क्या हुआ –
दो चट्टानों के बीच झाड़ियां और उनके बीचोंबीच रखा हुआ एक मासूम बच्चा। न जाने कब से वहां रखा हुआ था। शरीर पर खून व नाभि के अतिरिक्त कोई कपड़ा नहीं था और वह खून भी सूख चुका था। शरीर पर चींटियां व कीड़े मकौड़े लिपटे
हुए थे और उसके खून पर मक्खियां मंडरा रहीं थीं। झाड़ियों ने भी बच्चे को नुकसान पहुंचाया था। सिंगरौली के माडा थाना क्षेत्र के भुड़कुड़ पहाड़ी टोला में ये घटना 22 अगस्त, शनिवार को शाम करीब तीन-चार बजे घटी।
बच्चे पर लोगों का ध्यान तब गया, जब उसने रोना शुरू किया। तब आस-पास मौजूद लोगों ने उसके चारों तरफ भीड़ लगा ली। वहां भीड़ लगते देख अनुज नामक युवक भी वहां पहुंच गया। उसने देखा कि कोई भी बच्चे को उठा नहीं रहा है और न
ही पुलिस को कोई सूचना दे रहा है। उसने तुरंत डायल 100 को फोन किया और वहां बैठकर बच्चे को एक पेपर से पंखा झलने लगा, जिससे चींटियां बच्चे के शरीर से दूर हो जाएं। करीब आधे घंटे में फास्ट रिस्पोंस व्हिकल पर तैनात आरक्षक
सहजानंद सिंह व पायलेट पतिराम शाह वहां पहुंच गए। वह अपने साथ एक कपड़ा लेकर गए थे। उन्होंने बच्चे को साफ किया और उसे लाकर तुरंत जिला अस्पताल बैढन में एडमिट करवाया। फिलहाल बच्चा सुरक्षित है और अभी भी अस्पताल में ही भर्ती
है। वह इलाज को रिस्पॉंड भी कर रहा है। लेकिन उसके दोनों पैर मुड़े हुए हैं।
पा-लो ना को घटना की जानकारी सीडब्लूसी, सिंगरौली से मिली।
सरकारी व अन्य पक्ष –
“शाम होने वाली थी, हमने देखा कि लोग एक बड़ी चट्टान के पास भीड़ लगाए हुए हैं। हम भी उसमें घुस गए। वहां झाड़ियों में एक बच्चा था। उसके जन्म को कुछ घंटे बीत चुके थे उस वक्त। नाभि, खून सब लगा
हुआ था, पर खून थोड़ा सूख गया था। हमने कहा कि पुलिस को फोन करते हैं, तो सब मना करने लगे। लेकिन हमें लगा कि ऐसे तो बच्चा मर जाएगा, इसलिए हमने डायल 100 पर फोन कर दिया। आधे घंटे में पुलिस वहां पहुंच गई और बच्चे को अपने
साथ ले गई। हमारी उम्र अभी कम है। बहुत अनुभव भी नहीं है। इसलिए डर से बच्चे को जमीन पर से नहीं उठाए, लेकिन कागज का एक टुकड़ा लेकर वहीं बच्चे को झलने लगे, ताकि कीट पतंगे भाग जाएं। इस मामले में कार्रवाई जरूर होनी चाहिए,
वरना फिर और भी लोगों का भी मन बढ़ेगा। दूसरे लोग भी ऐसे ही बच्चों को डालने लगेंगे। अभी लोगों को जानकारी भी नहीं है कि बच्चे का क्या करना चाहिए।” –
अनुज, बच्चे को बचाने वाला युवक, भुड़कुड़, सिंगरौली
“डायल 100 को शाम करीब चार बजे एक कॉलर के द्वारा बच्चे की सूचना मिली थी। उस वक्त हम घटनास्थल से 15-20 किलोमीटर की दूरी पर थे। जब वहां पहुंचे, सौ-डेढ़ सौ लोगों की भीड़ वहां इकट्ठा थी। बच्चे
के शरीर पर मक्खी, कीड़े आदि लगे हुए थे। हमने गाड़ी में से कपड़ा निकाला, उसे साफ किया, थोड़ी जांच की। उस वक्त जांच में ज्यादा समय जाया नहीं किया जा सकता था, क्योंकि बच्चे को अस्पताल पहुंचाना ज्यादा जरूरी था। अब बच्चा
ठीक है और जांच चल रही है।” –
आरक्षक सहजानंद सिंह, एफआरवी स्टाफ, माडा, सिंगरौली
“एक बच्चा बुरी हालत में भुड़कुड़ टोला में मिला था। उसे चींटियों ने बुरी तरह काटा है। फिलहाल एसएनसीयू में भर्ती है। इन घटनाओं को रोकने के लिए हमारे सिस्टम को अवेयरनैस पर ध्यान देना होगा।
आशा वर्कर्स वआंगनबाड़ी सेविकाओं को ट्रेनिंग दें तो इसके अच्छे परिणाम सामने आ सकते हैं। इसके अलावा इलाके में जगह जगह पालने भी लगाए जाने चाहिएं।” –
श्रीमती मंजू सिंह, सीडब्लूसी, सिंगरौली
पा-लो ना का पक्ष –
पा-लो ना बच्चे को पंखा झलने वाले और पुलिस को सूचना देने वाले अनुज व आरक्षक सहजानंद जी के प्रति आभारी है, कि उनकी तत्परता व संवेदनशीलता से बच्चा सकुशल है। पा-लो ना ने इस मामले में सिंगरौली के कई लोगों से विस्तार
से सवाल जवाब किए। इनमें पुलिस, चाईल्डलाईन, सीडब्लूसी, मीडिया के लोगों के अलावा अनेक स्थानीय लोग भी शामिल हैं।
पा-लो ना की जांच में इसके संकेत मिले हैं कि बच्चा वहीं पास में ही रहने वाली एक ऐसी महिला का है, जो अपने पति से अलग होकर मायके में रह रही है। यहीं रहते हुए उसे किसी परिचित से गर्भ ठहर गया। इस बच्चे को वे लोग अपना
नहीं सकते थे, इसलिए परिजनों ने बच्चे को वहां चट्टानों के पास छोड़ दिया। लेकिन ऐसा करते हुए उन्होंने ये नहीं सोचा कि इससे बच्चे को कितना नुकसान हो सकता है। यहां तक कि उसकी जान भी जा सकती है।
पा-लो ना बातचीत में मिले इन संकेतों की पुष्टि तो नहीं करता, लेकिन ये तो स्पष्ट है कि किसी न किसी ने तो बच्चे को वहां छोड़ा ही था। भविष्य में इस घटना की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए कुछ कदम उठाना बहुत जरूरी है, जैसे
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उस क्षेत्र में सरकार की सेफ सरेंडर पॉलिसी के बारे में व्यापक प्रचार प्रसार हो।
स्थानीय पुलिस इस मामले की तह तक जाए और दोषियों को पकड़े। इससे भविष्य के अपराधियों के मन में डर बैठेगा और वे किसी भी बच्चे को इस तरह असुरक्षित छोड़ने या मारने की बजाय सरकार को सौंपने
का विकल्प चुनेंगे।
एफआरवी यानि फास्ट रिस्पॉंस व्हिकल्स पर सेफ सरेंडर पॉलिसी से संबंधित पोस्टर, बैनर लगाए जा सकते हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि मध्य प्रदेश में इन वाहनों के इस्तेमाल से सैंकड़ों नवजात
बच्चों को बचाने में सफलता मिली है।
एफआईआर में आईपीसी सेक्शन 317 के साथ साथ 307, 326 व 34 और जेजे एक्ट का सेक्शन 75 भी लगना चाहिए।
चाईल्डलाइन के साथ साथ स्थानीय बाल संरक्षण पदाधिकारियों की जानकारी सभी आंगनबाड़ी केंद्रों, जच्चा बच्चा केंद्रों के साथ-साथ सभी अस्पतालों में भी डिस्प्ले होनी चाहिए।
22 August 2020
Singrauli, MP (M, A)