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meerut me masoom ne bacha liya masum ko newborn girl found abandoned in meerut
Meerut: मासूम बच्ची ने बचा लिया मासूम को

डंप यार्ड से आ रही थी उस बच्ची के रोने की आवाज

पुलिस ने किया केस दर्ज 

03 MARCH 2023, Friday, MEERUT, UP.

 मोनिका आर्य

उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में मासूमियत ने इंसानियत की नई इबारत लिखी। 11-12 साल की एक बच्ची ने एक नवजात मासूम को आवारा जानवरों और गिद्धों का शिकार होने से बचा लिया। बच्ची पूरी तरह सुरक्षित है और फिलहाल डॉक्टर्स की देखरेख में है।

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इनसे मिली सूचना

पालोना को इसकी सूचना गाजियाबाद मीडिया के साथी श्री पप्पू नेहरा से मिली। इसके बाद मेरठ मीडिया के साथी श्री सुशील विहान, श्री प्रमोद त्यागी और चाइल्डलाइन मेरठ की निदेशक श्रीमती अनीता राणा और पुलिस चौकी इंचार्ज सब इंस्पेक्टर मुनेश कुमार से संपर्क किया गया। तब मालूम चला कि मासूम को कब, कहां और किन हालात में छोड़ा गया था।

कब और कहां घटी घटना

मन को छू लेने वाली ये घटना पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में शुक्रवार दोपहर दो बजे के लगभग घटी। शहर के बाहर खरखौदा थाना क्षेत्र के अंतर्गत बिजली अम्बा पुलिस चौकी पड़ती है। उसके करीब एक-डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर एक विशाल डंपयार्ड है।

यहां पूरे शहर का कूड़ा लाकर डाला जाता है। इसके नजदीक ही एक झुग्गी बस्ती है, जिसमें असम प्रदेश के लोग रहते हैं। ये लोग इसी डंपयार्ड से कूड़ा बीनकर अपनी आजीविका चलाते हैं।

मासूम मौसमी ने बचा ली बच्ची की जान

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इसी झुग्गी बस्ती में रहती हैं 11-12 साल की मौसमी। शुक्रवार को वह उस डंपिंग यार्ड के पास से गुजर रही थी कि उसे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। उसने ध्यान दिया तो वहां लाल रंग का एक बैग उसे नजर आया, जैसा कि शॉपिंग आदि करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।

इस बैग की चैन लगी हुई थी। आवाज इसी बैग में से आ रही थी। उस बच्ची ने जब बैग खोला तो वहां एक नवजात बच्ची को देखकर वह डर गई। आसपास के लोग वहां इकट्ठे हो गए। किसी ने जाकर उसके पिता श्री अऩीस को बताया कि मौसमी रो रही है। अनीस भी वहां पहुंचे और बेटी के रोने का कारण पूछा।

तब मौसमी ने उस बैग की तरफ रोते हुए ही इशारा कर दिया। उन लोगों ने बैग में से बच्ची को निकाला। उन्होंने तुरंत पुलिस चौकी के इंचार्ज सब इंस्पेक्टर मुनेश कुमार को इसकी सूचना दी। श्री मुनेश अपनी टीम के साथ घटनास्थल पहुंचे और बच्ची को संतोष अस्पताल में एडमिट करवाया, जो वहां से मात्र दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

  • श्री प्रमोद त्यागी, स्थानीय पत्रकार, खरखौदा, मेरठ।

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मौसमी ने जब बच्ची को वहां देखा तो अन्य लोग और पुलिस वहां लगभग साथ साथ ही पहुंची। तुरंत उसे अपनी निजी गाड़ी (जिसमें मैं वहां पहुंचा था) से निकटवर्ती अस्पताल ले गया। मेरी पहली कोशिश ये थी कि जल्द से जल्द बच्ची को इलाज मिल जाए।

शुक्र है उस बच्ची मौसमी का, जिसने मासूम के रोने को सुना और अपनी सहेलियों के मना करने के बावजूद उस बैग को खोलकर देखा। उस क्षेत्र में इतने कुत्ते घूमते रहते हैं। वो उसे आसानी से अपना शिकार बना सकते थे।

मैं हर दिन उस बच्ची को देखने जाता हूं। वह बहुत ही प्यारी है। उस पर से नजर हटाने का मन ही नहीं होता है। इस मामले में आईपीसी 317 और 315 के तहत एफआईआर दर्ज कर ली गई है

  • एसआई मुनेश कुमार, पुलिस चौकी इंचार्ज बिजली बम्बा, खरखौदा, मेरठ। 

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मासूम पूरी तरह स्वस्थ है। घटना के अगले दिन बच्ची को वहां से सरकारी अस्पताल में रेफर कर दिया गया। सीएमओ खुद बच्ची पर निगाह रखे हुए हैं। उसे एहतियात के लिए अस्पताल में रखा गया है। दो-तीन दिन में शिशु गृह भेज दिया जाएगा। मेरठ के बच्चों को बदायूं स्थित शिशु गृह भेजा जाता है।

  • श्रीमती अनीता राणा, चाइल्डलाइन निदेशक, मेरठ।

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क्रेडल में रखने और सेफ सरेंडर करने का विकल्प था उनके पास: पालोना

मासूम को वहां छोड़ने वालों के पास कुछ और भी रास्ते थे-

  1. वे उसे सीडब्लूसी के माध्यम से सरकार को सुरक्षित सौंप सकते थे। सरकार की सेफ सरेंडर पॉलिसी के बारे में जानने के लिए पालोना के यूट्यूब चैनल पर प्लेलिस्ट Safe Surrender को देखा जा सकता है। इसके अलावा पालोना के फेसबुक पेज को फॉलो किया जा सकता है। यहां समय समय पर विभिन्न घटनाओं से निकले सवालों और जानकारियों को साझा किया जाता है।
  2. वे उसे मेरठ के अलग अलग क्षेत्रों में लगे पालनों (क्रेडल्स) में से किसी में रख सकते थे। ये क्रेडल्स कहां कहां लगे हैं, इनके बारे में चाइल्ड लाइन निदेशक श्रीमती अनीता राणा जी ने वीडियो में बताया है।
  3. अगर सेफ सरेंडर या पालने की जानकारी नहीं थी उनके पास तो उस मासूम को कम से कम अस्पताल केबेड जैसी सुरक्षित जगह पर तो छोड़ सकते थे।
  4. लोगों के मालूम होने चाहिए किसी नवजात मासूम को यूं असुरक्षित छोड़ना एक संगीन अपराध है। अक्सर लोग अनजाने में इसे अंजाम दे बैठते हैं।
  5. अवेयरनैस के जरिए इस अपराध को रोका जा सकता है और नवजात शिशुओं का जीवन बचाया जा सकता है।
  6. इसके लिए जिला प्रशासन, बाल अधिकारों पर काम करने वाले एक्टिविस्ट्स, मीडिया. पुलिस सभी को अपनी भूमिका ईमानदारी और तत्परता से निभानी होगी।

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PaaLoNaa News, UP

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