क्योंकि वह लड़का नहीं थी। इसलिए उसे गले तक गड्ढे में दबा दिया गया। उसे कोई बचा न ले, इसलिए उसके चेहरे को भी पत्तों से ढक दिया गया था। उसने रातभर भीषण तूफान और बारिश झेली, लेकिन सांसों की डोर को टूटने नहीं दिया। घटना उड़ीसा के सुंदरगढ़ इलाके में घटी।
पत्रकार रवि रणवीरा ने बताया कि शनिवार को एक दिन की नवजात बच्ची को बोनाई के सनाझरण के जंगल वाले इलाके में बेहद खराब हालत में पाया गया। वह गले से नीचे मिट्टी में दबी हुई थी। केवल उसका चेहरा और सिर उस गड्ढे से बाहर था, जिसे पत्तों से ढक दिया गया था। इसे ढकने के पीछे क्या कारण था, इस विषय में कोई जानकारी नहीं है। हो सकता है कि जंगली जानवरों से बचाने के लिए ऐसा किया गया हो। लेकिन वहां जिंदा दफनाने के पीछे क्या वजह थी, इसका कोई अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता, सिवाय इसके कि वह लड़की थी, इसलिए उसे वहां फेंक दिया गया था।
उस रात इलाके में तेज बारिश और तूफान आया था। बच्ची वहां कब से दबी पड़ी थी, कहना मुश्किल है। सुबह जंगल की तरफ निकले ग्रामीणों को उसके रोने की आवाज सुनाई दी। तब उसे ढूंढा गया। इसके लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी। उऩ्हें वह पास में ही मिल गई। इस कार्य में पुलिस की भी मदद ली गई। उसके साथ ऐसा क्रूरतापूर्ण व्यवहार क्यों किया गया, पता नहीं चल सका है। बाद में एक आशा वर्कर लीलामणि मुंडा ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया। बच्ची की स्थिति बहुत खराब थी।
ये पहली बार नहीं है, जब उड़ीसा में गले तक दफनाया हुआ जिंदा बच्चा मिला हो। इससे पहले भी उड़ीसा के अलग-अलग इलाकों से ऐसी सूचनाएं मिलती रही हैं। बच्चों को इस तरह दफनाए जाने के पीछे क्या कारण है, इसका पता लगाना शेष है।
07 अप्रैल 2018 सुंदरगढ़, उड़ीसा (F)