मिट्टी में सना, कपड़े में लिपटा एक नवजात लड़का कचरे के ढेर में पड़ा था, जब नजदीक खेल रहे कुछ बच्चों को उसके रोने की आवाज सुनाई दी। घटनास्थल पर पहुंच वहां कचरे में एक बच्चे को देख वे बच्चे भौंचक्क रह गए। तुरंत ही सरपंच व अन्य ग्रामीणों को इत्तला दी गई और नवजात शिशु को बचा लिया गया। घटना भिवानी के लोहारू स्थित बरालू गांव में मंगलवार की शाम को घटी।
स्थानीय पत्रकार श्री राजेंद्र सैनी ने पा-लो ना को बताया कि शाम करीब छह बजे का समय था और बच्चे गांव की फिरनी में खेल रहे थे। इसी दौरान उन्हें किसी छोटे बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। आवाज वाली जगह पर जब बच्चे पहुंचे तो यह कचरे का एक ढेर था, जहां एक नवजात लड़का गुलाबी और हरे रंग के एक कपड़े में लिपटा पड़ा था। उसके सिर, चेहरे और शरीर के कई हिस्सों पर मिट्टी लगी थी। चेहरे के थोड़े से हिस्से को छोड़कर उसका पूरा शरीर कपड़े से ढका हुआ था। वह गोबर-मिट्टी के ढेर पर पड़ा था। चींटियां उसे नोंच रहीं थीं।
बच्चों ने जब उसे इस हालत में देखा तो तुरंत ही बरालू गांव के सरपंच झूथर सिंह को इसकी सूचना दी। इस बीच गांव में जिसने भी घटना के बारे में सुना, घटनास्थल पर पहुंच गया। कुछ ही देर में वहां भीड़ लग गई। सरपंच ने तत्काल एंबुलेंस को बुलाकर बच्चे को लोहारू के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भिजवाया। वहां डॉ. ओमप्रकाश डूडी ने बच्चे की जांच की, प्राथमिक सहायता दी और फिर भिवानी जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। उस वक्त बच्चे का वजन एक किलो 400 ग्राम था और उन्र करीब सात-आठ माह। वह 3-4 घंटे पहले जन्मा प्रतीत होता था। उसकी नाल भी बाहर लटक रही थी, जिस पर क्लिप लगा हुआ था।
भिवानी की चाईल्ड प्रोटेक्शन ऑफिसर सुश्री रितु ने बताया कि बच्चा अभी भी जिला अस्पताल में ही इलाजरत है। जब उसे वहां लाया गया था, तो काफी गंभीर हालत में था। अभी उसकी स्थिति स्थिर बनी हुई है।
पा-लो ना टीम सरपंच झूथर सिंह के प्रति आभार प्रकट करती है, जिन्होंने समझदारी का परिचय देते हुए घटनास्थल पर ही एंबुलेंस को बुलवा लिया और बच्चे को तुरंत मेडिकल सहायता मिल सकी, जो इन हालात में किसी भी बच्चे के लिए सबसे पहले जरूरत होती है। यह कहना गलत नहीं होगा कि यदि आज वह बच्चा जीवित है तो उसका श्रेय झूथरसिंह जी को जाता है। हमारे समाज में इनके जैसे लोगों की अत्यंत आवश्यकता है, जो सही समय पर सही निर्णय ले सकें और इन अनचाहे बच्चों को बचा सकें, जिनके अपने ही उनके दुश्मन बन बैठे हैं।
बच्चे को किसने वहां रखा, ये अब तक ज्ञात नहीं हो सका है। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि जिसने भी रखा, उसने दिन की रोशनी में ही इसे अंजाम दिया था, क्योंकि बच्चे को जन्मे ज्यादा वक्त नहीं हुआ था। काश, उन्होंने थोड़ी समझदारी का परिचय और दे दिया होता, बच्चे को फेंकने की बजाय सौंप दिया होता या कम से कम उसे किसी साफ सुरक्षित स्थान पर ही छोड़ दिया होता, जहां से लोगों का आना-जाना होता है। इसकी कल्पना भी असह्य है कि यदि बच्चों ने नवजात के रोने की आवाज नहीं सुनी होती तो वे चींटियां उसका क्या हाल करतीं। क्या वे उसे बख्श देतीं…
01 मई 2018भिवानी, हरियाणा (M)