जावरा शहर के इकबालगंज की गली निवासी राकेश चावरे को शाम चार-साढ़े चार बजे के आस-पास किसी छोटे बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। वह अपने घर में ही थे। बाहर निकलकर उन्होंने इधर-उधर देखा, तो उन्हें
कुछ नजर नहीं आया। पर आवाज लगातार आ रही थी। आवाज की दिशा पर ध्यान दिया तो उन्हें आवाज घर के पास मौजूद नाले में से आती महसूस हुई। वह बिना देरी किए नाले पर पहुंचे तो आवाज तेज हो गई। उन्हें नाले
में एक पॉलीथिन नजर आया, जिसमें कुछ हरकत हो रही थी। उन्होंने तत्काल उसे नाले से बाहर निकाला और उसे खोला। उसमें तुरंत पैदा हुई एक बच्ची को देखकर वह दंग रह गए। इसी बीच आस-पास वाले और कुछ राहगीर
भी वहां इकट्ठा हो गए। घर से एक तौलिया मंगाकर बच्ची को साफ किया गया, क्योंकि मुंह और नाक पर लगी गंदगी उसके लिए जानलेवा साबित हो सकती थी। बच्ची को सरकारी अस्पताल ले जाया गया, जहां वह फिलहाल
आईसीयू में है। घिन्न आती है उस सोच पर, जो गटर से भी ज्यादा सड़ चुकी है। बच्ची को तो नाले से निकाल कर साफ कर दिया गया। ये तो फूल की तरह खिलकर खुशबू की तरह महक जाएगी, पर उन गंदे लोगों का क्या
होगा, जो सुकोमल बच्चों को इस तरह मारने पर तुले हैं, कौन उनके दिमागों को साफ करेगा, तरीका क्या है उन्हें साफ करने का? हम समझते हैं कि आज भी हमारे समाज में महिलाओं पर एक दबाव काम करता है, जो बेटी
होने पर उसे त्यागने के लिए उकसाता है, मजबूर करता है। लेकिन ये परित्याग सुरक्षित स्थानों पर भी तो हो सकता है। एक नाला ही क्यों? किसी की मजबूरी तो समझ में आती है, पर दिमागों में बसी वो गंदगी नहीं, जो एक
नन्ही सी जान को मारने के लिए नाले में फेंकवा दे…
13 नवंबर 2017रतलाम, मध्य प्रदेश (F)