सुबह के करीब 11 बजे का समय रहा होगा, जब सोनारी निर्मल नगर की उन झाड़ियों में से एक बच्चे के रोने की आवाज ने कुछ लोगों का ध्यान खींचा। कौतुहलवश उन लोगों ने जब झाड़ियों को खंगाला तो उसमें से कंबल में लिपटा एक मासूम शिशु मिला। देखने से ऐसा लगता था कि किसी ने उसे जानबूझकर इस तरह रखा है कि उसे बचाया जा सके। घटना जमशेदपुर में शुक्रवार 19 जनवरी को घटी।
स्थानीय पत्रकार और चाईल्ड एक्टिविस्ट से मिली जानकारी के अनुसार, सोनारी निर्मल नगर की एक लड़की ने मंगलवार को एक शिशु को जन्म दिया। घरवालों के दबाव में आकर उस बच्चे को शुक्रवार को झाड़ियों में छोड़ दिया गया। कारण वह सामाजिक सोच थी, जो बच्चे के जन्म के लिए विवाह के बंधन को ही मान्यता देती है।
बच्चे को किसने वहां छोड़ा, ये तो पता नहीं चल सका, मगर इतनी जानकारी जरूर मिली कि उनका इरादा बच्चे को नुकसान पहुंचाने का कतई नहीं था। इसलिए उसे सुबह 9-10 के बीच छोड़ा गया था और कंबल से पूरी तरह लपेट दिया गया था। इन्हीं कारणों से उसे बचाया भी जा सका।
घटना में मोड़ आया शनिवार को, जब उस बच्चे की मां को पता लगाया गया। इस कार्य में एक चाइल्ड एक्टिविस्ट ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिन्होंने अपने संपर्कों के माध्यम से बच्चे की मां का पता लगाकर उससे संपर्क किया।
तब उसने बताया कि दिल से जुड़ा एक रिश्ता, जो सामाजिक मान्यता हासिल नहीं कर सका था, ये बच्चा उसी का परिणाम है। लड़का शादी करने के लिए तैयार था, लेकिन उसका परिवार तैयार नहीं हुआ, फलतः लड़का स्थिति से घबराकर भाग गया। नतीजतन लड़की पर बच्चे को एबॉर्ट करने का दबाव बनाया गया, जिसे उसने हिम्मत से नकार दिया। मगर मंगलवार, 16 जनवरी को बच्चे के जन्म के बाद शारीरिक और मानसिक कमजोरी के वशीभूत वह परिवार वालों का ज्यादा विरोध नहीं कर सकी और उसे उनके सामने झुकना पड़ा, जिसके बाद शुक्रवार को बच्चे को उसी इलाके की झाड़ियों में छोड़ दिया गया, मगर ऐसा करते हुए बच्चे की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा गया कि कहीं उसे कोई नुकसान न पहुंच जाए।
उस लड़की ने अपने बच्चे को फिर से अपनाने की गुहार लगाई। उसने कहा कि वह कुछ भी करेगी, लेकिन अपने बच्चे को खुद पालेगी। इस मां की गुहार में कुछ तो ऐसा था, जिसने वहां मौजूद पत्रकारों, चाईल्ड एक्टिविस्ट्स और प्रशासन के लोगों को छू लिया। सभी तरह के प्रमाणों की पुष्टि के बाद सर्व सहमति से नवजात शिशु को उसकी मां के हाथों में सौंप दिया गया। साथ ही उसकी निगरानी भी का जा रही है, ताकि भविष्य में बच्चे को कोई नुकसान न हो। बच्चा वापिस अपनी मां की गोद में पहुंच गया, क्या इससे बेहतर कुछ हो सकता था।
पा-लो ना टीम इस मां की हिम्मत की दाद देती है। साथ ही उन परिजनों का भी शुक्रिया अदा करती है, जिन्होंने बच्चे को मजबूरीवश छोड़ा जरूर, मगर उसके लिए सही वक्त चुना और सुरक्षित तरीके से वहां रखा। और सबसे ज्यादा शुक्रिया उन चाइल्ड एक्टिविस्ट का करती है, जिन्होंने लड़की का पता लगाने और उसके परिवार को विश्वास दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हमारे समाज को ऐसे चाइल्ड एक्टिविस्ट्स की और ऐसी मांओं की बहुत जरूरत है।
16 जनवरी 2018 जमशेदपुर, झारखंड (M)