क्या हुआ – एक गोरे चिट्टे स्वस्थ नवजात शिशु को दुमका जिला मुख्यालय से
करीब 4-5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गिधनी गांव में खेत में छोड़ दिया गया। दुमका थाना
क्षेत्र, पोस्ट शिवपहाड़ के इस गांव में यह घटना मंगलवार
अहले सुबह घटी। खेत में पड़े इस बच्चे पर गांव के ही सुनील सोरेन की नजर पड़ी। उन्होंने
अपनी एक महिला रिश्तेदार को बुलवाकर बच्चे को वहां से उठाया और उसे प्राथमिक स्वास्थ्य
केंद्र ले गए। वहां से बच्चा बाल कल्याण समिति के
पास ले जाया गया। फिलहाल वह पूरी तरह स्वस्थ है और दुमका स्थित स्पेशल एडॉप्शन एजेंसी
में है।
सरकारी पक्ष – पा-लो ना को घटना की जानकारी एक अखबार के माध्यम से मिली
थी, जिसमें इस बच्चे के संबंध में विज्ञापन छपवाया गया था। तब दुमका के डीसीपीओ श्री
प्रकाश चंद्र और स्पेशल एडॉप्शन एजेंसी के संचालक श्री
तारिक अनवर से संपर्क कर घटना की पुष्टि की गई। श्री अनवर ने डॉक्टर्स के हवाले से
बताया कि बच्चे का जन्म उसी दिन ही हुआ था, जिस दिन उसे वहां छोड़ा गया था। उसकी नाभि
थोड़ा कटी हुई थी, बाकी उन्होंने अपने यहां लाकर कटवाई
और साफ भी किया। उन्होंने बताया कि यदि उसके अभिभावक या परिवार का पता नहीं चलता है तो
जल्द ही उसे एडॉप्शन के लिए लीगली फ्री कर दिया जाएगा। वहीं डीसीपीओ श्री प्रकाश चंद्र
ने ये अपील की कि किसी भी बच्चे को इधर-उधर असुरक्षित
छोड़ने की बजाय सुरक्षित स्थान पर छोड़ा जाए। सबसे बेहतर है कि उसे सीडब्लूसी को सरेंडर
किया जाए। यदि बच्चे को लेकर कोई परेशानी है तो उसके लिए भी जिले में मौजूद सीडब्लूसी
से संपर्क करें। इसे यथासंभव दूर करने का प्रयास
किया जाएगा। प्रशासन के स्तर पर जो भी मदद हो सकेगी, वह उपलब्ध करवाई जाएगी। बच्चों के
संरक्षण के लिए विभिन्न स्कीम्स चल रही हैं, जिनके बारे में सामान्य जन को जानकारी नहीं
होती है और वे घबराकर बच्चे का परित्याग कर देते
हैं, जिसे टाला जा सकता है।
पा-लो ना का पक्ष – दिए गए विवरण से ऐसा ही लगता है कि बच्चे को परिवार
और समाज के डर से छोड़ा गया है। एक नवजात शिशु को कहीं भी असुरक्षित छोड़ना उसके जीवन
को खतरे में डालना है। जानवरों के साथ साथ कीड़े-मकौड़े
भी इन शिशुओं को अपना आहार बना लेते हैं। हमारे लिए यही राहत की बात है कि किसी जानवर
से पहले इंसानों की नजर उस मासूम पर पड़ गई औऱ उसे बचा लिया गया। यदि यह परित्याग
अनिवार्य था, तो इसके परिजनों को थोड़ी समझदारी बरतनी चाहिए
थी और उसे किसी सुरक्षित स्थान पर और सुरक्षित समय पर छोड़ना चाहिए था। इसके लिए सिर्फ
मां को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। बच्चे का पिता भी इसके लिए बराबर का अपराधी है,
क्योंकि यदि उन्होंने बच्चे की और उसकी मां की जिम्मेदारी
उठाई होती तो ये स्थिति नहीं आती। पा-लो ना श्री सुनील सोरेन की भी शुक्रगुजार है,
जिन्होंने एक नवजात बच्चे के जीवन को बचाने में अहम भूमिका निभाई। वहीं, यह भी मालूम
हुआ है कि दुमका में अभी तक क्रेडल्स (पालने) नहीं लगे
हैं। इनका लगना और इसकी जानकारी, इनके लगने का उद्देश्य आम लोगों को पता चलना बहुत
जरूरी है। इसलिए पालोना दुमका प्रशासन से ये अपील करता है कि वहां जल्द से जल्द पालने
लगाएं जाएं और उनके बारे में समाज के लोगों को बताया जाए,
स्कूल-कॉलेज में इसके लिए वर्कशॉप की जाएं।
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09 April 2019 Dumka, Jharkhand (M)