नवंबर का महीना, रविवार की शाम और धान के खेत में मौजूद एक मासूम बच्ची, निपट अकेले…ये उस एरिया के लिए सामान्य घटना नहीं थी। बच्ची ठंड से ठिठुर रही थी, जब उस पर दो ग्रामीणों की नजर पड़ी। घटना देवघर के बसवरिया पंचायत अंतर्गत बंदे गांव में घटी।
दैनिक प्रभात खबर, देवघर के संपादक श्री संजय मिश्रा जी ने पा-लो ना को घटना की जानकारी दी। इसके मुताबिक देवघर के बंदे गांव स्थित एक खेत में शाम के समय एक नवजात बच्ची परित्यक्त अवस्था में मिली। वह ठंड से परेशान थी, जब गांव के ही मुकुंद पंडित व जगदीश राय को बच्ची के रोने की आवाज सुनाई दी।, वे दौड़े हुए वहां पहुंचे।
बच्ची की स्थिति देख वे अवाक रह गए। उन्होंने तुरंत उसे जमीन पर से उठाया और घर ले आये। अन्य ग्रामीणों को भी उन्होंने बच्ची की जानकारी दी। भूख से बेहाल बच्ची को गांव की एक महिला ने दूध पिलाकर चुप करवाया। मुखिया विश्वनाथ राउत भी कुछ देर बाद वहां पहुंच गए। उन्होंने ये सूचना जसीडीह थाना प्रभारी डीएन आजाद को दी। इसके बाद गांव के ही एक दंपती विष्णु राय और उनकी पत्नी सुमिया देवी को देखभाल के लिए बच्ची सौंप दी गई। विवाह के कई वर्षों बाद भी उनके कोई संतान नहीं थी, इसलिए ग्रामीणों की सहमति से ये कदम उठाया गया। इसके बाद बच्ची को इलाज के लिए सदर अस्पताल लाया गया।
ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ए.के. अनुज ने बच्ची का चैकअप किया। वह स्वस्थ प्रतीत हो रही थी, फिर भी रुटीन जांच व एक्सरे करवाने के उन्होंने निर्देश दिए, ताकि अंदरूनी चोट या घाव की जानकारी मिल सके। उन्होंने ये भी बताया कि बच्ची लगभग दो दिनों की है।
इस घटना की जानकारी पा-लो ना द्वारा चाईल्ड एक्टिविस्ट्स के ग्रुप में शेयर करने के बाद सिमडेगा सीडब्लूसी श्रीमती मीरा जी ने फोन कर जानना चाहा कि क्या इस तरह बच्ची को किसी को भी सौंप देना सही है। तब उन्हें बताया गया कि मौजूदा कानून के मुताबिक, यह गलत है, लेकिन कुछ समय देखभाल के लिए बच्ची को सौंपा जा सकता है। हालांकि सीडब्लूसी को इसकी तत्काल सूचना देकर बच्चे को रिकवर कर लिया जाना चाहिए, क्योंकि ज्यादा समय बच्चे के साथ बिताने से उससे मोह हो जाता है और फिर उससे अलग होना कठिन होता है।
यही वजह रही कि पा-लो ना द्वारा घटना की सूचना चाईल्ड एक्टिविस्ट्स के साथ शेयर की गई है, ताकि संबंधित बाल कल्याण समिति इसका संज्ञान ले ले। हालांकि सैद्धांतिक रूप से पा-लो ना इस नियम के खिलाफ है। पा-लो ना का स्पष्ट मानना है कि जो बच्चे को बचाते हैं, वे यदि चाहें तो बच्चे को पालने का पहला अधिकार उन्हें मिलना चाहिए, लेकिन जब तक कानून में इसका प्रावधान नहीं हो जाता, तब तक ऐसा नहीं किया जा सकता।
वहीं, देवघर बाल कल्याण समिति के श्री देवेंद्र पांडे जी ने पा-लो ना को बताया कि बच्ची को इलाज के बाद 16 तारीख को स्पेशल एडॉप्शन एजेंसी, देवघर को सौंप दिया गया है। बच्ची स्वस्थ है। उसे ज्यादा चोट भी नहीं आई थी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि एफआईआर की प्रक्रिया जारी है। चाईल्डलाइन को एफआईआर दर्ज करवाने के निर्देश दे दिए गए हैं।
पा-लो ना का मानना है कि यदि डॉक्टर की बात सही है और बच्ची दो दिन अपने पास रखने के बाद उसका त्याग किया गया है तो इसके पीछे एक वजह उसका लड़की होना या घर में बच्चों की ज्यादा संख्या भी हो सकती है।
इसके अलावा एक और बात, जिस पर पा-लो ना का जोर है, वह यह कि एक हफ्ते से ज्यादा समय बीतने के बावजूद इस मामले में अब तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई है, जो अब तक हो जानी चाहिए थी। एफआईआर दर्ज करने में दो तरह की परेशानियां सामने आ रही हैं- एक तो ये है कि पुलिस केस रजिस्टर करना ही नहीं चाहती है। और दूसरी वजह ये है कि पुलिस और अधिकांश सीडब्लूसी मेंबर्स, डीसीपीओ आदि को भी इसकी जानकारी ही नहीं है कि इन घटनाओं में किन धाराओं के तहत केस दर्ज किया जाना चाहिए।
11 नवंबर 2018 देवघर, झारखंड (F)