क्या हुआ –
एक नवजात बच्चे को जन्म के तुरंत बाद बोरे में बंद करके तमाड़ प्रखंड के हरलालता गांव
में छोड़ दिया गया। यह घटना सोमवार की शाम नदी की तरफ जाने वाले निर्जन रास्ते में घटी।
किसी राहगीर ने बच्चे के रोने की आवाज सुन मुखिया को बुलाया, जिन्होंने तमाड़ पुलिस को
सूचित किया। रात आठ से नौ बजे के बीच पुलिस ने चाईल्डलाईन रांची को बच्चा मिलने की
सूचना दी।
रात 11 बजे के करीब बच्चे को अस्पताल में ले जाया गया, जहां उसकी नाभि काटी गई और उस पर
लगी चींटियां हटाई गईं। बच्चे की स्थिति खराब देख अड़की प्रखंड के बालालौंग गांव के एक
दंपति को बच्चे को दूध पिलाने के लिए दे दिया गया, जो उस जगह भी मौजूद था, जहां बच्चा
मिला था और फिर उसके साथ – साथ अस्पताल तक पहुंच गया था।
चाईल्डलाईन की टीम बच्चे को लेने के लिए अगले दिन की बजाय करीब एक हफ्ते बाद 02 जून को
तमाड़ पहुंची। इसके बाद चाईल्डलाईन की टीम और पीएलवी अनिमा मलिक व नंदा नायक उस दंपति
के गांव गए। दंपति बच्चा देने को तैयार नहीं हुए। गांव वाले उनके समर्थन में इकट्ठे
होने लगे। काफी विरोध, बहस और समझाने के बाद दंपति बच्चे को सात जून को रांची जाकर
बच्चे को सीडब्लूसी को सौंपने के लिए तैयार हुआ। जब सात तारीख को भी दंपति बच्चे को
लेकर वहां नहीं पहुंचा तो टीम दोबारा उनके गांव पहुंची और उन्हें रांची आने का निर्देश
दिया। जिसके बाद दंपति ने 10 जून को बच्चे को रांची सीडब्लूसी के समक्ष पेश कर दिया,
जहां बच्चे की खराब स्थिति को देखते हुए रानी अस्पताल में एडमिट करवा दिया गया।
सरकारी पक्ष –
थाना प्रभारी श्री चंद्रशेखर आजाद ने पालोना को बताया कि इस मामले में पुलिस ने कोई केस
दर्ज नहीं किया है। उनके मुताबिक, बच्चे को थाना लाया ही नहीं गया था, न ही किसी ने इस
संबंध में कोई शिकायत की।
वहीं, केस इंचार्ज श्री विनोद कुमार सिंह ने बताया कि उन्होंने रात साढ़े आठ बजे ही
चाईल्डलाईन को सूचना दे दी थी, जिस पर चाईल्डलाईन ने अगले दिन सुबह आने की बात कही,
लेकिन वे करीब एक हफ्ते बाद दो तारीख को बच्चे को लेने के लिए पहुंचे।
वहीं, पीएलवी अनिमा और पीएलवी नंदा नायक का कहना है कि बच्चा प्रीमेच्योर था और अंडर
वेट भी। उसका वजन मात्र एक किलो था। रात में ही डॉक्टर को उठा कर उसकी प्राथमिक
चिकित्सा करवाई गई। डॉक्टर का कहना था कि यदि बच्चे को मां का दूध मिल जाए तो उसकी जान
बच सकती है। उसकी जान बचाने की मंशा से ही उसे दंपति को सौंपा गया था। उनकी मंशा किसी
भी तरह बच्चे की जान बचाने की थी।
पा-लो ना का पक्ष –
पालोना ने इस केस से संबंधित सभी पक्षों से बातचीत की और ये पाया कि यदि उस दिन बच्चे
को मां का दूध न मिला होता, या उसकी केयर नहीं की जाती तो उसे बचाना नामुमकिन हो जाता।
लेकिन इस दौरान बरती गई लापरवाही से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
कई सवाल यह घटना खड़े करती है। चाईल्डलाईन ने बच्चे को तमाड़ से लाने में तत्परता क्यों
नहीं दिखाई। बच्चे के साथ कुछ समय गुजारने वाले परिवार का बच्चे से मोह हो जाना
स्वाभाविक है। उनके पास एक हफ्ते तक बच्चे को छोड़ा ही क्यों गया। अगर आधी रात में
बच्चे को लाना संभव नहीं था, तो अगले दिन तो एंबुलैंस के जरिए बच्चे को लाया जा सकता
था। अगर चाईल्डलाईन की तरफ से कोताही बरती गई तो जिले के अन्य अधिकारियों को थाने या
पीएलवी की तरफ से सूचित क्यों नहीं किया गया।
सबसे बड़ा सवाल ये है कि आज तक भी इन बच्चों को तुरंत मेडिकल केयर मिल सके, इंटीरियर के
इलाकों से आधी रात को भी निकालकर जिले के बेहतर अस्पताल में एडमिट करवाया जा सके, ऐसा
सिस्टम क्यों नहीं डेवलप किया गया। बच्चे के मिलने पर किसकी जिम्मेदारी होगी उसका
संरक्षण सुनिश्चित करने की, ये तय क्यों नहीं किया जा सका। ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब
की पालोना को तलाश है।
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27 May, 2019 Ranchi, Jharkhand (M, A)