पानी में डूबने से नवजात बेटी की मौत
21 JUNE 2023, WEDNESDAY, GIRIDIH, JHARKHAND
MONIKA ARYA
झारखंड का गिरिडीह जिला नवजात बेटी की हत्या को लेकर एक बार फिर सुर्खियों में है। यहां एक स्तब्ध करने वाली घटना घटी है, जिसमें एक मां ने अपनी सात माह की जिंदा बेटी को कुएं में डाल दिया। मालूम हो कि 14 जून को भी यहां आठ माह का नवजात गायब हो गया था। वह अपने परिजनों के साथ सोया हुआ था। अगले दिन उसका शव पास के कुएं में मिला था।
कब, कहां, कैसे
पालोना को इस घटना की सूचना गिरिडीह मीडिया के साथी श्री अमर कुमार से मिली। उन्होंने एक खबर का लिंक पालोना से शेयर किया। इसके मुताबिक, यह घटना बुधवार सुबह चार बजे के करीब गिरिडीह के गावां थाना क्षेत्र के तराई गांव में घटी।
मायके जा रही थी महिला
गावां के पत्रकार श्री बसंत ने बताया कि तराई में रहने वाली पपला देवी अपने मायके सीरी जा रही थी। एक परिचित ने उन्हें अकेले जाते देखा तो उनकी दुधमुंही बेटी के बारे पूछताछ की। पपला देवी ने कहा कि बेटी घर पर है। परिचित को मालूम था कि पपला का पति अनुज यादव दिल्ली में मजदूरी करता है। कुछ ही दिन पहले उसकी सास की मृत्यु हुई है और पपला घर में अपनी बेटी के साथ अकेली रहती है।
परिचित को संदेह हुआ तो उन्होंने पपला के पति को फोन करके बेटी के बारे में पूछा। तब अनुज ने अपनी पत्नी से बात करवाने को कहा। पपला ने अनुज को बताया कि नवजात बेटी को कुएं में डाल दिया है। ये सुनते ही अनुज के साथ साथ उक्त परिचित के भी होश उड़ गए। उन्होने तुरंत आसपास के लोगों और गावां थाना प्रभारी सन्नी सुप्रभात को घटना की जानकारी दी।
पुलिस टीम तत्काल घटनास्थल पर पहुंची और बच्ची को कुएं में से निकाला। लेकिन तब तक बच्ची की मौत हो चुकी थी।
महिला गिरफ्तार
डीएसपी संजय राणा के हवाले से स्थानीय मीडिया ने लिखा है कि पपला देवी को गिरफ्तार कर लिया गया है। वहीं बच्ची के शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया है।
एक सवाल के जवाब में श्री बसंत ने पड़ोसियों के हवाले से बताया कि पपला देवी अक्सर गुमसुम रहती थी। किसी से ज्यादा मिलती जुलती नहीं थी।
मानसिक अवसाद का शिकार तो नहीं- पालोना
जानकारी पर गौर करने पर ऐसा लगता है कि महिला मानसिक अवसाद की चपेट में है। पति दूर रहता है। बेटी छोटी थी। सास की भी मौत हो चुकी है। ऐसे में महिला आसानी से मानसिक रोग का शिकार हो सकती है। इस दुष्कृत्य को भी महिला ने उसी अवसाद की हालत में अंजाम दिया है, ऐसा लगता है।
इन घटनाओं को टाला जा सकता है
यदि समय रहते हालातों पर ध्यान दिया गया होता और पपला की खामोशी को किसी ने पढ़ा होता तो आज एक मासूम नवजात बेटी को यूं अपनी जान से हाथ नहीं धोना पड़ता। मालूम हो कि इस अपराध को रोकने के लिए पालोना अभियान के तहत साल 2015 से कार्य किया जा रहा है। सैंकड़ों घटनाओं को जानने समझने के बाद हमें लगता है कि Parental Infanticide की घटनाओं को रोकने के लिए इन बिंदुओं पर काम करना होगा-
- सबसे पहले तो व्यक्ति, समाज, संस्थाओं और सरकारों को मिलकर इस अपराध के खिलाफ कई स्तरों पर तैयारियां करनी होंगी।
- न सिर्फ सामाजिक और सांस्कृतिक, बल्कि इस अपराध के मूल में छिपे विभिन्न मेडिकल कारणों को खोजना होगा, जिनमें POSTPARTUM DEPRESSION प्रमुख है।
- उन वल्नरेबल परिवारों पर निगाह रखनी होगी, जहां शिशु हत्या की घटनाओं को अंजाम दिया जा सकता है।
- ऐसे सभी परिवारों को सेफ सरेंडर संबंधी जानकारी, मेडिकल व अन्य सपोर्ट प्रोवाइड करनी होगी।
- गर्भवती महिला पर विशेष ध्यान देना होगा। उन्हें प्री और पोस्ट नेटल देखभाल, स्नेह और सुरक्षा देनी होगी।
- BABY SURRENDER POINTS बनाने होंगे, जो लोगों की रीच में हों।
- safe surrender के साथ साथ शिशु हत्या के कानूनों पर समाज में विमर्श खड़ा करना होगा, ताकि आम लोगों को मालूम हो कि उनके पास बच्चे को त्यागने के क्या क्या विकल्प मौजूद हैं। उन्हें ये भी मालूम होना चाहिए कि बच्चे की हत्या की स्थिति में उन्हें किन किन तकलीफों से गुजरना पड़ सकता है।
- आंगनबाड़ी वर्कर्स, पुलिस, जन प्रतिनिधि, समाज के प्रभावशाली लोगों और धार्मिक गुरुओं को शिशु हत्या और इसके विकल्पों की जानकारी देनी होगी।
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