भरी दोपहरी कड़ी धूप में शीशम के एक पेड़ के नीचे थैले में बंद था वह। एक राहगीर की नजर पड़ी, पर उसने उठाया नहीं, गांव में जाकर एक महिला को बताया। महिला आई और बच्चे को अपने साथ ले गई। चारों तरफ चर्चा फैली, बच्चे को पहले स्थानीय अस्पताल और फिर राजधानी के बड़े अस्पताल भी ले जाया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और वो समय बीत चुका था, जिसमें उसे बचाया जा सकता था। नतीजा, एक और मासूम अपनी जान से हाथ धो बैठा। घटना रांची के सिल्ली-राहे सीमा क्षेत्र में स्थित बंसिया पंचायत के तिलमीसेरेंग गांव में घटी।
पत्रकार श्री विनीत भारद्वाज ने पा-लो ना को घटना की सूचना दी। इस पर टीम ने बच्चे को रांची ला रहे विधायक प्रतिनिधि श्री रोहित बंसिया से बातचीत की और बच्चे की स्थिति जानने का प्रयास किया। उस वक्त श्री बंसिया थाना प्रभारी के साथ बच्चे को लेकर रांची ही आ रहे थे और रास्ते में थे।
उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि बच्चा रेशमी देवी को मिला था। उनके अनुसार, गांव में अभी सड़क निर्माण का कार्य चल रहा है। दोपहर तीन-साढ़े तीन बजे के आसपास निर्माण कार्य के मुंशी वहां से गुजर रहे थे तो उन्होंने सड़क किनारे शीशम के पेड़ के नीचे एक थैला देखा, जिसमें एक कपड़े में लिपटा नवजात शिशु रखा हुआ था। उन्होंने तुरंत गांव में जाकर श्रीमती रेशमी देवी को बच्चे के बारे में बताया और उसे वहां से उठा लाने को कहा। रेशमी देवी बच्चे को वहां से अपने घर ले आई। बच्चा बहुत रो रहा था।
जल्द ही ये सूचना आस-पास के गांवों में भी फैल गई और विधायक प्रतिनिधि श्री बंसिया तक भी पहुंची। इस बीच पुलिस को भी घटना की जानकारी मिल चुकी थी। तब बच्चे को जोन्हा के रिंची अस्पताल में ले जाया गया। उनके द्वारा बच्चे को स्वस्थ बताए जाने पर थाना प्रभारी और श्री बंसिया बच्चे को लेकर रात में ही रांची के लिए निकल पड़े और उसे सहयोग विलेज रांची के सुपुर्द कर दिया। इसकी मॉनिटरिंग बाल कल्याण समिति के श्री श्रीकांत कर रहे थे। कुछ देर बाद उन्हें सूचना मिली कि बच्चा दूध नहीं पी रहा है, तो उन्होंने बच्चे को रानी चिल्ड्रेन अस्पताल ले जाने का निर्देश दिया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया।
टीम पा-लो ना का मानना है कि इस घटना में कई स्तरों पर लापरवाही नहीं बरती जाती तो बच्चे को बचाया जा सकता था। सबसे पहले मुंशी ने बच्चे को खुद तुरंत नहीं उठाया, बल्कि वह किसी और को वहां बुलाने के लिए चले गए। इस बीच में कोई जानवर भी शिशु को उठाकर ले जा सकता था। तीन बजे मिले बच्चे को रात साढ़े आठ बजे अस्पताल ले जाया गया। इस बीच, उसने दूध या पानी पिया या नहीं, इसकी कोई जानकारी नहीं है। अगर नहीं पिया था तो किसी ने इसे नोटिस क्यों नहीं किया। रिंची अस्पताल के स्टाफ ने ये जानने के बाद भी कि बच्चा किन हालात में मिला है, इस मामले को गंभीरता से क्यों नहीं लिया। उसे एंबुलैंस से रांची क्यों नहीं भेजा गया। रांची लाने के बाद उसे सीधे अस्पताल क्यों नहीं ले जाया गया।
जिन हालात में वह मिला था, उसमें वह सही नहीं हो सकता था, ये बात किसी को समझ क्यों और कैसे नहीं आई। सबसे बड़ा सवाल- इसकी हत्या का दोषी कौन है…
12 जून 2018 रांची, झारखंड (M)