ये साल के पहले ही हफ्ते में आया तीसरा मामला था, जिसमें नौ माह की एक नन्ही बच्ची को सफेद रंग के थैले में डालकर हजारीबाग जिले के बड़कागांव में टीपी फाईव घाटी के पास जंगल में छोड़ दिया गया था। उसे जिंदा छोड़ा गया था, या मृत, इसका पता पोस्टमार्टम से चल सकता
था, लेकिन न केस दर्ज हुआ, न पोस्टमार्टम हुआ। नजदीकी अरहरा गांव के लोगों की नजर जब उस पर पड़ी, थैले में उसका मृत शरीर था। घटना शनिवार सुबह 09 बजे की है। घटना की जानकारी पा-लो ना को पत्रकार श्रीमती चेतना झा और श्री उमेश
प्रताप ने दी। स्थानीय लोग नर्सिंग होम्स को इस घटना के लिए जिम्मेवार ठहरा रहे थे, जबकि पा-लो ना इसके पीछे नर्सिंग होम का हाथ नहीं मानती, क्योंकि बच्ची की उम्र 09 माह बताई जा रही है। नर्सिंग होम भ्रूण हत्या के लिए दोषी
हो सकते हैं, शिशु हत्या के लिए नहीं। ये या तो स्टिलबर्थ का मामला रहा होगा, या फिर बच्ची को जिंदा ही वहां छोड़ा गया होगा, जिसकी बाद में मृत्यु हो गई। मृत्यु के कारणों का पता पोस्टमार्टम से ही चल सकता है, लेकिन इस मामले
में बड़कागांव थाना पुलिस ने कोई केस ही दर्ज नहीं किया है। थाना प्रभारी के हवाले से श्री प्रताप ने बताया कि उनके पास कोई शिकायत नहीं आयी थी। श्री प्रताप की पहल पर थाना प्रभारी घटनास्थल पर गए भी, लेकिन उन्हें वहां कुछ
नहीं मिला। पा-लो ना का मानना है कि इस मामले में पुलिस को स्वयं प्रथम दृष्ट्या आईपीसी सेक्शन 318 के तहत मामला दर्ज कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजना चाहिए था। इसके लिए अखबार में छपी खबर को भी आधार बनाया जा सकता था। गहन
जांच पड़ताल के द्वारा बच्ची के दोषियों का पता लगाना संभव है। ऐसा देश के दूसरे प्रदेशों में हो रहा है, जहां पुलिस तत्परता से इन घटनाओं की तह में छुपे कारणों को खंगालती है। नौ दिन तक भी एफआईआर दर्ज न होता देख पा-लो ना
ने 14 जनवरी को थाना प्रभारी बड़कागांव श्री परमानंद कुमार मेहरा को एक अन्य एफआईआर की कॉपी उपलब्ध करवाकर उसी अनुसार उनसे एफआईआर दर्ज करने की अपील की है। इसके साथ ही पा-लो ना द्वारा घटना की जानकारी एसपी हजारीबाग श्री मयूर
पटेल को देकर उनसे भी इस मामले में हस्तक्षेप की अपील की गई है।
05 जनवरी 2019 हजारीबाग, झारखंड (F)