क्या हुआ –
हमारे देश में कुछ ऐसे बच्चे भी जन्म लेते हैं, जिनके अस्तित्व को लेकर कोई फिक्रमंद नहीं। न इनके जीने से किसी को फर्क पड़ता है और न ही मरने से। झारखंड के जिले गोड्डा में घटी ये घटना इस बात की तस्दीक करती है।
यहां मंगलवार दोपहर एक नवजात बच्चे का शव मिलता है और फिर कहां गायब हो जाता है, न पुलिस को पता चलता है, न वहां के जन प्रतिनिधि को। दोनों एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल निश्चिंत हो जाते हैं, लेकिन हम ये जिम्मेदारी किस
के कंधों पर डाल कर निश्चिंत हो!
दरअसल मंगलवार देर शाम पा-लो ना को स्थानीय पत्रकार अमित कुमार से ये जानकारी मिली कि एक नवजात शिशु का शव वहां मूलर्स टैंक तालाब में देखा गया है। इसकी सूचना गोड्डा नगर थाने और वार्ड पार्षद श्री धर्मेंद्र हाजरा को दी
गई। दोनों घटनास्थल पर पहुंचे भी, मगर इसके बाद बच्चे का क्या हुआ, न पार्षद को मालूम है, न थाना प्रभारी को।
पुलिस का कहना है कि पार्षद ने स्थानीय लोगों की मदद से उस परिवार की पहचान कर ली थी, जिनका बच्चा था और फिर समझाने बुझाने के बाद वह परिवार अपने बच्चे को ले गया और अन्य लोगों की मदद से उसे कहीं नजदीक में ही दफना दिया।
इसमें पार्षद धर्मेंद्र हाजरा भी मौजूद रहे।
वहीं धर्मेंद्र हाजरा का कहना कुछ और ही है। उनके मुताबिक, उन्हें जब घटना की सूचना मिली, वह थाने में ही थे। जब वह घटनास्थल पर पहुंचे, वहां पुलिस मौजूद थी। उन्होंने नगरनिगम के सफाईकर्मी को बुलाया जरूर था, लेकिन फिर
उसे वहां पुलिस के पास छोड़कर वहां से चले गए थे और उन्हें नहीं मालूम कि बच्चे का क्या हुआ।
इसके बाद जब थाना प्रभारी इंस्पेक्टर अशोक सिंह को पार्षद के साथ ही लाइन पर लेकर फोन पर कॉन्फ्रेंस कॉल की गई तो थाना प्रभारी ने ये कहते हुए फोन रख दिया कि वे मालूम करते हैं कि बच्चे का क्या हुआ।
सरकारी व अन्य पक्ष –
“मंगलवार दिन में करीब तीन-साढ़े तीन बजे के आसपास कुछ लोगों ने देखा कि दो महिलाएं मूलर्स टैंक तालाब में कुछ फेंक रही हैं। बाद में लोगों ने वहां शिशु के शव को देखा तो अंदाजा लगाया गया कि उन
महिलाओं ने इस बच्चे को ही वहां डाला होगा। वार्ड पार्षद धर्मेंद्र हाजरा ने बच्चे के अंतिम संस्कार की बात कही। पुलिस भी उस वक्त वहां मौजूद थी। उस बच्चे के शव को पोस्टमार्टम के लिए नहीं भेजा गया।” –
श्री अमित कुमार, स्थानीय पत्रकार, गोड्डा, झारखंड
“एक बच्चा आज तालाब में मिला था। ऐसा लगता है कि नॉर्मल डैथ के बाद बच्चे को वहां तालाब में बहा दिया गया था। ठीक से नहीं बहाने से वह किनारे लग गया। शहर में ज्यादा जगह तो होती नहीं है, इसलिए
दूर जाने का ख्याल छोड़कर पास में तालाब में ही बच्चे को डाल दिया। लेकिन वार्ड पार्षद ने उस परिवार का पता लगा लिया। फिर परिवार को कहा गया कि ये सही जगह नहीं है तो परिवार बच्चा लेकर चला गया। वहीं आस-पास में स्थानीय लोगों
की मदद से उसे दफना दिया गया। इस मामले में कोई केस दर्ज नहीं किया गया है और न ही शव का पोस्टमार्टम करवाया गया।” –
इंस्पेक्टर अशोक सिंह, नगर थाना इंचार्ज, गोड्डा, झारखंड
“जिस वक्त बच्चे की सूचना मिली, मैं नगर थाने में ही एक अन्य झगड़े के निपटारे के लिए गया हुआ था। प्रेस रिपोर्टर्स से ही इसके बारे में मालूम हुआ। मैं घटनास्थल पर पहुंचा तो पुलिस वहां मौजूद
थी। मैंने निगम के सफाईकर्मी को बुलाकर उसे बच्चे को निकालने के लिए कह दिया था और फिर वहां से चला गया था। बच्चे का अंतिम संस्कार कैसे हुआ और किसने किया, मुझे नहीं मालूम। बच्चा किसका था, परिवार कौन है, इसके बारे में भी
मुझे कोई जानकारी नहीं।” –
श्री धर्मेंद्र हाजरा, वार्ड पार्षद, गोड्डा, झारखंड
पा-लो ना का पक्ष –
इस घटना में पुलिस ने अपनी जिम्मेदारी ठीक तरीके से नहीं निभाई। बच्चे का शव कहां गायब हो गया, इसका जवाब पुलिस को देना ही होगा, क्योंकि उसका पोस्टमार्टम करवाने से लेकर केस दर्ज करने तक की जिम्मेदारी पुलिस की ही थी।
यह प्रथम दृष्ट्या आईपीसी 318 का केस है, जिसके तहत किसी भी बच्चे के शव को सीक्रेट तरीके से दफनाना, छुपाना, या डिस्पॉज ऑफ करना एक अपराध है।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यदि स्टिलबोर्न बेबी होने की पुष्टि होती है तो इस केस में 318 की ही धारा लगाकर परिवार का पता लगाने का प्रयास किया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में वे फिर ऐसी घटना को अंजाम
न दे सकें।
यदि पोस्टमार्टम में बच्चे की हत्या की पुष्टि होती है तो फिर शिशु हत्या के अन्य सेक्शंस, जैसे 315, 34, 302 व जेजे एक्ट 75 इसमें लगाए जाने चाहिएं।
जन प्रतिनिधि की भी ये जिम्मेदारी है कि वह सामाजिक समस्या समझे जाने वाले शिशु हत्या और परित्याग के इस जघन्यतम अपराध को रोकने के लिए सशक्त भूमिका निभाएं। यह भूमिका इस मुद्दे पर अवेयरनैस फैलाने
से लेकर दोषी लोगों की पहचान करने में पुलिस प्रशासन का सहयोग करने तक शामिल है। पा-लो ना उनकी उस भावना का सम्मान करता है कि वह बच्चे के अंतिम संस्कार को प्रॉपर तरीके से करवाने के इच्छुक थे, लेकिन ऐसा करना तभी सही
होता, जब शव का पोस्टमार्टम हो चुका हो।
गोड्डा की जिला बाल संरक्षण यूनिट को ये बताना चाहिए कि आखिर इन बच्चों के संरक्षण की जिम्मेदारी किनकी है, जो मृत पाए जाते हैं। कौन इनका संज्ञान लेगा और कौन पुलिस प्रशासन से इन बच्चों
के संबंध में सवाल पूछेगा।
झारखंड का सोशल वैलफेयर डिपार्टमेंट बच्चों के परित्याग व उनकी हत्या को रोकने के लिए और सेफ सरेंडर को प्रमोट करने के लिए अवेयरनैस कार्यक्रम चलाने में अब तक विफल रहा है। उन्हें मास अवेयरनैस के साथ साथ “पिकेट अवेयरनैस कार्यक्रम” भी प्लान करने चाहिएं।
झारखंड सरकार को चाहिए कि वह उन बच्चों के लिए कोई पॉलिसी बनाए, जो नॉर्मल डैथ को प्राप्त होते हैं, लेकिन परिजनों की अक्षमता, लापरवाही या अनभिज्ञता की वजह से जिनका सही तरीके से अंतिम
संस्कार नहीं हो पाता और जिनके शव इसी प्रकार या तो पानी में तैरते पाए जाते हैं, या फिर जानवरों के मुंह में।
भारत सरकार को तालाब, नदी या इसी प्रकार के अन्य स्थानों पर पानी में बच्चों के शव बहाने पर तुरंत प्रभाव से रोक लगा देनी चाहिए। यह क्रूरता है और बच्चों की डिग्निटी के साथ खिलवाड़ भी।
पा-लो ना इसके सख्त खिलाफ है।
29 SEPTEMBER 2020
GODDA, JHARKHAND (M, D)