शुक्र है कि उस नवजात को फर्श पर छोड़ा था, पैन में नहीं
ये टॉयलेट का फर्श था, पालना नहीं…
मोनिका आर्य
28 अप्रैल 2022, गुरुवार, मुम्बई, महाराष्ट्र।
क्या करें, इस बात के लिए भी शुक्र मनाना पड़ता है कि उन्होंने उस नवजात बच्ची को फर्श पर छोड़ा था, टॉयलेट पैन में नहीं। भले ही वो फर्श किसी ट्रेन के शौचालय का क्यों न हो। हम हर दिन जिस तरह की घटनाओं के गवाह बनते हैं, उसमें इस बात की आशंका ज्यादा रहती है कि शिशु को चलती ट्रेन के पॉट में डाल कर फ्लश कर दिया जाए। आखिर एक नवजात बच्चा होता ही कितना बड़ा है !
ये घटना दो सप्ताह पहले बुधवार, 13 अप्रैल 2022 को खानदेश एक्सप्रेस में घटी। मुम्बई के मीडिया में आई खबरों के अनुसार, खानदेश एक्सप्रेस के यात्री रात में अचानक चौंक गए। किसी नवजात बच्चे के रोने की जोर से आती आवाज ने उन्हें बेचैन कर दिया था।
जब खोजबीन की गई तो ट्रेन के शौचालय में एक मासूम बच्ची मिली। न जाने कौन उस बिटिया को शौचालय में फर्श पर छोड़ गया था। ये अच्छी बात थी कि उसे फर्श पर ही छोड़ा गया था, टॉयलेट पैन में फ्लश नहीं किया गया था, जैसा कि उसके जैसे अनेक शिशुओं के साथ पूर्व में हो चुका था।
बोरीवली जीआरपी (राजकीय रेलवे पुलिस) ने अज्ञात महिला के खिलाफ खानदेश एक्सप्रेस में एक बच्चे को छोड़ने का मामला दर्ज कर लिया है। इसमें शिकातकर्ता बने हैं, विले पार्ले निवासी एक व्यक्ति, जो अपने परिवार के साथ नंदुरबार जा रहे थे। मंगलवार को वह खानदेश एक्सप्रेस में सवार हुए। बुधवार को उन्हें परिवार समेत बोरीवली स्टेशन पर उतरना था। लेकिन उन्होंने देखा कि एक नवजात शिशु कुछ कपड़ों में लिपटा हुआ है और शौचालय के फर्श पर लेटा हुआ है।
उन्हें वहां शिशु को उस हालत में देखा बड़ा अचम्भा हुआ। नजदीक से देखने पर मालूम हुआ कि वह शिशु एक लड़की है। आसपास पूछताछ करने पर भी उसके परिजनों के बारे में जब कुछ पता नहीं चला तो उन्होंने ट्रेन के स्टाफ को इस बच्ची की जानकारी दी। जब तक स्टाफ ने रेलवे पुलिस को इन्फॉर्म किया, तब तक ट्रेन बोरीवली से बांद्रा टर्मिनस की ओर निकल चुकी थी। फिर बांद्रा जीआरपी को सूचित किया गया। बांद्रा टर्मिनस पर ट्रेन के पहुंचने पर बच्ची को रेलवे पुलिस ने अपनी सुपुर्दगी में लेकर अस्पताल में भर्ती करा दिया।
जीआरपी अधिकारियों के मुताबिक, बच्ची स्वस्थ है और उस पर किसी चोट के निशान नहीं हैं। बोरीवली जीआरपी के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक अनिल कदम के हवाले से मीडिया लिखता है कि वे जांच करेंगे कि क्या कोई महिला ट्रेन से उतरी है। उन्होंने रेलवे से खानदेश एक्सप्रेस में यात्रियों की सूची उपलब्ध कराने के लिए भी कहा है।
पालोना का पक्ष
मुंबई पुलिस किसी ऐसी महिला को तलाश रही है, जो बीच मे किसी स्टेशन पर उतरी हो। लेकिन इस कृत्य को तो कोई पुरुष भी अंजाम दे सकता है।
विश्वभर में शिशु हत्या पर हुए तमाम शोधों ने ये साबित किया कि शिशु हत्या में प्रमुख दोषी महिलाएं होती हैं। लेकिन एक स्टडी ऐसी भी हुई, जिसमें महिलाओं ने ये स्वीकारा कि वो ये काम घर के पुरुषों के दबाव में करती हैं। स्वाभाविक है, कभी गृहस्थी बचाने के लिए, कभी समाज से नज़रें मिलाए रखने के लिए, क्योंकि दो लोगों के बीच बने अंतरंग रिश्ते का परिणाम तो हर बार उनकी अपनी कोख ही उजागर करती है।
पुरुष उन सब दबावों से हमेशा से मुक्त है। इसलिये पुलिस आज भी इन घटनाओं के सामने आने पर सिर्फ महिलाओं को दोषी समझती है, उन्हें खोजती है। लेकिन पालोना जेंडर बायस्ड नहीं है। वो मानता है कि एक बच्चे को कन्सीव करने से लेकर उसके लालन-पालन तक की समस्त जिम्मेदारी माता और पिता दोनों की होती है। इसलिए हमारा सवाल ये है कि इस जघन्य अपराध में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप शामिल पुरुष को कौन खोजेगा?
समय आ गया है कि हम नवजात शिशुओं को असुरक्षित छोड़ने के इस कृत्य को गंभीर अपराध की श्रेणी में दर्ज करेंऔर उसी तरह से इसे ट्रीट करें,जैसे अन्य गंभीर अपराधों को किया जाता है। जिम्मेदारों का हल्का रवैया इस तरह की अन्य घटनाओं को जन्म देगा।
खैर…
इस घटना में ये अपराध जिसने भी किया हो, भर्त्सना के योग्य है। टॉयलेट कोई पालना नहीं है कि एक मासूम नवजात बच्ची को वहां छोड़ दिया जाए।
- यदि सेफ सरेंडर पॉलिसी के बारे में उन्हें नहीं मालूम था तो वो उसे किसी सहयात्री को सौंप सकते थे।
- या कम से कम बर्थ (बोगी की सीट) पर तो छोड़ सकते थे।
- इनमें से कोई भी जगह शौचालय के फर्श से बेहतर होती।
ये टॉयलेट का फर्श था, पालना नहीं… – Refined Look (refinedlooknews.com)