जन्म देने के बाद करीब डेढ़ महीने तक उन्होंने उसे पाला-पोसा, फिर न जाने क्या हुआ कि वह पुल के पास नजर आई, अपनी तरह मिलने वाले अन्य अनेक बच्चों की तरह, अहले सुबह, बिल्कुल अकेले। घटना दरभंगा के केवटी थाना क्षेत्र की है, जहां सुबह नित्य क्रिया को जाते लोगों को लगभग 45 दिन की मासूम बच्ची दरभंगा जयनगर एनएच 527 के मोहनी पुल के पास मिली।
पत्रकार श्री गिरीश ने पा-लो ना को बताया कि बच्ची को पुल के पास रख दिया गया था। उसे अच्छी तरह कवर भी किया गया था, ताकि उसे ठंड न लगे। लेकिन उनकी इस हिफाजत के बावजूद वह हर पल खतरे में थी। कोई भी जानवर उसे कभी भी वहां से उठा कर अपना निवाला बना सकता था।
हालांकि उसे वहां रखते हुए ना तो किसी ने देखा और ना ही किसी को सुबह से पहले बच्ची के वहां होने की खबर लगी। सुबह उसके रोने की आवाज पर ग्रामीणों का ध्यान उसकी ओर गया। तब लोगों ने बच्ची को उठाकर अपने पास रख लिया और केवटी पुलिस को सूचना दे दी। सूचना मिलते ही पुलिस के साथ चाइल्ड लाइन के लोग भी वहां पहुंच गए और बच्ची को केवटी सीएचसी में ले गए, ताकि उसकी मेडिकल जांच करवाई जा सके। बच्ची कब से वहां थी, यह कहना मुश्किल है, लेकिन इतनी ठंड में छोड़ने के बावजूद बच्ची का स्वास्थ्य ठीक है।
डॉक्टर क़मर इकबाल के हवाले से श्री गिरीश ने बताया कि बच्ची की उम्र 45 से 50 दिन है और उसे किसी तरह की कोई समस्या नहीं है। बच्ची के स्वस्थ होने की वजह से उसे बुधवार को ही चाइल्ड लाइन को सौंप दिया गया है।
इस मामले में पुलिस ने कोई केस दर्ज नहीं किया है, यह जानकारी मिलने के बाद पा-लो ना ने इस संबंध में केवटी थाना प्रभारी श्री कौशल कुमार से बातचीत की। उन्हें बताया गया कि इस मामले में आईपीसी की धारा 317 व 308 के साथ साथ जेजेएक्ट के सेक्शन 75 के तहत एफआईआर दर्ज होनी चाहिए। इसके साथ ही उन्हें केस दर्ज होने के परिणामों और केस दर्ज नहीं के दुष्परिणामों से भी अवगत कराया गया।
45 दिन तक बच्ची को अपने पास रखने के बाद उसे त्याग देना पा-लो ना के लिए भी शोध का विषय है। हो सकता है कि लड़की होना ही उसे त्यागने का कारण बन गया हो, या ये भी हो सकता है कि परिजनों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं हो। बच्ची के जन्म के बाद उन्हें लगा हो कि वे उसे पाल लेंगे किसी तरह, लेकिन फिर असमर्थ रहे हों। एक वजह ये भी हो सकती है कि बच्ची की मां पर ससुराल पक्ष का दबाव काम कर गया हो कि लड़की के साथ घर में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा। वजह कोई भी हो सकती है, जो सही दिशा में जांच करने से जरूर सामने आ जाएगी।
आस-पास के गांवों में गहन पूछताछ हो तो इस विषय में कुछ सबूत मिल सकता है। बच्ची करीब डेढ़ माह तक किसी न किसी घर में अवश्य रही होगी। आमतौर पर डिलीवरी के बाद वापिस जाते समय बच्चियों को त्यागने का काम किया जाता है और जाकर कह दिया जाता है कि बच्ची की बीमारी से मौत हो गई। अगर ऐसी बात भी किसी घर से सुनने को मिलती है तो यह भी एक महत्वपूर्ण सुराग होगा बच्ची के परिजनों तक पहुंचने का।
पा-लो ना का मानना है कि यदि जन जन को यह जानकारी पहुंचा दी जाए कि वे अपने बच्चे को किसी भी अनचाही परिस्थिति में सरकारी संरक्षण में दे सकते हैं तो वे शायद अपने बच्चों को यहां वहां छोड़ने की गलती नहीं करेंगे।
28 नवंबर 2018 दरभंगा, बिहार (F)