जिला अस्पताल में शौचालय के गेट पर मिली मासूम नवजात
एसएनसीयू में भर्ती है बच्ची
26 जुलाई 2022, शुक्रवार, छपरा, बिहार।
करीब एक दिन की मासूम नवजात बच्ची को छपरा जिला अस्पताल में छोड़ दिया गया। यह बच्ची शुक्रवार की सुबह इमरजेंसी के पास स्थित शौचालय के गेट पर लाल कपड़े में लिपटी मिली। चाइल्ड लाइन छपरा के काउंसलर श्री विकास मिश्रा ने पालोना को घटना की सूचना दी।
कहां और कैसे मिली नवजात
26 जुलाई की सुबह 10:30 बजे मेरे पास थाने से फोन आया। पुलिस ने मुझे बताया कि एक बच्ची सदर अस्पताल की इमरजेंसी के पास शौचालय के गेट पर मिली है। पुलिस को विकेश कुमार नाम के व्यक्ति ने फोन किया था, जो किसी एनजीओ में काम करते हैं।
पुलिस ने यह भी बताया कि बच्ची वहां जमीन पर रखी हुई है। इस पर मैंने उन्हें बच्ची को तुरंत अस्पताल के अंदर ले जाने और उसका स्वास्थ्य परीक्षण करवाने के लिए कहा। जब तक मैं खुद जिला अस्पताल पहुंचा, तब तक बच्ची को जमीन से उठाकर अस्पताल के अंदर ले जाया जा चुका था।
डॉक्टर ने बताया कि बच्ची की उम्र करीब 1 दिन है। उसका वजन सामान्य बच्चे के बराबर ही है। उसकी नाभि पर धागा बंधा हुआ था और नाभि थोड़ा सूखने लगी थी। बच्ची को सांस लेने में थोड़ी परेशानी हो रही थी। इसे देखते हुए उसे एसएनसीयू में एडमिट करवा दिया गया। फिलहाल ऑक्सीजन सपोर्ट उसे दिया जा रहा है। पुलिस में सनहा दर्ज करवा दी गई है।
स्थानीय लोगों व मीडिया के अनुसार, कोई महिला सुबह बच्ची को वहां लाल कपड़े में लपेट कर छोड़ गई थी। बच्ची को जमीन पर रखने के बाद उस महिला ने वहां आसपास से कुछ चुनने, कुछ सफाई वगैरह का दिखावा किया और फिर कब बच्ची को वहां छोड़कर चली गई, किसी को पता नहीं चला।
हालांकि हमें ऐसा नहीं लगता। ऐसा हो सकता है कि बच्ची का जन्म उसी अस्पताल में हुआ हो। उसके परिजन थोड़ा कमजोर हों या लड़की होना भी एक वजह हो सकता है और इसीलिए वे उसे अस्पताल में ही छोड़कर चले गए हों। – श्री विकास मिश्रा, काउंसलर, चाइल्ड लाइन सारण, बिहार।
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पालोना का पक्ष
बिहार में आज भी नवजात शिशु की हत्या या परित्याग के मामले में कोई एफआईआर दर्ज नहीं की जाती। संभव है, बच्ची का जन्म किसी अस्पताल में नहीं, बल्कि घर या अन्य स्थान पर हुआ हो।अस्पताल में जन्मे बच्चों को नाभि काटने के बाद क्लिप लगाया जाता है, धागे नहीं बांधा जाता। इसके अलावा नाभि का सूखना भी इस बात का परिचायक है कि बच्ची की उम्र 1 दिन से ज्यादा हो सकती है।
समझदारी बरती छोड़ने वालों ने
जिन्होंने भी मासूम बच्ची को वहां अस्पताल में छोड़ा, पालोना उनके प्रति दो कारणों से शुक्रगुजार है-
- उन्होंने बच्ची को किसी निर्जन, असुरक्षित, जानलेवा स्थान पर नहीं छोड़कर अस्पताल में ऐसी जगह रखा, जहां किसी भी व्यक्ति की नजर सहज ही उस पर पड़ जाए।
- ऐसे समय में बच्ची को वहां रखा, जो ‘ऑड ऑवर्स’ नहीं है, यानी मध्य रात्रि के बाद या त़ड़के न छोड़कर सुबह 09 से 10 के बीच बच्ची को सार्वजनिक स्थान पर छोड़ा।
ऑड ऑवर्स में निर्जन स्थान पर मिले बच्चों को बचाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है, क्योंकि अक्सर वे कई कई घंटों तक वहां अकेले रहते हैं। इस बीच कीड़े-मकौड़े और जानवर उन्हें आसानी से अपना शिकार बना लेते हैं। हमारा ये भी मानना है कि बच्ची को वहां छोड़ने के बाद भी वे निश्चित ही कहीं से बच्ची पर निगाह रखे होंगे, ताकि कोई जानवर उसे नुकसान न पहुंचा सके।
पालोना की सिफारिश-
पालोना का मानना है कि किसी भी बच्चे के लिए सबसे सुरक्षित और श्रेष्ठ स्थान उसका अपना घर आंगन, अपना परिवार, अपने जनक मां-बाप ही हो सकते हैं। फिर भी यदि बच्ची को छोड़ने की नौबत आ ही गई थी तो वे मासूम बच्ची को छोड़ते समय़ थोड़ी और समझदारी बरत सकते थे। बच्ची को वहां खुले में जमीन पर छोड़ने की बजाय अगर अस्पताल के अंदर बेड पर छोड़ते तो यह उस मासूम के लिए और भी बेहतर होता।
कुछ पहल सरकार के स्तर पर करने की भी जरूरत है। सरकार के बाल संरक्षण विभाग को अपनी सेफ सरेंडर पॉलिसी के साथ साथ जिले में लगे हुए पालनों के बारे में भी जन जागरूकता करनी चाहिए।
इसके साथ-साथ सार्वजनिक स्थलों पर, अस्पतालों के रिसेप्शन एरिया में, जच्चा बच्चा केंद्रों में, आंगनबाड़ी में, हाट बाजारों में, स्कूल के बाहर सेफ सरेंडर पॉलिसी को लेकर पोस्टर लगाए जाने चाहिएं और पैंफलेट्स बांटे जाने चाहिएंं।
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