सुल्तानपुर घटहो पंचायत के वार्ड संख्या 10 में सुबह सुबह झाड़ियों से एक छोटे बच्चे के रोने की आवाज ने लोगों का ध्यान खींचा। बैद्यनाथ महतो, महादेव झा आदि झाड़ी के समीप पहुंचे तो वहां एक थैला नजर आया।
उसे बाहर निकालने पर उसमे से एक बच्ची निकली, जो जार-जार रो रही थी। उसके गले से लेकर मुंह तक एक पतला तौलिया (गमछा) बंधा हुआ था, जैसे कि उसे मारने की चेष्टावश किया गया हो। देखते ही देखते वहां काफी
लोग इकट्ठा हो गए। उन्हीं में मौजूद कार्तिक राय की पत्नी जुगो देवी ने उस बच्ची को ले लिया। इसकी जानकारी सभी संबंधित अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को भी दे दी गई थी। मगर कोई कार्रवाई नहीं होते देख जुगो देवी
11 दिन बीतने के बाद बच्चे को लेकर कागजी कार्यवाही के लिए बीडीओ वीरेंद्र कुमार के पास पहुंची। तब बात चाईल्ड लाइन और चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के श्री तेजपाल सिंह तक पहुंची। क्योंकि हमारा कानून बच्चे को ऐसे ही
रखने की किसी को भी इजाजत नहीं देता, और कोई भी एडॉप्शन कारा के तहत ही हो सकता है, इसलिये तमाम प्रशासन और अधिकारियों के साथ श्री सिंह बच्चे को लेने पहुंचे, ताकि उसे किसी एडॉप्शन सेंटर में भेजा जा सके। मगर
जुगो देवी और ग्रामीणों ने बच्चे को देने से साफ इनकार कर दिया। यही नहीं इस सारी कवायद के दौरान जुगो देवी बेहोश भी हो गईं, जिन्हें तत्काल अस्पताल ले जाया गया। जुगो देवी के पहले ही चार बेटियां और दो बेटे हैं और अधिकांश
की शादी हो चुकी है। बच्चे को बचाने वाले और उसे अपने साथ रखने वाले का अकसर बच्चे के साथ जुड़ाव हो जाता है, और वह बच्चे को गोद लेना चाहता है। अगर इसके पीछे मंशा सही हो तो उससे बच्चे का भला होता है, मगर ऐसे
भी सूचनाएं मिली हैं कि कई बार बच्चे को बेच दिया जाता है या लड़की होने के मामले में बाद मे उसे देह व्यापार में उतार दिया जाता है। इसीलिए कारा के जरिए एडॉप्शन पॉलिसी को इतना सख्त किया गया है। लेकिन पा-लो ना का
इस सिलसिले में अलग ही विचार है। पा-लो ना का मानना है कि यदि बच्चे को बचाने वाला उसे गोद लेना चाहता है तो ये अधिकार उसे अवश्य मिलना चाहिए, क्योंकि यदि वह बच्चे को बचाता ही नहीं, तो उसे गोद लेने-देने का सवाल
ही नहीं होता। मगर, एडॉप्शन के बाद मॉनिटरिंग बहुत सख्त होनी चाहिए, जिससे बच्चे की सुरक्षा, उसका भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।
28 अक्तूबर 2017समस्तीपुर, बिहार (F)