क्या हुआ –
पश्चिमी सिंहभूम (चाईबासा) के चक्रधरपुर थाना अंतर्गत संजय नदी के किनारे पाउड़ी मंदिर के पास झाड़ियों में एक नवजात बच्ची मिली। रविवार सुबह जब कुछ लोग स्नान करने नदी किनारे गए तो उन्होंने बच्ची के रोने की आवाज सुनी। पास जाकर देखा तो उन्हें झाड़ियों में कपड़ों में लिपटी एक नवजात बच्ची मिली। लोग उसकी मदद कर पाते, इससे पहले बच्ची की मौत हो गई।
स्थानीय पत्रकारों ने गोपनीयता की शर्त पर बताया कि बच्ची जहां मिली, उसके बहुत नजदीक सूर्या नर्सिंग होम है। उस बच्ची के साथ कागज की एक स्लिप भी मिली थी, जिस पर केबिन नंबर आदि लिखा हुआ था। उनके मुताबिक, जब पुलिस उस रसीद को लेकर सूर्या नर्सिंग होम पहुंची तो वहां के संचालक ने स्वीकार किया कि वह रसीद उनके अस्पताल की ही है। लेकिन वह बच्ची के संबंध में कोई जानकारी नहीं दे सके।
सरकारी पक्ष –
थाना इंचार्ज श्री गोपीनाथ तिवारी ने पा-लो ना को बताया कि उन्होंने आईपीसी के सेक्शन 302, 201 और 34 के मामला दर्ज कर लिया है। पुलिस की जांचपड़ताल जारी है। उन्होंने इस बात से इनकार किया कि बच्ची जीवित मिली थी। उनके मुताबिक, उन्हें बच्ची का शव मिला था। तब उन्होंने आईपीसी के सेक्शन 318 के तहत मामला दर्ज क्यों नहीं किया, इस पर उनका जवाब था कि शव मिलने पर कोई केस ही नहीं बनता है। आईपीसी के सेक्शन 315 को नहीं लगाने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वह उस केस में लगता है, जब बच्चे को जन्म लेने से ही रोक दिया जाए।
उनके मुताबिक, अवैध प्रसव की अस्पताल एंट्री नहीं करते हैं। जांच पड़ताल जारी है। वे पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं।
पा-लो ना का पक्ष –
पालोना को घटना की जानकारी सक्रिय व संवेदनशील पत्रकार श्री कुंतलेश पांडे से मिली। पालोना को लगता है कि यदि बच्ची को तुरंत इलाज मुहैया करवाया जाता, तो उसकी जान बचाई जा सकती थी।
जहां तक पुलिस कार्रवाई की बात है, पुलिस अभी तक इन मामलों में लगने वाली मुख्य कानूनी धाराओं से ही ठीक से वाकिफ नहीं है। ऐसे में उनके द्वारा की जाने वाली जांच-पड़ताल किस नतीजे पर पहुंचेगी, किसी नतीजे पर पहुंचेगी भी या नहीं, कहना मुश्किल है। आईपीसी के सेक्शन 315 व 318 के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं होना, इस अपराध को रोकने में बहुत बड़े अवरोध के समान है।
फिर भी, यदि पुलिस गहनता, कड़ाई और निष्पक्षता से जांच पड़ताल करेगी तो वह दोषियों तक जरूर पहुंच जाएगी और इस घटना की तह में छुपे कारण पता चल सकेंगे। लड़की के परित्यक्त अवस्था में मिलने के बाद जो सबसे बड़ी आशंका बनती है, वह है उसका कन्या होना।
बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री त्रिभुवन शर्मा पा-लो ना की इस बात से सहमत हैं कि ऐसे मामलों में माँ से ज्यादा दोषी पिता और परिवार होता है। वह कहते हैं, माँ तो हर तकलीफ से गुजरती है। वह जोर देते हैं कि शिशु परित्याग और हत्या के मामलों को कानून के दायरे में लाने की जरूरत है। इन बच्चों के संरक्षण का पुख्ता प्लान है ही नहीं। वह उम्मीद जगाते हैं कि पालोना के साथ मिलकर इन बच्चों के लिए नई राह बनाई जाएगी।
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14 April 2019 Chaibasa, Jharkhand (F)