया जाए। लोगों को बच्चों के पालने के विकल्पों की जानकारी दी जाए। उन्हें फॉस्टर केयर और सरेंडर पॉलिसी के बारे में बताया जाए।
04 जून 2018 गढ़मुक्तेश्वर (मेरठ), उत्तर प्रदेश (F)