नांदेड़ जिले में पहले नवजात बच्ची को गला घोंट कर मारा, अगले दिन ले ली बेटे की जान
क्या पोस्टपार्टम साइकोसिस की शिकार है उस बच्ची की माँ
31 मई 2022, मंगलवार, नांदेड़, महाराष्ट्र।
अनुसूया नाम था उसका। महज़ 04 माह की बच्ची थी वो। महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले में रहने वाली। 31 मई को ऐसा रोई कि वही उसका आखिरी रोना बन गया। नवजात बच्चे तो रोते ही हैं। रोकर ही वे अपना दुःख, दर्द, तकलीफ और भूख बयां करते हैं, लेकिन उस दिन उसकी मां को उसका रोना बर्दाश्त नहीं हुआ। लोकल मीडिया के अनुसार उसकी मां ने गला दबाकर उसकी हत्या कर दी। यही नहीं, इस घटना को अंजाम देने के अगले दिन 02 साल के बेटे दत्ता की भी खाना मांगने और रोने के कारण हत्या कर दी।
गूगल सर्फिंग के दौरान इस घटना की जानकारी एनडीटीवी डॉट इन की खबर से मिली। इसके मुताबिक, घटना 31 मई और एक जून को भोकर तालुका के पांढुर्ना गांव की है, जहाँ बच्चों के रोने पर मां ने नवजात बेटी और दो साल के बेटे का मर्डर कर दिया और उनके शवों को खेतों में ले जाकर जला डाला।
एनडीटीवी डॉट इन इस बारे में लिखता
महाराष्ट्र (Maharashtra) में एक हैरतअंगेज मामला सामने आया है जहां एक मां ने बच्चों के रोने से नारज होकर अपनी बेटी और बेटे की हत्या (Murder) कर दी. महाराष्ट्र में नांदेड़ जिले के एक गांव में एक महिला ने बच्चों के रोने से नाराज होकर अपनी नवजात बेटी और दो वर्षीय बेटे की कथित रूप से हत्या कर दी और उनके शवों को खेत में ले जाकर जला दिया.
भोकर थाने के एक अधिकारी ने बताया कि घटना 31 मई और एक जून को भोकर तालुका के पांढुर्ना गांव की है. धुरपदबाई गनपत निमलवाड़ ने 31 मई को रोने के कारण अपनी चार महीने की बेटी अनुसूया की गला घोंटकर कथित रूप से हत्या कर दी. अगले दिन उसने भोजन के लिए रोने पर अपने बेटे दत्ता की हत्या कर दी.
उन्होंने बताया कि आरोपी महिला धुरपदबाई ने अपनी मां कोंडाबाई राजेमोद और भाई माधव राजेमोद के साथ मिलकर बच्चों के शव जला दिये. आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है.
पालोना का पक्ष
विशेषज्ञ बताते हैं कि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में शारीरिक और मानसिक परिवर्तन होते हैं। कई बार वे इसके साथ कॉप-अप नहीं कर पाती हैं और अवसाद (डिप्रेशन) का शिकार हो जाती हैं। इसे पोस्टमार्टम डिप्रेशन कहते हैं। ये जानलेवा नहीं होता है। लेकिन जब इसकी प्रवृत्ति गम्भीर हो जाये तो ये पोस्टमार्टम साइकोसिस में बदल जाता है। वैसी परिस्थितियों में ये विशेषकर नवजात शिशुओं के लिए जानलेवा साबित हो जाता है।
इससे बचने के लिए जरूरी है कि गर्भावस्था के साथ साथ डिलीवरी के बाद भी महिला को मानसिक रूप से सपोर्ट किया जाए। महिला स्वयं भी अपने व्यवहार का आंकलन करती रहे। जैसे ही चिड़चिड़ापन हद से ज्यादा महसूस हो, मनोचिकित्सक से सम्पर्क करें।