क्या हुआ –
एक नवजात शिशु गड्ढे में पड़ा बेहाल हो रहा था। उसकी गर्भनाल और प्लेसेंटा भी उसके शरीर के साथ जुड़े थे, जिस वजह से चींटियां उसे नोंच रहीं थीं। वो वहां अकेला नहीं था, बल्कि उसके आस पास लोगों की भीड़ भी थी, लेकिन कोई भी उसे उठाने का साहस नहीं कर पा रहा था। सभी को छुतका लगने का भय था। वह कब से वहां ऐसी ही अवस्था में था, किसी को नहीं मालूम। कुछ लोग फुसफुसा रहे थे कि उन्होंने सुबह शौच के लिए जाते वक्त उसके रोने की आवाज सुनी थी, लेकिन उसे नोटिस किया गया रविवार सुबह नौ बजे के करीब।
यह घटना पश्चिमी सिंहभूम (चाईबासा) जिले के खूंटपानी प्रखंड के अंतर्गत मुफस्सिल थाना के पंडावीर पंचायत स्थित रोवाउली गांव से करीब 500 मीटर दूर जंगल में घटी।
यही वो वक्त था, जब पड़ौस के गांव का युवक राजू मुंडा अपने कुछ साथियों के साथ उस जंगल से गुजर रहा था। राजू को भी बच्चे के बारे में पता चला तो पहलेपहल उन्होंने मजाक समझा। लेकिन जब उनके अन्य साथी घटनास्थल पर पहुंचे और वहां से बच्चे की वीडियो और तस्वीरे लाकर राजू मुंडा को दिखाई तो उनसे रहा नहीं गया। वह स्वयं बच्चे के नजदीक पहुंचे। उन्होंने गांव के मुखिया समेत कई लोगों से बच्चे को गड्डे से निकालने की रिक्वेस्ट की, लेकिन कोई भी उनकी बात सुनने को तैयार नहीं था। तब राजू ने चाईल्डलाइन को 1098 पर फोन किया। नेटवर्क नहीं मिलने की वजह से उन्हें फोन करने और पुलिस व चाईल्डलाइन टीम को घटनास्थल तक पहुंचाने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ी।
चाईल्डलाइन टीम के पहुंचने से पहले राजू ने अपना तौलिया मुखिया को देकर उनसे बच्चे को मिट्टी से निकालने की प्रार्थना की। उन्होंने विश्वास दिलाया कि पुलिस टीम जल्द ही आकर बच्चे को ले जाएगी, तब कहीं जाकर मुखिया ने चींटियां व मिट्टी हटाकर उसे साफ तौलिए पर लिटाया। लेकिन गड्ढे से निकालने का साहस वह भी तब भी नहीं कर सके। अंततः पुलिस टीम वहां पहुंची और बच्चे को तुरंत गड्ढे से निकालकर स्थानीय सहिया को बुलाकर उसकी गर्भनाल कटवाई गई। फिर उसे चाईबासा के सदर अस्पताल के एमटीसी में एडमिट करवाया गया।
बच्चे को गड्डे से निकालकर अस्पताल में इलाज मुहैया करवाने में राजू मुंडा के अलावा चाईल्डलाइन चाईबासा के श्री जायदू कारजी, जनकलता गोप व सरोज पूर्ति, एसडीपीओ श्री अमर कुमार पांडेय, जेजेबी के श्री विकास दोर्दाजका, सीडब्लूसी के श्री संजय बिरुवा, एसआई श्री तारकेश्वर सिंह आदि ने सक्रिय भूमिका निभाई।
पालोना को घटना की जानकारी श्री विकास दोर्दाजका से मिली, वहीं, स्थानीय पत्रकार श्री आनंद प्रियदर्शी ने घटना की तह तक पहुंचने में मदद की।
सरकारी व अन्य पक्ष –
“वो बच्चा बहुत तकलीफ में था। गांव वाले बता रहे थे कि बच्चे के ऊपर एक बड़ा सा पत्थर भी रखा हुआ था। हालांकि जब तक हम पहुंचे, पत्थर हटा दिया गया था। उसका जीवन बचाना मुझे जरूरी लगा। मेरे बार बार कहने पर भी कोई बच्चे को उठा नहीं रहा था। सब हम पर ही सारी जिम्मेदारी डालना चाहते थे, जबकि हम तो उस गांव के थे भी नहीं।
मुझे चाईल्डलाइन के बारे में जानकारी थी। लेकिन उस एरिया में नेटवर्क नहीं था। मैंने वहां से गुजर रहे एक व्यापारी को 1098 पर फोन करने को कहा, लेकिन उन्होंने शायद नहीं किया। देर होती देख मैंने ही चाईल्डलाइन को फोन किया। इसके लिए मुझे वहां से तीन किलोमीटर दूर जाना पड़ा। इसके बाद पुलिस व उनकी टीम को घटनास्थल तक लाने के लिए भी नेटवर्क की वजह से मुझे बार-बार बाइक से कई किलोमीटर आना-जाना पड़ा। फिर मैंने अपना एक तौलिया मुंडा जी को दिया, ताकि बच्चे को साफ कपड़े में रखा जा सके। वह नशे में थे। उनके हाथ कांप रहे थे। लेकिन बार- बार समझाने के बाद वह इसे करने को तैयार हो गए।
करीब 11 बजे पुलिस टीम पहुंची। उन्हें अपनी गाड़ी नौगड़दा गांव के बाहर ही रोकना पड़ी, क्योंकि वहां से कच्चा रास्ता था। इसलिए वहां से पुलिस व चाइल्डलाइन को बाइक से घटनास्थल पहुंचना पड़ा। अभी बहुत अच्छा लग रहा है कि एक बच्चे की जिंदगी बच गई।” –
श्री राजू मुंडा, बच्चे को बचाने वाले
“हमें सुबह साढ़े दस बजे चाइल्डलाईन से फोन आया। जब तक हम मौके पर पहुंचे, किसी ने भी बच्चे को छूत लगने के डर से उठाया नहीं था। राजू मुंडा ने एक तौलिया दिया था, उसी में वह लिपटा हुआ था। सबसे पहले तो सहिया को बुलाकर उसकी नाभि कटवाई गई। लॉकडाउन की वजह से अभी वहां कोई मेडिकल सुविधा नहीं थी।इसलिए उसे सीधे चाईबासा ले आए। यहां बच्चे को सदर अस्पताल के एमटीसी यूनिट में भर्ती करवाया गया। बच्चा पत्थरों के बीच में था, जिस वजह से हाथ पैर चलाने के कारण उसे काफी चोट भी लगी है। हालांकि डॉक्टर के मुताबिक, अभी वह स्वस्थ है।” –
श्री जाइदो करजी, समन्वयक चाईल्डलाइन चाईबासा
पा-लो ना का पक्ष –
कई लोगों व प्रत्यक्षदर्शियों से बात करने के बाद भी यह स्पष्ट नहीं हो सका कि बच्चे की डिलीवरी उसी जगह पर ही हुई थी। किसी ने भी इसकी पुष्टि नहीं की। वहां रक्त भी नहीं बिखरा था। ऐसा लगता है कि डिलीवरी कहीं और करवाकर बच्चे को वहां लाकर डाला गया था। प्लेसेंटा साथ जुड़े होने की वजह से बच्चे को सांस लेने में सुविधा मिली होगी। पालोना शुक्रगुजार है श्री राजू मुंडा का, जिन्होंने पहल करते हुए चाइल्डलाइन को सूचना दी और इस तरह एक बच्चे के जीवन रक्षक बन गए। पालोना को लगता है कि –
सरकार की सेफ सरेंडर पॉलिसी के बारे में ज्यादा से ज्यादा प्रचार प्रसार होना जरूरी है।
यदि उस क्षेत्र में पालने लगाए जाते और उनका व्यापक प्रचार होता, तब शायद बच्चा गड्ढे में नहीं, बल्कि पालने में मिलता।
आम लोगों को ये बताना जरूरी है कि इस कंडीशन में मिले बच्चे का जीवन बचाने के लिए उसे तुरंत वहां से उठाएं, जहां उसे छोड़ा गया है और बिना डरे व किसी का इंतजार किए उसे शीघ्रातिशीघ्र मेडिकल केयर दिलवाएँ।
चाईल्डलाइन के साथ-साथ सभी स्थानीय बाल संरक्षण पदाधिकारियों की जानकारी उनके कॉंटेक्ट नंबर्स के साथ सभी अस्पतालों, जच्चा बच्चा केंद्र, आंगनबाड़ी केंद्रों में डिस्प्ले होनी चाहिए।
इस तरह के हर मामले की उपयुक्त धाराओं में एफआईआर दर्ज होनी जरूरी है।
19 April 2020
Chaibasa, Jharkhand (M, A)