वह लगातार रो रही थी, इस उम्मीद में कि कोई उसकी मदद के लिए जरूर आएगा। लगातार चीखने की वजह से उसकी आवाज मद्धम पड़ गई थी। इंसान का चोला औढ़े राहगीर उसकी आवाज सुनते तो रहे, लेकिन पल भर रुक कर माजरा समझने की जहमत किसी ने नहीं उठाई, और जब तक किसी ने ऐसा प्रयास किया, वह खामोश हो चुकी थी, हमेशा के लिए। जिंदगी और मौत की जंग में मौत जीत गई, जिंदगी हार गई। घटना मधेपुरा और पूर्णिंया जिले की सीमा रेखा पर मुरलीगंज भारतीय दूरसंचार निगम के ऑफिस के बगल में एन एच 107 के किनारे रविवार को घटी।
पत्रकार श्री रुद्रनारायण ने पा-लो ना को बताया कि
एक नवजात बच्ची को लाल और पीले रंग के कपड़े में लपेटकर रविवार को हाइवे के किनारे गड्ढे में फेंक दिया गया
था। वह मासूम बहुत देर तक रोती बिलखती रही। अपनी करुण पुकार में मदद की गुहार लगाती रही। आखिरकार उसकी सांसो ने भी जवाब दे दिया और वह खामोश हो गई।
हाइवे से गुजर रहे राहगीरों में से एक राहगीर की नजर उस कार्टन पर पड़ी, जिसमें बच्ची को डालकर फेंका गया था। तब घटना की सूचना पूर्णिया जिले के जानकीनगर थाने को भेजी गई। जानकीनगर थाना क्षेत्र के चौकीदार ने घटनास्थल पर पहुंचकर कार्टन में से बच्ची को निकाला।
बच्ची कार्टन के अंदर औंधे मुंह मृत अवस्था में पड़ी थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो बच्ची ने गुस्से और क्षोभ में दुनिया से अपना मुंह मोड़ लिया हो।
और ऐसा हो भी क्यों ना, उसने इंसानियत को अपनी आंखों के सामने दम तोड़ते देखा था। ऐसी घटनाओं में पा-लो ना किसी पर किसी प्रकार का इल्जाम नहीं लगाती, लेकिन ये उम्मीद ज़रूर करती है कि पुलिस प्रशासन इन घटनाओं पर चुप न रहे। वह तुरन्त कदम उठाए और मौत के कारणों व मासूम के दोषियों पर पड़ा नकाब हटाए।
27 मई 2018पूर्णिया, बिहार (F)