वहां जो पालना न होता तो शायद फिर एक नवजात सड़क पर पड़ी मिलती। फिर क्या होता, इसका महज अंदाजा ही लगाया जा सकता है। लेकिन हम जिस घटना का जिक्र कर रहे हैं, उसमें अंदाज़ा लगाने की ज़रूरत ही नहीं, क्योंकि ये एक हकीकत है, जो बांसवाड़ा के बाल अधिकारिता विभाग कार्यालय में सोमवार रात्रि 11 बजे घटी।
पत्रकार रवि राठौड़ ने पा-लो ना को घटना की जानकारी दी। इसके मुताबिक, बांसवाड़ा के बाल अधिकारिता विभाग में लगे पालने में रात 11 बजकर 10 मिनट पर साईरन बज उठा, जिसका मतलब ही था किसी नन्हे मेहमान का आगमन। थोड़ी देर में ही बच्ची की किलकारी गूंजी और कर्मचारी पालने की ओर लपके। बाल कल्याण समिति के सदस्यों को इसकी सूचना दी गई। समिति की ओर से मधुसूदन व्यास पहुंचे और उन्होंने ही बच्ची को महात्मा गांधी चिकित्सालय में भर्ती करवाया।
बाल अधिकारिता विभाग के सहायक निदेशक दिलीप रोकड़िया का मानना है कि सरकार के पालना रखने के फैसले से नवजात शिशुओं का जीवन बचाने में काफी सहायता मिल रही है। उन्होंने लोगों से अपील भी की कि जो भी व्यक्ति अनचाहे बच्चों का पालन-पोषण करने में असमर्थ है, वह अपने बच्चे को पालने में रख सकता है, या बाल कल्याण समिति को सौंप सकता है।
टीम पा-लो ना का विचार है कि ये पालने, पालने न होकर एक ऐसी गोद हैं, जो अनचाहे नवजात शिशुओं का जीवन बचाने में बहुत कारगर भूमिका निभा सकते हैं। बांसवाड़ा के अलावा देश के कई हिस्सों में ये गोद मौजूद है। जरूरत है इसे हर राज्य, हर जिले, हर ब्लॉक में लगाने की और लोगों को इसके बारे में पूरी जानकारी देने की, ताकि नवजात शिशुओं को बचाया जा सके।
02 जुलाई 2018 बांसवाड़ा, राजस्थान (F)