गिरिडीह के बेंगाबाद में झाड़ियों में मिली नवजात बच्ची
18 MARCH 2021, GIRIDIH, JHARKHAND
क्या हुआ
गुरुवार का दिन था। दोपहर दो बज रहे थे। सूरज आसमान से आग बरसा रहा था। ऐसे में बेंगाबाद के बंदगारी गांव में एक नवजात जीवन झाड़ियों में बिना किसी ओट, बिना किसी कपड़े के दम साधे पड़ा था। न जाने कौन सी घड़ी अंतिम घड़ी बन जाए। क्या पता कोई जानवर ही आहट पाकर आ पहुंचे। लेकिन कितनी देर तक भला ऐसे रहा जा सकता था। चिलचिलाती धूप और भूख ने उसे बेहाल कर दिया और फिर उस बच्ची ने जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया।
सौभाग्य से उसी समय 10-12 साल का एक लड़का मनीष शौच के लिए वहां पहुंचा। उसने जब बच्ची के रोने की आवाज सुनी तो पहलेपहल डर गया। कहीं भूत-वूत तो नहीं। दौड़ा-दौड़ा घर पहुंचा और अपने परिवार वालों को सब बता दिया। सुनते ही सब घटनास्थल की तरफ दौड़ पड़े। इसमें मनीष की बुआ कविता देवी भी थी। तब तक वहां लोगों की भीड़ लग चुकी थी, लेकिन कोई भी उस मासूम बच्ची को उठाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था।
क्या पता कौन जात है- जैसी आवाजें हवा में तैर रहीं थीं। ऐसे में कविता ने हिम्मत दिखाई और बच्ची को झाड़ियों से निकाल अपने आंचल में छुपा लिया। बच्ची के मुंह से फेन निकल रहा था। गर्मी से तपते नन्हे शरीर को कुछ राहत मिली।
कविता उसे घर ले गईं। खून से लथपथ उस बच्ची को साफ किया। उसकी नाभि काटी। उसकी मालिश की। कविता का सबसे छोटा बच्चा दो साल का है। इसलिए कविता देवी ने उस मासूम को अपना दूध पिलाया, जो बच्ची के लिए जीवनदायी साबित हुआ। बच्ची के शरीर के कई स्थानों पर खरोंच के निशान थे। रात भर जाग-जाग कर कविता उस बच्ची की देखभाल करती रहीं।
अगले दिन शुक्रवार को दोपहर चाइल्डलाइन गिरिडीह की टीम बंदगारी गांव पहुंची। बच्ची को लेने का प्रयास किया तो कविता ने उसे देने से मना कर दिया। तत्पश्चात बेंगाबाद थाने को मामले में दखल देना पड़ा। कविता को समझा बुझा कर किसी तरह बच्चे को पहले सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में दिखाया गया। इसके बाद किसी तरह टीम बच्ची को ले गिरिडीह पहुंची और वहां मिशनरीज ऑफ चैरिटी में बच्ची को भेज दिया गया।
सरकारी व अन्य पक्ष
“मेरा भतीजा मनीष शौच के लिए दोपहर दो बजे तालाब की तरफ गया था कि उसे एक बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। वह डर गया और भागते हुए घर आ गया। तब हम उसके साथ गए। वहां बहुत लोग इकट्ठा थे, लेकिन कोई भी उस बच्ची को झाड़ियों से नहीं निकाल रहा था कि न जाने वह कौन सी जाति की है। वहां कुत्ते भी घूम रहे थे।
तब हमने उस बच्ची को वहां से निकाला। हमने कहा कि बच्ची किसी भी जाति की हो, हम इसे पालेंगे, हम इसे पोसेंगे। हम रात भर उसके लिए जागे। उसके लिए कपड़ा खरीदा। उसे तो जन्मते ही छोड़ दिया गया था। खून भी साफ नहीं किया था। उसके मुंह-हाथ-पैर में चोट भी लगी थी। हमने ही उसकी मालिश की। और फिर अगले दिन वे लोग (चाइल्डलाइन) आकर हमारे बच्चे को ले गए। हमें उससे मिलने भी नहीं दिया दोबारा। ये बहुत गलत बात है। हम नहीं उठाते तो कुत्ता उसे उठाकर ले जाता। हमें वो बच्ची दिला दीजिए। हम ही उसको पालेंगे, अच्छे से रखेंगे।”
- कविता देवी, बच्ची को बचाने वाली महिला, बेंगाबाद, गिरिडीह, झारखंड।
“बेंगाबाद थाना क्षेत्र के ओझाडीह पंचायत में बंदगारी गांव हैं। इसके बगल में नैयाडीह गांव है। इन दोनों गांवों के बीच में एक तालाब है, जो बंदगारी गांव में पड़ता है। इसी के पास झाड़ियों में बच्ची मिली है। यहीं प्यारी सिंह का पोता मनीष (पिता बुद्धन सिंह) शौच के लिए गया था कि उसने बच्ची की आवाज सुनी और डर गया। घर से अन्य लोगों को बुलाकर लाया। उसकी बुआ कविता देवी यहां मायके आई हुई है। वो भी साथ ही गई। कविता देवी ने ही बच्ची को झाड़ियों से निकाला और उसे अपना दूध पिलाकर नया जीवन दिया। कविता को पहले से तीन बच्चे हैं। सबसे छोटा बच्चा दो साल का है। शुक्रवार को चाईल्डलाइन की टीम आकर बच्चे को ले गई।”
- श्री संजय कुमार सरण, पत्रकार, गिरिडीह, झारखंड।
“हमें उड़ती उड़ती खबर तो मिली थी कि बंदगारी गांव में बच्ची मिली है, लेकिन हमें उसका सही पता नहीं मालूम चल रहा था। इतने में गिरिडीह से चाईल्डलाइन की टीम भी पहुंच गई। उन्होंने बताया कि उन्हें बच्ची की जानकारी रांची की मैडम से मिली है। तब बच्ची समेत कविता को थाने बुलाया गया और बच्ची चाईल्डलाइन की टीम को सौंप दी गई। इससे पहले बच्ची का मैडिकल भी करवाया गया। उसे कुछ हल्की चोट और खरोंच लगी हुई थी। कविता बच्ची को नहीं सौंपना चाहती थी। वह काफी रो रही थी। मामले में जीडी दर्ज की गई है।”
- इंस्पेक्टर कमलेश पासवान, थाना प्रभारी बेंगाबाद, गिरिडीह, झारखंड।
“बच्ची को चाइल्डलाइन की टीम द्वारा गिरिडीह ले आया गया है। फिलहाल वह मिशनरीज ऑफ चैरिटी में हैं और पूरी तरह स्वस्थ है। सोमवार को उसे धनबाद स्थित स्पेशल एडॉप्शन एजेंसी भेज दिया जाएगा।”
- श्री जीतू कुमार, डीसीपीओ, गिरिडीह, झारखंड।
पा-लो ना का पक्ष
“पा-लो ना को घटना की सूचना गिरिडीह के श्री प्रभाकर कुमार व विस्तृत जानकारी श्री संजय सरण से मिली। जानकारी मिलते ही चाइल्डलाइन गिरिडीह से संपर्क का प्रयास किया गया। साथ ही संबंधित ग्रुप्स में भी जानकारी शेयर कर इसे गिरिडीह के बाल संरक्षण पदाधिकारियों तक पहुंचाने की अपील की गई, ताकि बच्ची को जल्द से जल्द मैडिकल केयर मिल सके। टीम अगले दिन दोपहर तक ही गांव में पहुंच सकी, जिसकी वजह से उन्हें कुछ विरोध का भी सामना करना पड़ा।
पा-लो ना ने कविता देवी को समझाने का प्रयास किया कि लावारिस अवस्था में मिले नवजात शिशुओं को सरकार को ही सौंपना होता है। ऐसा नहीं करना कानूनी अपराध है। उन्हें एडॉप्शन की प्रक्रिया की जानकारी भी दी गई। साथ ही ये भी अपील की कि भविष्य में बच्चा मिलने पर उसे सबसे पहले नजदीकी अस्पताल ले जाएं।
इसके अलावा बेंगाबाद थाने से आईपीसी के सेक्शन 317, 307 व जेजे एक्ट की 75 सेक्शंस में केस दर्ज करने की अपील की गई। इसके लिए उन्हें तकनीकी सहायता भी मुहैया करवाई गई। पुलिस को बताया गया कि नवजात शिशुओं को छोड़ना एक गंभीर अपराध है और इसे रोकने के लिए इसमें एफआईआर दर्ज होना निहायत जरूरी है।”
- मोनिका आर्य, पत्रकार व संस्थापक पा–लो ना