भूख और दर्द से छटपटाकर बच्ची ने लगाई पुकार
त्यागना नहीं, बच्चे को सुरक्षित सौंपना है सही विकल्प– पालोना
01 सितंबर 2022 गुरुवार, गिरिडीह, झारखंड।
उस बच्ची के शरीर पर चोट लगी थी। वो रो रही थी। भूख, दर्द और छटपटाहट भरी करुण पुकार को कुछ लोगों ने सुना। तब कहीं उसके बचने की आस हुई। ये घटना झारखंड के गिरिडीह जिले में घटी, जहां झाड़ियों में मिली नवजात बच्ची।
यहां मिली बच्ची
पालोना को इस घटना की जानकारी गिरिडीह के वरिष्ठ पत्रकार श्री अमर सिंह से मिली। उन्होंने पालोना को बताया कि एक बच्ची गुरुवार सुबह बिरनी प्रखंड के पड़रिया पंचायत अंतर्गत वृंदा टोला जमुनियाँ तरी गाँव की झाड़ियों में मिली है।
उसके शरीर पर हल्का जख्म था। ऐसा लगता है कि बच्ची को छोड़ने के दौरान ही ये चोटें आई हैं। स्थानीय लोगों ने बिरनी पुलिस को सूचना दी। जब तक पुलिस वहां पहुंची, तब तक ग्रामीणों की भीड़ वहां लग चुकी थी।
इन्हीं ग्रामीणों में 32 वर्षीय उमेश पंडित भी थे। बृंदा निवासी उमेश पिता धनोखी पंडित ने झाड़ियों में मिली नवजात बच्ची को पालने की इच्छा जताई। हालांकि भारत के मौजूदा एडॉप्शन लॉ के मुताबिक, ऐसा संभव नहीं है।
जब भी कहीं कोई शिशु परित्यक्त अवस्था में मिले, आम व्यक्ति की जिम्मेदारी ये होनी चाहिए ⬇️
बच्ची को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बिरनी ले जाया गया। एएनएम नीता देवी ने झाड़ियों में मिली बच्ची को प्राथमिक चिकित्सा दी।
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पहले भी हुई हैं घटनाएं
मालूम हो कि इससे पहले गिरिडीह जिले के ही गांवा प्रखंड, जमुआ प्रखंड, सरिया प्रखंड में भी नवजात शिशु मिल चुके हैं। शिशु परित्याग की बढ़ती हुई घटनाओं को देखते हुए स्थानीय ग्रामीणों में काफी रोष है।
पालोना का पक्ष
- पालोना का मानना है कि बाल संरक्षण से जुड़ी सरकारी एजेंसियों को उस क्षेत्र में व्यापक प्रचार प्रसार करना चाहिए।
- लोगों को सेफ सरेंडर पॉलिसी के बारे में बताना चाहिए।
- पैम्फलेट, पोस्टर आदि के माध्यम से भी सेफ सरेंडर पॉलिसी पर जन जागरूकता करनी चाहिए।
- प्रमुख स्थलों पर पालने लगाने चाहिए।
याद रखें
- किसी वजह या मजबूरी से यदि शिशु को पालने में समर्थ नहीं हैं तो ⬇️
- उसे सरकार को सुरक्षित सौंप दें।
- सार्वजनिक स्थान पर लगवाए गए पालनों में रख दें।
- संरक्षण व सुरक्षा के बिना किसी भी नवजात को कहीं छोड़ना नैतिक, मानवीय और कानूनी रूप से जघन्य अपराध है।
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