ममता अगर दिल में हो तो माँ के सीने से दूध छलक ही पड़ता है, फिर चाहे वह कोई पुलिस ऑफिसर ही क्यों न हो। और यही दूध अगर किसी परित्यक्त बच्चे के गले में उतर जाए तो अमृत बन जाता है। ये घटना बंगलौर के डोड्डाथागुरू इलाके में शुक्रवार को घटी।
सीनियर जर्नलिस्ट श्री नेहाल ने पुलिस के हवाले से पूरी घटना का ब्यौरा पा-लो ना को दिया, जो इस प्रकार है- महज कुछ घंटों की ज़िंदगी रही होगी कि उसे माँ के दूध से वंचित कर साउथ बंगलौर की अधूरी बिल्डिंग में मरने के लिए फेंक दिया गया। वह एक पॉलीथिन में पैक था और कचरे वाले को मिला था। पुलिस कंट्रोल रूम को सुबह 9 बजे इसकी जानकारी मिली। सम्बद्ध इलेक्ट्रॉनिक सिटी थाने को इसकी सूचना दी गई और चार पुलिसकर्मी उस जगह पहुंचे जहां बच्चे को फेंका गया था। असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर नागेश भी उनमें शामिल थे। बच्चे की हालत देखकर उन्हें लगा कि कोई ऐसा कैसे कर सकता है। उसकी नाल तक नहीं काटी गई थी। शरीर पर लगे खून को भी साफ नहीं किया गया था।
चारों पुलिसकर्मी बच्चे को लेकर थाने लौटे। उन्हें लगा कि इसे तत्काल अस्पताल ले जाने की ज़रूरत है। बच्चे को लेकर वे लक्ष्मी नर्सिंग होम पहुंचे। वहां बच्चे को ठीक तरह से साफ किया गया। अस्पताल ने बगैर किसी शुल्क के बच्चे को ज़रूरी चिकित्सीय सुविधा दी।
अस्पताल ने थोड़ी देर में जब छुट्टी दी तो चारों पुलिसकर्मी इस बात से आश्वस्त थे कि उसे कुछ नहीं होगा, लेकिन उनकी चिंता इस बात को लेकर अब भी थी कि बच्चा न तो रो रहा है और न ही एक्टिव है।
ऐसे में पुलिस कांस्टेबल अर्चना ने वो किया, जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। अर्चना कुछ ही दिनों पूर्व माँ बनी थी और 15 दिनों पहले ही उन्होंने ज्वॉइन किया था। वह बच्चे को किनारे लेकर गई और उसे अपना दूध पिलाया। इस दूध ने अमृत का काम किया और बच्चा रोने लगा। उसके रोने की आवाज़ से पूरे पुलिस स्टेशन में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। बच्चे को लेकर उनकी सारी चिंताएं खत्म हुईं और नागेश सहित अन्य पुलिस ऑफिसर बच्चे के लिए कपड़े खरीदने निकल पड़े।
इसके बाद थाने में कागजी कार्रवाई पूरी की गई और बच्चे को होसुर रोड स्थित शिशुगृह भेज दिया गया। और हां उसका नामकरण भी हुआ…
नाम रखा गया – कुमारस्वामी। क्योंकि बच्चे की देखभाल राज्य सरकार को करनी थी, इसलिए राज्य के मुखिया के नाम पर ही उसका भी नामकरण किया गया।
ये एक ऐसी घटना है, जो पुलिस का एक अलग ही रूप सामने लेकर आती है। ये रूप बेहद संवेदनशील है और जीवन रक्षक भी। टीम पा-लो ना बंगलौर की उस पूरी पुलिस टीम के प्रति कृतज्ञ है, जिन्होंने एक नवजात जीवन को बचाने के लिए लीक से हटकर काम किया। पुलिस हो या मीडिया, या फिर आम लोग, ये संवेदनाएं ही हैं, जो हमें आम से खास बना देती हैं और सबसे अलग पहचान देती हैं। इसलिए इन बच्चों के प्रति संवेदनशील होने, इनकी आवाज बनने की गुहार सभी से लगाते हैं हम।
01 जून 2018 बंगलौर, कर्नाटक (M)