उसे लावारिस समझ कर दफना देना। कोई दिक्कत हो तो कहीं भी फेंक देना। हम उसे लेने नहीं आएंगे क्या कोई पिता ऐसा कह सकता है? मधेपुरा के एक पिता ने ये शब्द 30 नवंबर को सहरसा के एक अस्पताल
के स्टाफ को कहे, जहां उनके नवजात शिशु का शव रखा था। फुलेंद्र यादव की पत्नी रेखा देवी ने 27 नवंबर को मधेपुरा के निजी क्लीनिक में एक बेटे के जन्म दिया। मगर जन्म के बाद मां और बच्चे दोनों की हालत खराब
हो गई। तब उन दोनों को ही परिजन सहरसा के स्वराज हॉस्पिटल लेकर आए। रेखा देवी को बचाया नहीं जा सका और परिजन उनके मृत शरीर को लेकर चले गए। वे मधेपुरा के गम्हरिया थाना क्षेत्र के फुलकाहा गांव के थे।
तब तक बच्चा अस्पताल में ही एडमिट था। गुरुवार 30 नवंबर को बच्चे की भी मौत हो गई तो अस्पताल प्रबंधन ने बच्चे के पिता फुलेंद्र यादव से संपर्क किया। पिता ने अपने ही बेटे के शव को ले जाने से इनकार कर
दिया। अगर अस्पताल के व्यवस्थापक रमन झा की बात पर यकीन किया जाए (यकीन न करने की कोई वजह नहीं है हमारे पास) तो बच्चे के पिता का कहना था कि बच्चे को लावारिस समझ कर दफना दिया जाए। यदि
इसमें कोई परेशानी हो तो बच्चे को फेंका भी जा सकता है। ये आज के दौर की विंडबना ही है कि लोग अपने ही खून से इतना परहेज करने लगे हैं। यही बच्चा जीवित होता तो उसे अपना वारिस बताते नहीं अघाते ये लोग,
मगर क्योंकि अब वह मृत है तो उसका महत्व कूड़े जितना भी नहीं है। बहुत त्रासद है ये सब देखना और इसे जीना।
30 नवंबर 2017सहरसा, बिहार (M)