उसे शायद जन्म के तुरंत बाद ही सफेद रंग के कपड़े में लपेट कर उस सूखे बरसाती नाले में रख दिया गया था। नाल शरीर से चिपकी थी और उस पर धागा बंधा था। अंदेशा है कि जन्म घर पर ही हुआ था। उसी हालत में वह सुबह तक वहीं पड़ी रही। सुबह एक राहगीर को उसके रोने की आवाज सुनाई दी और उसे बचा लिया गया। घटना 09 मई बुधवार सुबह को बांसवाड़ा के भोंगापुरा गांव में घटी।
सीनियर पत्रकार श्री महावीर सिंह चौहान ने पा-लो ना को बताया कि बांसवाड़ा शहर के इलाके में कई बरसाती नाले बहते हैं। इन्हीं में से एक शहर से 60 किलोमीटर दूर गांगड़तलाई पंचायत समिति के भोंगापुरा गांव में एक सूखे बरसाती नाले में उसे रखा गया था। सुबह करीब नौ बजे झलाई गांव के खातू पारगी ने पुलिया पर से गुजरते समय बच्ची के रोने की आवाज सुनी। जब वह पुलिया से नीचे उतरे तो उन्हें सफेद कपड़े में लिपटी बच्ची नजर आई। बच्ची के शरीर पर नाल लगी हुई थी, जिस पर क्लिप न होकर धागा बंधा था।। इसी से अंदेशा हुआ कि बच्ची का जन्म घर पर हुआ है। उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाया गया। डॉक्टर के मुताबिक बच्ची का जन्म रात करीब 10 बजे के आस-पास हुआ था। लेकिन उसका वजन केवल 2700 ग्राम है। पूरी तरह स्वस्थ नजर आ रही बच्ची की हालत खराब होने पर शनिवार को उसे उदयपुर के लिए रैफर किया गया है।
पा-लो ना टीम का मानना है कि शायद गंदे नाले में रहने की वजह से बच्ची को इन्फेक्शन हो गया होगा। यदि बच्ची को वहां रखने वाले ने थोड़ी और समझदारी दिखाई होती और उसे किसी सुरक्षित, स्वस्थ स्थान पर रख दिया होता तो बच्ची को इन्फेक्शन से बचाया जा सकता था। वैसे सबसे बेहतर तरीका होता है अनचाहे बच्चे को किसी भी संबंधित अधिकारी को सौंप देना, जो पूरी तरह से कानूनी है, वहीं बच्चों को इस प्रकार त्यागना न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि गैर-कानूनी भी है।
टीम को ये भी पता चला है कि बांसवाड़ा के कुछ स्थानों पर ऐसे बच्चों के लिए पालगनागृह बनाए गए है, जहां परिजन अपने बच्चों को छोड़कर जा सकते हैं और उनकी पहचान भी गुप्त रखी जाती है। टीम उन सभी माता-पिता से अपील करती है कि बच्चों को त्यागने की बजाय सुरक्षित हाथों में सौंप दें।
09 मई 2018बांसवाड़ा, राजस्थान (F)