वह बच्ची चादर में लिपटी थी और ट्रेन की बोगी के दरवाजे के समीप वाली बर्थ पर ही लेटी हुई थी। कपड़ों की गठरी सी प्रतीत हो रही उस बच्ची पर यात्रियों का ध्यान तब गया, जब उसने रोना शुरू किया। घटना डालटनगंज से गढ़वारोड स्टेशन के बीच कजरी स्टेशन पर गुरुवार सुबह करीब साढ़े आठ बजे घटी।
डालटनगंज से पत्रकार श्री नीरज कुमार एवं आकाशवाणी की उद्घोषिका श्रीमती अनुपमा तिवारी जी ने पा-लो ना को घटना की जानकारी दी, जिसकी पुष्टि रेलवे कर्मचारी श्री अरविंद सिन्हा एवं श्री पंकज किशोर ने भी की। घटना की जानकारी देते हुए प्रत्यक्षदर्शी पंकज ने बताया कि 53351 सीसीबी पेसेंजर ट्रेन डालटनगंज से निकली तो 5-7 मिनट के बाद ही बर्थ पर कोने में पड़ी कपड़ों की गठरी में से बच्चे के रोने की आवाज आने लगी। आस-पास के यात्रियों ने उसे खोला तो उसमें से बच्ची निकली, जो करीब एक महीने की प्रतीत हो रही है।
बच्ची को तुरंत वहां मौजूद महिलाओं ने अपनी सुपुर्दगी में ले लिया। बच्ची ने कपड़े गीले कर दिए थे, जिसकी वजह से वह रो रही थी। उन्होंने बच्ची के पास मौजूद बैग में से उसके कपड़े निकालकर बदल दिए। फिर उसे दूध भी पिलाया। कजरी स्टेशन पर श्री पंकज किशोर को घटना की जानकारी मिली। उन्होंने इसकी सूचना श्री अरविंद सिन्हा को दी, ताकि गढ़वा रोड स्टेशन पर जीआरपी के जरिए बच्ची के लिए उपयुक्त व्यवस्था करवाई जा सके।
लोगों ने श्री किशोर को बताया कि दो महिलाएं जिनकी उम्र 20-30 और 30-40 के बीच थी, डालटनगंज स्टेशन पर दरवाजे के पास वाली उसी सीट पर बैठी थी, जहां यह बच्ची मिली। वे दोनों महिलाएं उसी स्टेशन पर उतर गईं। ये सारा वाकया उस वक्त ट्रेन में चढ़ रहे लोगों ने देखा था, लेकिन किसी को भी ये अंदेशा नहीं हुआ कि वे एक नवजात बच्ची को वहां छोड़कर स्टेशन पर उतर रही हैं। उन्होंने बच्ची को चादर से अच्छी तरह ढक दिया था। अगर बच्ची रोती नहीं, तो शायद किसी को उसके वहां होने का पता नहीं चलता। गोद में लिए बैठी इसी महिला ने सबसे पहले बच्ची को देखा, उसकी केयर की, उसके गीले कपड़े चेंज किये।
पा-लो ना को जैसे ही घटना की जानकारी मिली, टीम ने रेलवे कर्मचारी और पलामू बाल कल्याण समिति से बात करके बच्ची को सबसे पहले मेडिकल केयर उपलब्ध करवाने का आग्रह किया। बच्ची गढ़वा रोड जीआरपी के पास थी और बाल कल्याण समिति उन्हें बच्ची को अपने पास लाने का निर्देश जारी कर चुकी थी। लेकिन टीम के समक्ष ऐसे कई केस आए हैं, जहां बच्चों को तुरंत मेडिकल केयर नहीं मिलने पर बाद में उन्हें बचाना नामुमकिन हो गया था। इसलिए टीम का मानना है कि ऐसे बच्चों को सबसे पहले अस्पताल पहुंचना जरूरी है, पुलिस और सरकारी अधिकारी उसके बाद भी पहुंचे तो कोई हानि नहीं। टीम के आग्रह को मानते हुए बच्ची को पहले स्थानीय अस्पताल ले जाया गया और वहां से बच्ची के स्वस्थ होने की जानकारी के बाद उसे डालटनगंज स्थित बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया गया।
टीम पा-लो ना को इस पूरी घटना से ऐसा लगता है कि किसी मजबूरीवश ही बच्ची के परिजनों ने इस कार्य को अंजाम दिया है। यह करते हुए उन्होंने इस बात का पूरा ख्याल रखा कि बच्ची को कोई नुकसान न पहुंचे। उन्हें विश्वास था कि कोई न कोई बच्ची को बचा ही लेगा। टीम इसके लिए उनका धन्यवाद अदा करती है, लेकिन साथ ही सभी लोगों से ये अपील भी करती है कि बच्चे की सुरक्षा उसके अपने परिवार से ज्यादा कोई नहीं कर सकता। इसलिए बच्चे को त्यागे नहीं। फिर भी यदि ऐसी नौबत आ ही जाए तो उसे कहीं भी छोड़ने की बजाय सुरक्षित हाथों में सौंप दें।
ज़रूरत इस बात की भी है कि ऐसे माता पिता तक सरकारी विकल्पों की पहुंच बनाई जाए और उन्हें जागरूक किया जाए, जिससे अव्वल तो वे अबोध शिशु को छोड़े ही नहीं, और यदि छोड़ना भी पड़े तो सरेंडर करें, अबेण्डन नहीं।
24 मई 2018 पलामू, झारखंड (F)