पति से झगड़े के बाद पत्नी ने अपने शिशु को छोड़ा
यात्री शेड में मिला नवजात शिशु
09 दिसंबर 2018 छपरा, बिहार।
पति-पत्नी के बीच झगड़ा इस स्तर पर पहुंच गया कि पत्नी अपने नवजात शिशु को सुबह सुबह यात्री शेड में छोड़ कर कहीं चली गई। शुक्र इस बात का रहा कि किसी आवारा जानवर या कीड़ों-मकोड़ों से पहले कुछ ग्रामीण ही वहां पहुंच गए और बच्चे को वहां से उठा लिया। यह घटना छपरा के अमनौर प्रखंड के सीमावर्ती भेल्दी थाना क्षेत्र के रायपुरा गांव में रविवार तड़के हुई, लेकिन घटना के तार गड़खा थाना क्षेत्र के मैकी गांव से भी जुड़ने की वजह से यह विवाद दो दिन तक चलता रहा।
घटना की जानकारी पा-लो ना को एक स्थानीय पत्रकार ने दी, जिसकी पुष्टि एक अन्य पत्रकार श्री नागमणि प्रसाद ने तथा छपरा बाल कल्याण समिति व चाईल्डलाईन ने भी की। इस जानकारी के मुताबिक, भेल्दी थाने के छपरा-रेवा एऩएच 722 पर रायपुरा यात्री शेड में तड़के सुबह एक नवजात शिशु मिला। शिशु सिर्फ एक प्लास्टिक से ढका था और ठंड से कांप रहा था। नेशनल हाईवे पर टहल रहे कुछ लोगों ने बच्चे की आवाज सुनी और यात्री शेड से उस बच्चे को उठा लिया। जल्दी ही ये सूचना सब जगह फैल गई और लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई। इन्ही में मौजूद रायपुरा निवासी मुसाफिर महतो की पत्नी ललिता देवी ने ठंड से कांप रहे बच्चे को अपनी गोद में ले लिया और घर ले जाकर उसकी तेल से मालिश करने लगी। ललिता देवी को पहले से कई बेटियां थीं। वह उस बेटे को अपनाने के लिए लालायित हो उठीं।
उधर, बच्चे और बच्चे की मां को घर में नहीं देखकर बच्चे के परिजन जब उसे ढूंढने निकले तो उन्हें भी पास के गांव में बच्चा मिलने की सूचना मिली। वहीं थानाध्यक्ष श्री सतीश कुमार तक जब ये खबर पहुंची तो वे बच्चे को स्थानीय पीएचसी में ले गए और डॉक्टर को दिखाया। इसके बाद बच्चे को मैकी गांव के रामजी सिंह को सौंप दिया गया। इस दौरान बच्चे की मां भी लौट आई और उसने बताया कि उसका अपने पति से कुछ दिनों से विवाद चल रहा था। इसी वजह से वह सुबह-सुबह अपने बच्चे को यात्री शेड में प्लास्टिक से ढककर छोड़कर चली गई, लेकिन फिर बच्चे की याद आने पर वह खुद को नहीं रोक सकी।
उधर, बच्चे को रामजी सिंह को सौंपे जाने के बाद ग्रामीणों में रोष व्याप्त हो गया। उन्हें लगा कि पैसे के लालच में पुलिस ने बच्चे को ललिता देवी से छीनकर दूसरी महिला को सौंप दिया है। बाद में छपरा से चाईल्डलाईन के लोग वहां पहुंचे और आस-पड़ोस, पुलिस व नाते-रिश्तेदारों से बात कर, सभी कागजातों का मुआयना कर इस मामले में व्याप्त असमंजस को दूर किया। दरअसल रामजी सिंह ही बच्चे के जैविक पिता हैं।
पा-लो ना ने इस संबंध में मीडिया के साथ ही चाईल्डलाईन, बाल कल्याण समिति और स्पेशल एडॉप्शन एजेंसी में श्रीमती श्वेता से भी बातचीत की। मीडिया को भी शुरू में इस बात पर संशय था कि बच्चा रामजी सिंह का ही पुत्र है,लेकिन बाद में उनकी तफ्तीश में भी यही बात सामने आई।
पा-लो ना के पास पूर्व में भी इस तरह के मामले आ चुके हैं, जहां माता-पिता में में झगड़े का दुष्परिणाम नवजात शिशुओं को भुगतना पड़ा। इस मामले में राहतदायक बात यही है कि बच्चे को कोई नुकसान नहीं हुआ, वरना थोड़ी देर का गुस्सा बच्चे की जान लेने को काफी था। पा-लो ना सभी माता-पिता से ये आग्रह करती है कि वे किसी भी परिस्थिति में बच्चे का परित्याग नहीं करें। शिशु इतना छोटा होता है कि वह न तो अपनी रक्षा खुद कर सकता है और न ही किसी को बुला सकता है। इसलिए उसे अपनी नाराजगी, अपने गुस्से का शिकार बनाना ठीक नहीं। यदि बहुत गुस्सा हो, तब भी बच्चे को किन्हीं सुरक्षित हाथों में सौंप देना चाहिए। ये हाथ किसी परिजन के भी हो सकते हैं, मित्र या पड़ौसी के भी और सरकार के भी।
कायदे से इस मामले में माता और पिता दोनों को ही कुछ देर के लिए भी सही, सजा अवश्य मिलनी चाहिए थी, जो एक नवजात के जीवन के साथ खेल रहे थे।
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